02-Nov-2018 09:04 AM
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मप्र में इन्टरटेनमेंट टैक्स लगाए जाने के विरोध में मल्टीप्लैक्स और सिंगल स्क्रीन सिनेमा संचालकों ने हड़ताल कर दी थी। इसमें सिनेमाघर संचालकों के साथ ही, फिल्म प्रोड्यूसर्स, मल्टीप्लैक्स एसोसिएशन व अन्य संगठन भी शामिल थे। बताया जाता है कि टैक्स के विरोध में माहौल बनाकर जिस तरह यह हड़ताल की गई वह एक साजिश का हिस्सा लग रही है।
दरअसल हड़ताल को लेकर जो समय चुना गया वह सही समय नहीं था, क्योंकि प्रदेश में चुनाव होने के कारण आचार संहिता का साया मंडरा रहा था। सूत्र बताते हैं कि एसोसिएशन की बैठक में मप्र के सिनेमाघर संचालकों ने जब यह मुद्दा उठाया कि प्रदेश में पांच अक्टूबर को आचार संहिता लग सकती है इसलिए हड़ताल अभी न की जाए, तो मल्टीप्लैक्स एसोसिएशन के उस तत्कालीन सीईओ रजनीश सहाय ने कहा कि मप्र में आचार संहिता 25 अक्टूबर के बाद लगेगी। उनकी बातों में आकर सिनेमा संचालकों ने हड़ताल शुरू कर दी। लेकिन प्रदेश में 6 अक्टूबर को आचार संहिता लग गई। ऐसे में सरकार भी कुछ करने की स्थिति में नहीं रह पाई। उधर हड़ताल के कारण सिनेमाघर संचालकों पर आर्थिक बोझ बढऩे लगा। उधर रजनीश सहाय को सीईओ से हटा दिया गया है। उनकी जगह अजय बिजली को सीईओ बनाया गया है।
सिनेमा संचालकों की परेशान को देखते हुए प्रमुख सचिव संस्कृति विभाग मनोज श्रीवास्तव ने एसोसिएशन को चर्चा के लिए बुलाया। अधिकारियों ने नई सरकार बनने के बाद संचालकों की मांग पर चर्चा का आश्वासन दिया। इस चर्चा के बाद सिनेमा संचालकों ने हड़ताल खत्म की है। लेकिन मल्टीप्लैक्स और प्रोड्यूसर एसोसिएशन अपनी जिद पर अड़े रहे। जानकारों का कहना है कि इसके पीछे एक बड़ी साजिश रची गई है। दरअसल मोटी कमाई के लिए मल्टीप्लैक्स और प्रोड्यूसर एसोसिएशन चाहते हैं कि मप्र सहित देशभर में सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर खत्म हो जाए। अगर ऐसा होता है तो शहर, नगर और छोटी-छोटी जगह पर छोटे-छोटे पर्दे पर भी मल्टीप्लैक्स वालों के माध्यम से सिनेमा दिखाया जाए।
सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर को खत्म करने की साजिश की बू इससे भी आती है कि जब ये हड़ताल खत्म करने को तैयार हुए तो प्रोड्यूसर एसोसिएशन ने उन्हें फिल्में देने से मना कर दिया। एसोसिएशन ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया कि मप्र से हमें कोई विशेष लाभ नहीं होता है। द फिल्म एंड टेलीविजन प्रोड्यूसर गिल्ड ऑफ इंडिया का कहना है कि मप्र में फिल्में चलाने से हमें मात्र 3 से 4 प्रतिशत शेयर मिलता है। ऐसे में राज्य सरकार टैक्स लगा रही है। गौरतलब है कि सिनेमाघरों पर लगने वाला टैक्स सिनेमा संचालक और प्रोड्यूसर्स द्वारा आधा-आधा वहन किया जाता है, लेकिन इस मामले में प्रोड्यूसर्स गिल्ड ने मप्र में यह टैक्स वहन करने से साफ इनकार कर दिया है। उनका कहना है यह देश में कहीं भी नहीं लग रहा है, इसलिए हम प्रदेश में यह टैक्स नहीं देंगे।
अब सिंगल स्क्रीन ने हड़ताल वापस ले ली है और वे साउथ की फिल्में चला रहे हैं। इससे प्रदेश के सिने प्रेमी भी आहत हैं। उधर सेंट्रल सिने सर्किट एसोसिएशन के एक्जीक्यूटिव कमेटी के चेयरमैन ओपी गोयल का कहना है कि सौ रुपए तक की टिकट पर 18 फीसदी और इससे अधिक दाम के टिकट पर 28 फीसदी जीएसटी लग रहा है। नगर निगम प्रति शो 200 रुपए का प्रदर्शन टैक्स भी लेता है (हालांकि इंदौर में यह टैक्स मनोरंजन कर के बाद खत्म कर दिया है, लेकिन भोपाल व अन्य जगह है)। इसके अलावा मनोरंजन कर के नाम पर तीसरा टैक्स लिया जा रहा है। एसोसिएशन के अध्यक्ष जयप्रकाश चौकसे का कहना है कि यह कर प्रणाली असहनीय है। इससे सिनेमाघरों की हालत खराब हो जाएगी। उधर मल्टीप्लैक्स एसोसिएशन की मनमानी को देखते हुए सरकार भी सख्त नजर आ रही है। अफसरों का कहना है कि सरकार अब आईनेक्स और पीवीआर के लाइसेंस बारीकी से जांच करेगी। नियम विरुद्ध होने पर सख्त कार्यवाही की जाएगी।
- राजेश बोरकर