19-Nov-2018 08:57 AM
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मप्र की राजनीति में सभी दलों और नेताओं को आदिवासियों की सुध चुनाव के वक्त ही आती है जिनकी नजर में ये महज वोट होते हैं। लेकिन इस बार आदिवासी समुदाय में उम्मीद की एक किरण जागी थी जब उन्हीं के समुदाय के एक युवा पेशे से डाक्टर हीरालाल अलावा एम्स जैसे नामी संस्थान की नौकरी छोड़कर राजनीति के मैदान में कूद पड़े थे। आदिवासियों के भले और लड़ाई के लिए उन्होंने जय आदिवासी युवा शक्ति नाम का संगठन बनाया था जो जयस के नाम से मशहूर हुआ। अलावा के आव्हान पर देखते ही देखते देश भर के कोई दस लाख आदिवासी युवा जयस से जुड़ गए जिनका मकसद और ख्वाहिश दोनों अपनी बिरादरी के लोगों को बदहाली की दलदल से उबारना था।
इस साल के शुरू से ही जयस की ताबड़तोड़ सभाएं निमाड़ इलाके में हुईं खासी तादाद में आदिवासी मीटिंगों में गए भी तब उन्हें कतई इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस बार धोखा कोई बाहरी आदमी या नेता नहीं बल्कि अपने वाला ही दे रहा है, जयस के संस्थापक हीरालाल अलावा ने आदिवासियों को समझाया कि राजनीति के जरिये हक जल्दी मिल सकते हैं इसलिए जयस इस चुनाव में 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी और सरकार चाहे भाजपा की बने या कांग्रेस की बिना उसकी भागीदारी के नहीं बन पाएगी फिर आदिवासी अपनी शर्तों पर सरकार को मजबूर कर सकता है कि सरकार उनके भले के काम करे। दिन रात एक कर हीरालाल अलावा ने तूफानी दौरे जब निमाड इलाके के किए तो भाजपा और कांग्रेस दोनों की नींद उड़ गई क्योंकि वाकई जयस की हवा चुनाव आते- आते आंधी में तब्दील हो गई थी उसका अपना खासा वोट बेंक तैयार हो गया था। राजनीति के जानकार भी यह मानने को मजबूर हो गए थे इस चुनाव में जयस एक बड़ी ताकत बनकर सामने आएगी। कुछ दिन पहले तक किसी से
गठबंधन न करने का राग अलाप रहे अलावा ने कांग्रेस से गठबंधन के संकेत देते हुए जयस के लिए 80 सीटें मांगी।
राजनीति के तजुर्बेकार और सधे खिलाड़ी कमलनाथ ने सब्र दिखाते हुए हीरालाल अलावा को यह एहसास करा दिया कि गठबंधन तो नहीं होगा क्योंकि कांग्रेस आदिवासी इलाकों में अभी भी मजबूत है और जयस उसके नहीं भाजपा के ज्यादा वोट काटेगी लिहाजा जयस जितनी चाहे जोर आजमाइश कर ले। बात सच भी थी कि जयस के उम्मीदवार वोट तो ठीक-ठाक ले जाते लेकिन जीत नाम मात्र की ही सीटों पर पाते और इस पर भी डर यह था कि जीतकर वे मंत्री पद के लालच में सरकार की गोद में जा बैठते। इस मुकाम पर आकर हीरालाल अलावा के हाथ-पैर ढीले पड़ गए और सभी को चौंकाते हुये वे खुद कांग्रेस की गोद में जा बैठे वह भी इस मामूली शर्त के साथ कि कांग्रेस उन्हें धार जिले की मनावर सीट से टिकिट देगी जो कि उसने दिया भी।
अब निमाड इलाके में तरह-तरह की बातें हो रहीं हैं जिनमें से अहम यह है कि हीरालाल अलावा पहले तो आदिवासियों के जज्बातों से खेले और जब कुछ कर दिखाने का मौका यानि चुनाव सर पर आ गया तो एन वक्त पर पीठ दिखाते सौदेबाजी कर कांग्रेस से क्यों जा मिले और इस बाबत उन्हें और क्या-क्या मिला। अब हालत यह है कि उनसे नाराज युवा जयस से कट कर घर बैठने लगा है और कांग्रेसी कार्यकर्ता भी उनका खुले आम विरोध कर रहे हैं। इसके अलावा हीरालाल अलावा की एक बड़ी दिक्कत भाजपा की तगड़ी उम्मीदवार रंजना बघेल हैं जो इस सीट से 2 बार विधायक और मंत्री भी रहीं हैं। रंजना भी युवाओं में लोकप्रिय हैं और उनके साथ पूरी भाजपा मजबूती से खड़ी है।
अधर में अलावा
जाहिर है हीरालाल अलावा की जीत गारंटेड नहीं है उन्हें तो कांग्रेस ने बड़ी चालाकी दिखाते हुए मोहरा बना दिया है वजह वे जीते तो इसे कांग्रेस की जीत और हारे तो जयस और हीरालाल अलावा की हार कहा और माना जाएगा। यह बात उनके नजदीकी समर्थक भी नहीं समझ पा रहे हैं कि कांग्रेस से सौदेबाजी होना या करना ही थी तो वे जयस से ही क्यों नहीं लड़े कांग्रेस का समर्थन लेकर वे ज्यादा मजबूती से रंजना बघेल को टक्कर दे पाते। इस चुनावी गुणा-भाग से दूर सवाल उन वादों और सब्जबागों का भी है जो उन्होंने आदिवासियों को दिखाये थे कि एक जुट रहें तो हम यह कर सकते हैं , वो कर सकते हैं। अब सवालिया निशान उनकी मंशा पर भी लग रहा है कि जब कांग्रेस भी भाजपा की तरह शोषक उनकी निगाह में थी तो वे क्यों विधायक बनने के लालच में उसकी गोद में जा बैठे और इससे आदिवासियों को क्या हासिल होगा।
- नवीन रघुवंशी