02-Nov-2018 08:54 AM
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मप्र में एक बार फिर डेंगू का प्रकोप तेजी से फैल रहा है। इस बार राजधानी भोपाल के साथ ही इंदौर, ग्वालियर, सीधी, सिंगरौली, नीमच, मंदसौर, रतलाम, जबलपुर में डेंगू का दंश जानलेवा बना हुआ है। अकेले भोपाल में डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया बुखार से पीडि़त 900 से 1200 मरीज हर दिन सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए पहुंच रहे हैं। सरकारी और निजी अस्पतालों में मिलाकर रोज करीब 130 मरीजों की डेंगू, चिकनगुनिया की जांच कराई जा रही है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेशभर में डेंगू का दंश किस कदर घातक बना हुआ है।
प्रदेश में हर साल डेंगू के खिलाफ अभियान चलाया जाता है। डेंगू रोग फैलाने वाले एडीज मच्छरों को मारने के लिए करोड़ों रुपए की दवाएं खरीदी जा रही हैं और उनका छिड़काव किया जा रहा है, लेकिन उसके बाद भी मच्छर तेजी से पनप रहे हैं और लोग डेंगू की चपेट में आ रहे हैं। दरअसल सरकार के पास डेंगू से निपटने के केवल कागजी इंतजाम है। आज प्रदेश में कई जिले ऐसे हैं जहां इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं है। प्रदेश में सीधी, सिंगरौली, नीमच, बड़वानी सहित दर्जनों ऐसे जिले हैं जहां डेंगू मरीज के सेम्पल की जांच के इंतजाम नहीं हैं। सीधी जिला अस्पताल में डेंगू पीडि़त की जांच के लिए मशीन उपलब्ध नहीं थी, जिस कारण खून का सेंपल लेकर एलाइजा जांच के लिए जबलपुर भेजा जाता था। यहां से रिपोर्ट आने में एक पखवाड़ा लग जाता था। रिपोर्ट मिलते-मिलते मरीज की हालत गंभीर हो जाती थी। इसे देखते हुए शासन ने जांच के लिए मशीन उपलब्ध कराई, लेकिन दक्ष कर्मचारी न होने से इसे चलाने वाला कोई नहीं है। सेंपल भेजकर जबलपुर से जांच कराने में एक पखवाड़ा लगता है, वहीं निजी पैथोलॉजी में यह जांच काफी महंगी है। ऐसे में गरीब वर्ग के लोग 15 दिन इंतजार करते हैं। वहीं संपन्न लोग निजी अस्पताल में जाकर इलाज शुरू करा लेते हैं। निजी क्लीनिकों में डेंगू जांच के एक हजार रुपए लगते हैं।
एनएसजी इसकी रिपोर्ट पॉजीटिव आने का मतलब यह कि व्यक्ति डेंगू वायरस की चपेट में है। अभी डेंगू का वायरस उस व्यक्ति के शरीर में है या नहीं यह जानने के लिए आगे की जांच आइजीएम व आइजीजी करनी होती है। आइजीएम पॉजीटिव का मतलब यह होता है कि व्यक्ति को चार से पांच दिन का डेंगू संक्रमण है। ऐसे में मरीजों का ध्यान एनएस पॉजीटिव के मरीज से ज्यादा देना होता है। आइजीजी इसकी पॉजीटिव रिपोर्ट का मतलब है कि डेंगू की चपेट में आए 15 दिन से अधिक हो गए। इस स्थिति वाले व्यक्ति की ही प्लेटलेट तेजी से गिरती है। थर्ड स्टेज ही ज्यादा खतरनाक है। ऐसे मरीजों के उपचार में यदि सक्रियता नहीं दिखाई गई तो जिंदगी पर भारी पड़ जाती है।
डेंगू से बचने के लिए लोग मच्छर मारने के लिए जो उपाय कर रहे हैं वे नाकाफी साबित हो रहे हैं। मॉस्किटो क्वाइल सहित अन्य मच्छर मारने की दवाएं इस समय बेअसर साबित हो रही हैं। एक्सपर्ट की मानें तो इनके गलत इस्तेमाल के कारण ऐसा हो रहा है। मॉस्किटो क्वाइल या अन्य कोई भी तरीका इस्तेमाल करते समय ध्यान रखें कि कमरे को बंद जरूर कर दें और सभी सदस्य कमरे के बाहर निकल जाएं। वहीं कमरे की साइज का भी विशेष ध्यान रखें, यदि कमरा अधिक बड़ा होगा तो प्रभाव कम हो जाएगा।
उधर नगर निगम द्वारा मच्छर मारने के लिए जिस पाइथन नामक दवा का छिड़काव किया जाता है वह भी बेअसर साबित हो रही है। राजधानी में अभी हाल ही में एक्सपायरी डेट की दवा छिड़कने का मामला सामने आ चुका है।
- विकास दुबे