02-Aug-2013 10:03 AM
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केंद्रीय मंत्रि मंडल ने एक विधेयक को मंजूरी दी है जिसके तहत तलाकशुदा महिला अपने पति की पैतृक अथवा विवाह उपरान्त अर्जित की गई सम्पत्ति में हिस्सा प्राप्त कर सकती है। हालांकि यह हिस्सा

कितना होगा इसका फैसला न्यायधीश द्वारा किया जाएगा। इस दौरान पत्नि को मिलने वाला गुजारा भत्ता बंद नहीं होगा इस विधेयक ने भारतीय समाज में नई बहस को जन्म दिया है। विधेयक के आलोचकों का कहना है कि विधेयक में पति के परिवार को ब्लैकमेल किए जाने की सम्भावना बढ़ गई है। दरअसल पहले यह प्रस्ताव था कि विवाह विच्छेद की स्थिति में पत्नि को वैवाहिक सम्पत्ति में से आधा हिस्सा दिया जाए लेकिन बाद में मंत्रियों को लगा कि कितनी सम्पत्ति दी जानी चाहिए इसका फैसला न्यायधीश करे जो पति की सम्पत्ति और अन्य परिस्थितियों को देखते हुए उचित होगा। इसी वर्ष मई माह में ऐसा ही विधेयक सरकार के समक्ष लाया गया था किन्तु तब मतभेद होने के कारण इस पर सहमति नहीं बन सकी कानून मंत्रालय का कहना था कि सम्पत्ति में बराबरी का हिस्सा दिया जाए लेकिन महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस कानून को लागू करने में आने वाली कठिनाईयों पर शंका वक्त की थी। बाद में विवाद के चलते इस विधेयक को मंत्रियों के समूह को सौपा गया जिन्होंने वर्तमान विधेयक मसौदा तय किया है। नए प्रावधान में पति के द्वारा अर्जित सम्पत्ति में से हिस्सा देने की बात है लेकिन एक नए बिंदू 13 एफ के तहत यदि पैतृक सम्पत्ति का विभाजन नहीं किया जा सकता है तो इस सम्पत्ति में पति के हिस्से की गणना करते हुए न्यायालय में क्षर्तिपूर्ति की राशि तय की जा सकती है। वर्तमान में जो कानून प्रचलित है उसके तहत पुश्तैनी जायदाद में हिस्सा होने का प्रावधान नहीं है जबकि कानून मंत्रालय हर तरह की सम्पत्ति में हिस्सा देना चाहता है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पति की पुश्तैनी सम्पत्ति की परिभाषा को लेकर ऐतराज जताया था। मई माह में इस विषय को लेकर कई महिला संगठनों ने प्रधानमंत्री आवास पर प्रदर्शन भी किया। उनका कहना था कि इस तरह का कानून पारित होता है तो परिवार का वजूद खतरे में पड़ जाएगा। सवाल सिर्फ पुश्तैनी जायदाद की परिभाषा का ही नहीं, कई और पेचिदगियों का भी है। इससे सबसे पहले प्रभावित होगा परिवार का ढांचा, जबकि तलाक का मसला सीधे तौर पर पति-पत्नी के बीच का है। जानकारों की दलील है, कि पति-पत्नी के विवाद में अगर पुश्तैनी जायदाद कई हिस्सों में बंटती है, तो मां-बाप जीते जी अपनी प्रॉपर्टी बच्चों के नाम नहीं करेंगे। नए प्रावधान का दूसरा खतरा है तलाक की घटनाओं में बढ़ोत्तरी का। जानकारों की नजर में अब तक आपसी विवाद तलाक की वजह बनते रहे हैं, लेकिन नए कानून के बाद पूरे जायदाद में हिस्सेदारी बड़ी वजह बन सकती है। ऐसी राय सरकार के अंदर ही कई लोगों की है। इसे लेकर विपक्ष के तेवर भी समर्थन में नहीं दिख रहे। इनकी नजर में इस कानून के जरिए सरकार लोगों को असल मुद्दे से भटकाने की कोशिश में है।
बिल का विरोध करने वालों को दलील है, कि सरकार की मंशा अगर साफ होती, तो वो तलाक की शर्तों को और सख्त कर सकती थी। हालात के मुताबिक महिलाओं को मुआवजे की राशि बढ़ाने की सिफारिश कर सकती थी। हिंदू मैरिज एक्ट में अब तक जो प्रावधान था उसके मुताबिक तलाक के बाद पत्नी को पति संपत्ति में आधा हिस्सा मिलता है। इसके अलावा गुजर बसर के लिए नकद मुआवजे का प्रावधान है। इसमें पुश्तैनी जायदाद को जोड़कर कौन सा समाधान निकालना चाहती है सरकार।
