बेरोजगारों की खेती
19-Nov-2018 08:44 AM 1234807
देश के विभिन्न हिस्सों में बुंदेलखंड की पहचान सूखा, पलायन, भुखमरी, बेरोजगारी और गरीब इलाके के तौर पर बन गई है। यहां से रोजगार की तलाश में पलायन आम बात हो गई है, मगर इस बार के हालात पिछले सालों की तुलना में बहुत बुरे हैं। इसकी वजह है क्षेत्र में औद्योगिक विकास का नहीं होना। बुंदेलखंड में सागर सबसे बड़ा क्षेत्र है। बुंदेलखंड से प्रदेश सरकार में गृह मंत्री, पंचायत मंत्री, वित्त मंत्री सहित केंद्र में राज्य मंत्री तक हैं, फिर भी यहां पर एक भी ऐसा बड़ा उद्योग नहीं लगाया गया जिससे यहां के पढ़े-लिखे नौजवानों को रोजगार मिल सके। सरकार ने यहां पर निजी विवि और कॉलेज तो खुलवा दिए, लेकिन पढ़-लिखकर निकले बेरोजगारों को काम के लिए इंदौर, गुजरात, महाराष्ट्र भागना पड़ रहा है। रोजगार के नाम पर न तो आइटी हब है और न ही कोई बड़ी फैक्ट्री या उद्योग। अकेले सागर में ही इंजीनियरिंग और प्रोफेशनल कोर्स कराया जा रहा है। मेडिकल कॉलेज और सेंट्रल यूनिवर्सिटी तो है, लेकिन इसमें भी स्थानीय विद्यार्थियों को ज्यादा लाभ नहीं मिल रहा है। सागर में इस समय करीब 66 हजार युवक-युवतियों का पंजीयन रोजगार कार्यालय में है। इस वर्ष रोजगार कार्यालय जॉब फेयर व अन्य माध्यमों से 4800 युवाओं को रोजगार देने का दावा कर रहा है। जबकि स्थिति इससे बिल्कुल उलट है। ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को स्थानीय स्तर पर कोई रोजगार नहीं मिल रहा है। मजबूरी में उन्हें दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है, जहां रहने, खाने में ही उनका वेतन खत्म हो जाता है। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद तत्कालीन आइटी मंत्री भूपेंद्र सिंह ने सागर में आइटी पार्क की स्थापना का वादा किया था। लेकिन उनके इस मंत्रालय से हटने के बाद यह घोषणा फाइलों में दबकर रह गई। अब सागर के लोगों ने आइटी पार्क की मांग को फिर बुलंद किया है, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। सागर संभाग में छोटे-बड़े 100 से अधिक उद्योग हैं। हम इंजीनियरिंग, एमबीए जैसे प्रोफेशनल तो तैयार कर रहे हैं, लेकिन उन्हें रोजगार नहीं दे पा रहे हैं। यहां बड़े उद्योगों की दरकार है। एक स्थानीय निवासी ने कहा कि सरकारी नौकरी, खेती, मजदूरी के अलावा आय का कोई अन्य जरिया यहां के लोगों के पास नहीं है। पानी नहीं होने की वजह से खेती हो नहीं रही, मजदूरी मिल नहीं रही, उद्योग है नहीं, ऐसे में सिर्फ पलायन का रास्ता बचता है। पन्ना जिले के बराछ गांव से दिल्ली मजदूरी के लिए जा रहे बसंत लाल ने कहा, खेती की जमीन है, मगर पानी नहीं है। काम भी नहीं मिलता, नहीं तो मजदूरी के लिए गांव में ही रुक जाते। घर तो मजबूरी में छोड़ रहे हैं, किसे अच्छा लगता है अपना घर छोडऩा। बराछ गांव के ही पवन बताते हैं कि उनके गांव में एक हजार मतदाता हैं। इनमें से चार सौ से ज्यादा काम की तलाश में गांव छोड़ गए हैं। यही हाल लगभग हर गांव का है। सरकार, प्रशासन को किसी की चिंता नहीं है। चुनाव आ जाएंगे तो सब गांव के चक्कर लगाएंगे, इस समय वे समस्या में हैं, तो कोई सुनवाई नहीं है। जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह कहते हैं कि सरकारों ने कभी भी बुंदेलखण्ड की समस्याओं पर गंभीरता से विचार नहीं किया है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि यहां समस्याएं दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। द्यश्याम सिंह सिकरवार
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