02-Nov-2018 07:26 AM
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कांग्रेस मुक्त भारत के चुनावी नारे से देश के 19 राज्यों में काबिज हुई बीजेपी ने अपनी बुनियादी पहचान द पार्टी विद ए डिफरेंस के नाम पर बनाई थी। पर आज उसी बीजेपी में वह सब हो रहा है जो कभी कांग्रेस में हुआ करता था। टिकटों के लिए घमासान, अपने बेटे-बेटियों के लिए मैदान पकड़ते नेता, दावेदारी को लेकर समर्थकों की आपस में भिड़ंत, खुलकर नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन।
28 अक्टूबर को भाजपा कार्यालय में शक्ति प्रदर्शन का जो द्रश्य दिखा वह पार्टी विथ ए डिफरेंस वाली भाजपा के चाल, चेहरा और चरित्र को दर्शाता है। करीब आधा दर्जन नेताओं के समर्थकों ने कार्यालय में जमकर हंगामा किया। यही नहीं बैठक में शामिल होने के लिए पहुंचे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को भी दावेदारों की धक्का-मुक्की झेलने पड़ी। यही नहीं बैठक में भी पार्टी के वरिष्ठ नेता अपने समर्थकों और परिजनों की लॉबिंग करते रहे। इस पूरे मामले पर शिवराज सरकार में कैबिनेट दर्जा प्राप्त पूर्व मंत्री सत्यनारायण सत्तन ने तीखा विरोध दर्ज किया। उन्होंने अफसोस जताया कि जिस पार्टी ने हमेशा कांग्रेस के परिवारवाद पर निशाना बनाया, आज उसी के नेता अपने परिवार वालों के टिकट की दावेदारी करते नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा, ये लोग शायद पंडित दीनदयाल उपाध्याय के आदर्शों को भूल चुके हैं। हमारा लक्ष्य आत्मसुख नहीं अंतिम पंक्ति में खड़ा अंतिम व्यक्ति है। बीजेपी को अपने मूल्यों की रक्षा करनी होगी। सत्तन कहते हैं कि विरोध की जमीन और सत्ता की जमीन पर हालात बदल जाते हैं। सत्ता की मजबूरियां सामने आती हैं। कांग्रेस और बीजेपी एक सिक्के के पहलू नहीं हो सकते। उम्मीदवारी को लेकर हो रहे विरोध पर सत्तन का कहना है कि यह मौसमी बीमारी की तरह है। जो पहले बीजेपी में नहीं थी पर अब बीजेपी बड़ी पार्टी हो गई है।
पुराने लोगों की जगह नए लोग आ गए हैं जो सत्ता को ही अपना लक्ष्य मान रहे हैं। सत्तन इसकी एक वजह यह भी मानते हैं कि बीजेपी में पिछले तीन दशकों से कई जगहों पर एक व्यक्ति को टिकट दिया जा रहा है। कोई आठ बार जीता है कोई पांच बार। इसमें भी बदलाव की जरूरत है। नए लोगों को मौका देना होगा। पार्टी में कैडर मजबूत होता है व्यक्ति नहीं। कार्यकर्ताओं में असंतोष का कारण यह भी है। ऐसा नहीं हो सकता कि चंद चेहरे को मौका दिया जाए बाकी कार्यकर्ता सिर्फ मेहनत करते रहें।
इंदौर में मुख्यमंत्री जनआर्शीवाद यात्रा के दौरान हुए विवाद के बाद संघ कोटे की विधायक उषा ठाकुर के खिलाफ 32 नेताओं ने मैदान पकड़ लिया है। खुली बगावत पर उतरे इन नेताओं ने इस क्षेत्र से विधायक का टिकट कटवाने की मुहिम छेड़ दी है। मामला बस इतना था कि ठाकुर के क्षेत्र में मुख्यमंत्री जन आर्शीवाद यात्रा के प्रभारी और टिकट के दावेदार गोविंद मालू के समर्थकों ने अपनी ताकत दिखाई। जिससे नाराज ठाकुर समर्थकों ने मालू के भाई और भतीजे की जमकर पिटाई कर दी हालांकि विधायक उन्हें रोकती रहीं। लेकिन मामला बहुत आगे बढ़ गया। इस घटना के बाद क्षेत्र के तमाम नेता लामबंद होकर ठाकुर के खिलाफ मोर्चा खोल बैठे हैं। ठाकुर ने अपना पक्ष संघ तक पहुंचा दिया है लेकिन विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर, गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह, वन मंत्री गौरीशंकर शेजवार, सिवनी विधायक दिनेश राय, सागर विधायक शैलेंद्र जैन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए प्रदेश कार्यालय के बाहर कई प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों ने पार्टी के आला नेताओं के कान खड़े कर दिए हैं। पार्टी के चुनाव कार्यालय संचालक विजेंद्र सिंह सिसौदिया के बेटे देवेंद्र सिंह के लिए टिकटों की लॉबिंग का दृष्य भी चौंकाने वाला रहा। विजेंद्र सिंह कार्यालय संचालक होने के नाते इस तरह के शक्ति प्रदर्शन का विरोध करते थे। लेकिन बेटे को लेकर खुद ही मैदान में आ गए। कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन अपनी बेटी के टिकट के लिए दावेदारी जता रहे हैं। जिसका विरोध करने बालाघाट सांसद बोधसिंह भगत पार्टी कार्यालय पहुंच गए। वे स्वयं विधानसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं। महिदपुर, श्योपुर, राजगढ़ के विधायकों के खिलाफ इसी तरह खुलकर प्रदर्शन और नारेबाजी हुई है। करो या मरो के पोस्टर लेकर कार्यकर्ता विरोध जता रहे हैं।
बीजेपी के आला नेता प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं और नेताओं से मिल रहे हैं। उन्हें उचित निर्णय का भरोसा भी दे रहे हैं। लेकिन जो दृश्य दिखाई दे रहे हैं उसने नई चिंताएं भी खड़ी कर दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वीकार करते हैं कि इतने खुलकर प्रदर्शन पहले कभी नहीं हुए। अनुशासन से बंधे कार्यकर्ता, नेता अपनी बात वरिष्ठ नेताओं तक पहुंचाते थे लेकिन उसके तरीके अलग होते थे।
- अजय धीर