17-Jul-2013 08:46 AM
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सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को चेतावनी दी है कि वह एसिड बचेने के लिए दिशा निर्देश जारी करे अन्यथा सुप्रीम कोर्ट इसकी बिक्री पर भी रोक लगा देगा। देश में तेजाबी हमले बढ़ रहे हैं बदला लेने के लिए या दुश्मनी निभाने के लिए अच्छे

खासे चेहरे को वीभत्स कर दिया जाता है। यह दशकों से होता आ रहा है लेकिन अब कुछ ज्यादा हो गया है। शायद इसी लिए कानून बनाने की मांग लगातार हो रही है। तेजाब भारत में खुले में बिकता है इसे बनाने वाले भी खुले आम इसे बनाते है। कहीं कोई डर नहीं है। किराने की दुकान से लेकर जनरल स्टोर तक छोटी सी बोतल में कोई भी तेजाब खरीद सकता है और फिर जब यह पता हो कि तेजाब किसी के चेहरे को झुलसा सकता है तो फेंकने वाला भला क्यों पीछे हटेगा इसी कारण दिन ब दिन हमले बढ़ते जा रहे हैं। आम महिलाओं से लेकर खास महिलाओं तक सभी को तेजाबी हमलों को सामना करना पड़ा है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी दैवेगौड़ा की पत्नी चेन्नम्मा और उनकी पूत्र वधू भी तेजाबी हमला झेल चुकी हंै। भारत में इन हमलों के बढऩे का एक कारण है कि अपराध की दर में बेतहाशा वृद्धि हुई है। पीडि़तों में लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं रहती हैं जिनमें से 40 प्रतिशत की उम्र तो 18 वर्ष से भी कम है। दु:ख तो यह है कि केवल 8 प्रतिशत मामलों में आरोपी को सजा हो पाती है अर्थात हर वर्ष तेजाबी हमला झेलने वाली एक हजार महिलाओं में से 80 को ही न्याय मिल पाता है। इसी कारण एक हजार में से कुल 150 महिलाएं रिपोर्ट दर्ज कराती हैं। एसिड बिक्री का कोई प्रभावी कानून नहीं होने के कारण लगातार यह हमले हो रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि एसिड टॉयलेट क्लीनर के रूप में उपयोग में लाया जाता है। जबकि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। इसके बिना भी टॉयलेट साफ किये जा सकते हैं। जिलों के उच्चाधिकारी इसी कारण तेजाब पर रोक नहीं लगाते। लेकिन वे चाहें तो अपने अपने जिलों में इसकी बिक्री रोक सकते हैं। तेजाब बनाने से लेकर बेचने तक लाईसेन्स भारत सरकार का एक्सप्लोसिव विभाग जारी करता है। बिना अनुमति तेजाब बनाना अपराध है लेकिन फिर भी बनाया जाता है। तेजाब पीडि़त महिलाओं को कहना है कि जब तीर्थ स्थानों में मांस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है तो फिर हमारे समाज में तेजाब को क्यों नहीं रोका जा सकता। लेकिन सरकारे सोई रहती है। हाइड्रोक्लोरिक हो या सल्फ्यूरिक और नाइट्रिक एसिड-इनकी काउंटर पर बिक्री 15 से 25 रूपए लीटर कीमत में हो रही है। सफाई के लिए। लैब के लिए। इन कामों के लिए भी तेजाब की कोई जरूरत नहीं है। झुलसाता ही है। रोक लगनी ही चाहिए।
सरकारों ने इस घिनौने कृत्य को एक अलग अपराध मानने में ही कोई 33 साल लगा दिए। प्रीति राठी के ताजा मामले ने सारे घाव फिर हरे कर दिए हैं। मुंबई में रेलवे स्टेशन पर उस पर तेजाब फेंका गया। कोई नौ सीसीटीवी कैमरे लगे थे। हथियार तो है नहीं, जो कैमरे पकड़ सकते।
तेजाब फेंकने वाले किस कदर हैवान होते हैं, इसका सबसे हैरान कर देने वाला वाकया ईरान का अमीना केस है। इलेक्ट्रॉनिक्स की ग्रेजुएट अमीना बहरामी ऑफिस से लौट रही थी कि माजिद मोवाहदी नामक युवक ने उस पर तेजाब फेंका। माजिद उसके पीछे पड़ा था। जबकि अमीना उसे साफ इनकार कर चुकी थी। चेहरा, गला झुलस गया। आँखे जलकर खाक हो गई। बर्बाद अमीना ने लंबी लड़ाई लड़ी। ईरान में आँख के बदले आँख का कानून है। उसने वही इंसाफ मांगा। अदालत ने आखिर मान लिया। लेकिन जब माजिद की आंखों में तेजाब की पांच बूंदे डालकर डॉक्टर उसे अंधा बनाने जा ही रहे थे, ऐन मौके पर अमीना ने उसे माफ कर दिया। दुनिया के मानवाधिकार संगठनों की अपील पर। लेकिन सब सकते में आ गए, जब माजिद ने माफी को कानूनी ढाल बनाकर उसके इलाज का खर्च उठाने से बाद में साफ इनकार कर दिया।
महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के विरुद्ध जारी देशव्यापी मुहिम में अब तेजाबी हमलों के खिलाफ भी आवाज बुलंद होने लगी है। जम्मू-कश्मीर व देश के अन्य राज्यों के छात्र-छात्राओं का एक सांकेतिक प्रदर्शन दिल्ली के कनाट प्लेस में 11 जनवरी को किया गया था यह तेजाब की शिकार हुई लड़कियों के समर्थन में होने वाला भारत का सबसे बड़ा प्रदर्शन था । इससे पहले श्रीनगर की एक तीस वर्षीय शिक्षिका पर तेजाब फेंका गया था। किसी भी महिला का तेजाबी हमले का शिकार होना मानसिक और शारीरिक रूप से बेहद कष्टप्रद है। इस आंदोलन के सूत्रधार दलील देते रहे हैं कि तेजाबी हमला किसी भी स्तर पर बलात्कार से कम हादसा नहीं है। ऐसे हमलों में न केवल जीवनभर की अपंगता, कुरूपता और मानसिक तनाव मिलता है बल्कि जीवनभर की त्रासदी भी साथ आती है। ऐसे में तेजाब से हमला करने वालों को कड़े से कड़ा दंड दिया जाना चाहिए। तेजाबी हमला स्त्री की अस्मिता पर किया जाने वाला भयावह आक्रमण है जिसके खिलाफ सख्त कानून बनाये जाने की आवश्यकता है। अभी तक इस संबंध में कोई कारगर व कठोर कानून न होने की वजह से अपराधियों को पर्याप्त दंड नहीं मिलता। यह इसलिए भी जरूरी है कि देश में न तो अपराधियों को कड़ा दंड मिल पाता है और न ही पीडि़ता को उचित न्याय। अकसर देखने में आता है कि तेजाबी हमले की शिकार महिला को उपचार की लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। कई आपरेशनों की शृंखला के बाद भी यथास्थिति कायम नहीं हो पाती। ऐसे में सरकार को मानवीय दृष्टिकोण से इस हमले से पीडि़त महिला को पर्याप्त आर्थिक मुआवजा भी देने की व्यवस्था करनी चाहिए।
डॉ. माया