क्या इलाहाबाद प्रयागराजÓ हो पाएगा?
02-Nov-2018 08:48 AM 1235001
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर का नाम बदल कर प्रयागराज किया जाना भारत ही नहीं दुनिया भर में चर्चा बटोर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार के इस फैसले को हिंदूवादीÓ कदम बताया गया है। वहीं, सरकार का दावा है कि इलाहाबाद के लोगों और साधु-संतों की इच्छा पर ही शहर को उसका ऐतिहासिकÓ नाम वापस लौटाया गया है। दरअसल देश में कई शहरों, नगरों और स्थानों का नाम परिवर्तित किया जा रहा है। क्योंकि तात्कालिक शासकों ने देश के कई स्थलों का नाम बदल दिया था। कहा जा रहा है कि इलाहाबाद से पहले इस शहर का नाम प्रयागराज ही था। सन् 1583 में मुगल शहंशाह अकबर ने यहां किला बना कर शहर का नाम इलाहाबासÓ (अल्लाह का शहर या घर) रखा। बाद में अंग्रेजों ने इसे रोमन में अलाहाबादÓ लिखा जो आगे चल कर इलाहाबाद हो गया। कई मानते हैं कि वर्तमान सत्ता की विचारधारा और उसके समर्थकों द्वारा फिर यही साबित करने की कोशिश की जा रही है कि आक्रमणकारी मुसलमानों (यानी मुगल) के राज में हिंदू धर्म, संस्कृति और विरासत का नाश हुआ जिसे अब बहाल किया जा रहा है।Ó लेकिन क्या इलाहाबाद के लोग भी यही सोचते हैं? क्या वाकई इलाहाबाद का नाम आक्रांताओं की विरासत है? इलाहाबादियों से चर्चा में यह बात मजबूती से निकल कर आती है कि यह कदम सांप्रदायिक विचारधारा से प्रेरित है जो इलाहाबाद को कभी प्रयागराजÓ नहीं बना पाएगा। सांस्कृतिक कार्यकर्ता केके पांडेय इलाहाबाद में ही रहते हैं। योगी सरकार के फैसले पर वे न सिर्फ दुख जताते हैं, बल्कि उन्हें इसकी सफलता पर भी संदेह है। वे कहते हैं, यह बहुत खराब हुआ है और दुखद है। प्रतीकों की राजनीति में ऐसा कर दें तो शहर न होकर यह एक तीर्थ हो जाएगा। इलाहाबाद ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण जगह है। संगम के आसपास के हिस्से को पहले भी प्रयागराज कहा जाता था और अभी भी कहा जाता है। यहां इस नाम से रेलवे स्टेशन भी है, मोहल्ला भी है। लेकिन उस इलाके के आगे जो इस शहर का नक्शा है वह मुगल काल में विकसित हुआ। बाद में अंग्रेज आते हैं और सिविल लाइन का हिस्सा डेवलप होता है। जैसे सरकारी इमारतें, विश्वविद्यालय, हाई कोर्ट और बाकी चीजें हैं।Ó केके पांडेय के मुताबिक इलाहाबाद के लोग प्रयागराजÓ को नहीं अपना पाएंगे। वे बताते हैं, 20 साल पहले यहां कुछ मोहल्लों के नाम बदले गए थे। जैसे एक मोहल्ला है अल्लाहपुर। बरसों पहले उसका नाम बदल कर भारद्वाजपुरम कर दिया गया था। सरकारी कागज पर वह भारद्वाजपुरम है। लेकिन आप यहां किसी आदमी से पूछ लीजिए कि भारद्वाजपुरम कहां है, वह नहीं बता पाएगा। मैं जहां रहता हूं उस इलाके का नाम लुकरगंज है। इसका नाम कई साल पहले संत झूलेलाल नगर कर दिया गया। लेकिन आज कोई नहीं जानता कि झूलेलाल नगर कहां है। तो अब कोई कहेगा कि प्रयागराज जाएंगे?Ó यह बात कहते हुए केके पांडेय हंस पड़ते हैं। योगी सरकार के इस कदम को लेकर इलाहाबादियों की राय में नकारात्मकता का भाव भी साफ देखने को मिलता है। इतिहास के विद्यार्थी रहे अखिलेश कुमार इलाहाबाद के झूंसी इलाके से आते हैं। वे भाजपानीत राज्य सरकार के फैसले और उसकी दलीलों की तीखी आलोचना करते हुए कहते हैं, ये अपने अतीत के बारे में भी अज्ञानी ही हैं। न तो इन्हें पढ़ाई-लिखाई से कोई लेना-देना है और न ही ये उन ऋषि-मुनियों का सम्मान करते हैं जिन्होंने किसी भी स्थिति में रहते हुए सनातन परंपरा का निर्माण किया और उसकी मिसाल कायम की।Ó वे आगे कहते हैं, ये हिंदू पौराणिक विषयों के भी जानकार नहीं हैं। हकीकत यह है कि इलाहाबाद का नाम दीन-ए-इलाही के नाम पर नहीं रखा गया। दरअसल मनु की पुत्री का नाम इला था जिन्हें पुराणों में देवी माना जाता है। झूंसी जहां से मैं आता हूं वहां वे पैदा हुई थीं। देवी इला के नाम पर ही इलाहाबाद का नाम इलावासÓ पड़ा था।Ó अखिलेश के मुताबिक प्राचीन ग्रंथों में यह कहीं नहीं मिलता कि पूरे इलाहाबाद का नाम पहले प्रयागराज था। उन्होंने कहा, पुराणों में प्रयाग का जिक्र है लेकिन, ऐतिहासिक संदर्भों में देखा जाए तो जैसे छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जो महाजनपद होते थे, उसमें भी प्रयाग नाम का कोई जनपद नहीं था। वत्स जो एक महाजनपद था, उसकी राजधानी कौशांबी थी जो इसके (प्रयाग) बगल का ही इलाका है।Ó -मधु आलोक निगम
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