जो कानून मंत्रालय इस बिल की वकालत कर रहा है, उसे भी पता है, पुश्तैनी जायदाद पर हक को लेकर अलग कानून है। पिता के बाद पुश्तैनी जायदाद पर बेटे बेटियों का हक होता है। ऐसे में बहुओं की हिस्सेदारी से जायदाद की जंग में एक नया पेंच और जुड़ जाएगा। बिल का आखिरी मसौदा तैयार करने से पहले सरकार को इस पहलू को भी नजर में रखना होगा। शादियों को कानूनी शर्त में बांधन के लिए हिंदू मैरेज एक्ट बना था। ये बात आजादी के 8 साल बाद 1955 की है। तब से लेकर इस एक्ट में कई तमाम संशोधन हुए- लेकिन इसे लेकर सरकार का ऐसा अंतर्विरोध शायद ही सामने आया। इस बार तो सरकार की कोशिश की आलोचना हर तरफ हो रही है। विपक्ष तो विपक्ष सामाजिक संगठन भी सरकार की मंशा का विरोध कर रहे हैं। शादियों को टूटने से बचाने और इसे कानूनी शर्तों में बांधने के लिए 1955 में हिंदु मैरिज एक्ट बनाया गया था। मगर टूटते बिखरते रिश्तों का आलम आज ये है, कि कोर्ट को भी एक्ट को लचीला बनाना पड़ा। अगर किसी भी शादी को बचाने की कोई गुंजाइश नहीं बची हो, रिश्ता तोडऩे पर पति-पत्नी दोनों सहमत हों, तो 6 महीने की कूलिंग पीरियडÓ से पहले भी तलाक दिया जा सकता है। देश की ऊंची अदालत ने ये फैसला तो एक निजी मामले में दिय़ा था। लेकिन ये

फैसला इशारा करता है, रिश्तों की घुटन से मुक्ति पाने की छटपटाहट वक्त के साथ कितनी बढ़ती गई है। इसी के साथ हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधनों भी किए जाते रहे हैं। मसलन, मूल कानून में लड़कों के लिए शादी की उम्र 18 साल और लड़कियों की 15 साल थी, जिसे आगे चलकर 21 साल और 18 साल किया गया। पहले हिंदू रीति रिवाजों से हुई शादी को मान्य माना जाता था, आगे चलकर इसमें कानूनी पंजीकरण का प्रवाधान किया गया। तलाक की शर्तों में भी बदलाव किया जाता रहा। तलाक के बाद बीवियों को मुआवजे का ख्याल रखा गया। लेकिन अब तक किसी भी संशोधन को लेकर खास हो हल्ला नहीं हुआ। लेकिन इस बार प्रावधान कुछ और है और इसके बाद बनने वाले कानून को लेकर भी आशंकाएं भी बड़ी है।
इस कानून से शादी तो सस्ती बनी रहेगी, पर तलाक महंगा हो जाएगा। ये फैसले पत्नी को पति की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार बनाते हैं तथा मुआवजे की रकम तय करने का अधिकार कोर्ट को देते हैं। सरकार 5 अगस्त से शुरू होने जा रहे संसदीय सत्र में जो विवाह कानून संशोधन बिल लाने जा रही है, ये फैसले उसी में शामिल हैं।
अभी तक पत्नी को सिर्फ अपने पति की अर्जित संपत्ति में ही हिस्सा मिलता है। तलाक होने की स्थिति में पैतृक संपत्ति पर उसका कोई दावा नहीं होता। हां, यदि विवाह कायम रहे, लेकिन पति घर छोड़ कर कहीं काशी-मथुरा चला जाए, पागल या दिवंगत हो जाए, तो स्त्री की या उसकी संतान की उसमें हिस्सेदारी जरूर मानी जाती है। मौजूदा कानूनों के मुताबिक बिना विवाह लिव-इन में रहने वाली स्त्री की भी पैतृक संपत्ति में कोई दावेदारी नहीं मानी जाती। लेकिन यदि ऐसे संबंध से संतान उत्पन्न हो तो संतान की दावेदारी मानी जा सकती है। हालाँकि नए कानून से विवाहित स्त्री की स्थिति थोड़ी और मजबूत होगी। यदि शादी के कुछ दिनों बाद उसका तलाक भी हो जाता है, तो उसे अपने पति की पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिल सकेगा। हमारे समाज में जो वास्तविक स्थितियां हैं, उनमें कुछ लोग इस नए कानूनी दायित्व से बचने की कोशिश कर सकते हैं। जैसे शादी के बाद मन नहीं मिलने पर पति-पत्नी तलाक की अर्जी दे दें। लेकिन बाद में पति को लगे कि इसे पुश्तैनी संपत्ति में हिस्सा देना होगा, इसलिए तलाक ही न दो, विवाहित जिंदगी चाहे जैसे कटे। आलोचकों का कहना है कि इस कानून के बाद स्त्री भी संपत्ति के लोभ में शादी कर सकती है और शादी के बाद उससे बाहर निकल आने के लिए तलाक का सहारा ले सकती है। शायद इसीलिए सरकार ने कोर्ट की दखलंदाज़ी की बात कही है।
ज्योत्सना अनूप यादव