एमएसपी का मकडज़ाल
19-Nov-2018 08:40 AM 1234816
मप्र सहित देशभर में सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का दावा कर रही है। लेकिन प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन सहित अन्य फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी नीचे खरीदी जा रही हंै। अगर आंकड़ों की मानें तो केवल सोयाबीन की बिक्री में ही किसानों को प्रतिदिन करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश में 20 अक्टूबर से सोयाबीन की समर्थन मूल्य पर खरीदी शुरू हुई है। खरीदी शुरू होते ही किसान बड़ी उम्मीद के साथ सोयाबीन की फसल लेकर मंडियों में पहुंच रहे हैं। लेकिन सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य 3399 रूपए प्रति क्विंटल से कम में ही सोयाबीन की खरीदी हो रही है। देशभर की मंडियों का भाव बताने वाली सरकार की वेबसाइट एगमार्कनेट डॉट जीओवी डॉट इन के अनुसार मौजूदा समय की एक दो जिंसों को छोड़ दिया जाए तो मंडी में किसी भी फसल की एसएसपी पर खरीदी नहीं हो रही। गौरतलब है कि किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए एमएसपी की व्यवस्था लागू की गई है। अगर फसलों की कीमत गिर जाती है, तब भी सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है, इसीलिए ये व्यवस्था लागू की गई है। इसके जरिए सरकार उनका नुकसान कम करने की कोशिश करती है। स्वराज अभियान के योगेन्द्र यादव कहते हैं कि एमएसपी मजाक है। देश में ऐसी कोई मंडी ही नहीं है जिस पर किसान सरकार की तय हुई एमएसपी पर अपनी पूरी फसल बेच सके। एमएसपी बढ़ाने को लेकर बहस हो सकती है पर मौजूदा हालात में कॉटन को छोड़कर किसानों को हर फसल के दाम एमएसपी से बहुत कम मिल रहे हैं। मौजूदा समय में एमएसपी के दाम मिल जाएं यही बहुत है। प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन की खरीदी एमएसपी से नीचे होने की वजह से भी किसान इसलिए शांत हैं कि उन्हें प्रति क्विंटल 500 रुपए बोनस मिलेगा। उधर, किसान नेताओं का कहना है कि सरकार द्वारा किसानों को जो बोनस दिया जा रहा है उसका लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। क्योंकि व्यापारी किसानों की उपज का सही दाम न देकर उन्हें क्षति पहुंचा रहे हैं। देश में सोयाबीन का उत्पादन कृषि मंत्रालय के अनुसार 130 लाख टन, सोपा के अनुसार करीब 115 लाख टन एवं जीजीएन रिसर्च के अनुसार 100 लाख टन का उत्पादन होने का अनुमान लगाया है। मप्र में भावांतर योजना लागू की गई है। पिछले दिनों की गई घोषणा के अनुसार सोयाबीन चाहे किसी भी भाव बिके, 500 रुपए बोनस दिया जाएगा। बोनस के वे ही किसान पात्र होंगे जिनकी उपज की मंडी प्रांगण में बिक्री की होगी। इसलिए सोयाबीन पर भावांतर का लाभ अर्जित करने मंडियों में बंपर आवक हो रही है। जिसका फायदा व्यापारी उठा रहे हैं। पूर्व के वर्षों में सोया प्लांट की क्रशिंग क्षमता भी अधिक थी और प्लांट आर्थिक रूप से सशक्त थे। अनेक प्लांट बंद हो गए हैं। अनेक प्लांटों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। पिछले वर्षों में खरीदी में इतनी तगड़ी प्रतिस्पर्धा होती थी कि कभी-कभी एक ही प्लांट सभी मंडियों में एक तरफा खरीदी कर जाते थे। वर्तमान में ऐसी स्थिति नहीं रही है। इसका खामियाजा विशेषकर मप्र के किसानों को उठाना पड़ रहा है। वर्तमान में महाराष्ट्र से प्लांट मप्र की अपेक्षा अधिक भाव पर खरीदी कर रहे हैं, जबकि मप्र के प्लांट कम भाव पर। आखिर मप्र- महाराष्ट्र के किसानों सोयाबीन ही उत्पन्न किया है। कुछ प्लांट चाहे ऊपर से कितने उजले नजर आए अंदर से खोखले हो चुके हैं। उनमें से कुछ प्लांट घोषित रूप से बंद हो गए हैं। कुछ प्लांट के नीलामी के विज्ञापन आए दिन अखबारों में छपते रहते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में गिरी सोयाबीन की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जहां सोयाबीन की कीमतों में फिसलन देखने को मिल रही है, वहीं घरेलू बाजारों में सोयाबीन बीते हफ्ते से लगातार अपनी पकड़ को मजबूत बनाए हुए है। दरअसल अमरीका और चीन के ट्रेड वॉर के चलते चीन की अमरीका से सोयाबीन की मांग कमजोर हुई है। चीन सरकार ने पशु आहार में सोयाबीन की मात्रा को कम करने पर अपनी सहमति दे दी है जिससे अब पशु आहार में 13 फीसदी सोयाबीन की मात्रा कम हो जाएगी। इससे चीन के बाजारों में सोयाबीन की खपत में भी कमी देखने को मिलेगी। वहीं ब्राजील में सोयाबीन की खेती रिकॉर्ड स्तर पर दर्ज की जा रही है। चालू सीजन में अबतक 46 फीसदी बुआई पूरी हो चुकी है, जबकि औसतन इस समय पर 28 फीसदी बुआई ही होती रही है। ऐसे में ब्राजील की रिकॉर्ड फसल होने का अनुमान लगाया जा रहा है। जिसके चलते मनोवैज्ञानिक स्तर पर सोयाबीन की कीमतों में गिरावट देखी गई है। - ए. राजेंद्र
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