धर्म की राजनीति
19-Nov-2018 09:43 AM 1234806
मायावती, अखिलेश की तर्ज पर चलते योगी आदित्यनाथ भी अपने वोट बैंक को खुश करने के लिये मूर्तियां, पार्क और नाम बदलने की राजनीति कर रहे है। ऐसा करने से पहले उनको इनकी हार से भी सबक लेना चाहिये। इन नेताओं की हार बताती है कि प्रदेश की जनता को दिखावे की राजनीति कभी पसंद नहीं आती है। बहुमत की सरकार अगले ही चुनाव में ताश के पत्तों की तरह बिखर जाती है। योगी सरकार का प्रदर्शन 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की राह में बाधा डाल सकता है। उत्तर प्रदेश में नाम बदलने की राजनीति पुरानी है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की आलोचना करने वाली भारतीय जनता पार्टी भी उसी राह पर चल रही है। योगी सरकार ने मुगलसराय से लेकर फैजाबाद तक के तमाम नाम बदल दिये हैं। इसके बाद भी इस समस्या का कोई छोर दिखाई नहीं पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहित कई जिलों के नाम बदलने की मांग भी चल रही है। संभव है कि योगी सरकार चुनाव सामने देख कुछ और शहरों के नाम भी बदल दें। असल में शहरों के नाम बदलने के पीछे की मंशा केवल अपने वोटबैंक को खुश रखने की होती है। इससे उस शहर की दशा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ऐसे बहुत से शहरों के उदाहरण सामने हैं। राजनीतिक दल इस बहाने यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि अगर उनकी सरकार रही तो राजतंत्र की तरह वह कोई भी फैसला ले सकते हैं। जिस तरह से मायावती और अखिलेश मूर्तियां, पार्क और जिलों के नाम बदलने में लगे थे अब वही काम योगी सरकार कर रही है। योगी सरकार को देखना चाहिये कि पार्क और मूर्तियां बनवाने के बाद भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती हाशिये पर चली गई। भाजपा की राम मंदिर राजनीति भी इस प्रदेश के लोगों ने पसंद नहीं की थी। 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा ढहने के बाद 2017 तक भाजपा बहुमत की सरकार बनाने से दूर रही थी। प्रदेश की जनता ने राम मंदिर की राजनीति को नकार दिया था। ऐसे में फिर से राम मंदिर की राजनीति भाजपा को राजनीति से कहीं बाहर न कर दे यह सोचना चाहिये। उत्तर प्रदेश के इतिहास को देखें तो 1990 के बाद से यह चलन तेज हो गया है। 1990 के पहले कांग्रेस के कार्यकाल में भी ऐसे बदलाव यदाकदा देखने को मिले। उस समय यह कभी-कभी ही होता था। इसके बाद जब मंडल और मंदिर की राजनीति शुरू हुई इस चलन ने जोर पकड़ लिया। बसपा नेता मायावती ने कई शहरों के नाम बदले और कुछ नये जिले भी बना दिये। सपा की सरकार ने मायावती के कुछ फैसलों को बदला और पुराने शहरों के नाम बहाल भी हो गये। अपनी-अपनी सरकार में यह बदलाव होने लगे। दलित विचारक रामचन्द्र कटियार कहते हैं राजशाही के जमाने में जब एक राजा दूसरे राजा के राज्य में कब्जा करता था तो वहां पर अपनी प्रभुसत्ता को दिखाने के लिये जीत का स्तंभ बनाता था। उसी तरह से लोकतंत्र में राजनीतिक दल अपने वोटबैंक को खुश करने के लिये ऐसे फैसले लेने लगे हैं।Ó बसपा ने अपने वोट बैंक को खुश करने के लिये अम्बेडकर पार्क, रमा बाई पार्क, कांशीराम पार्क अपने राज में बनवाये। इनमें उस समय की उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने अपनी मूर्ति के साथ ही साथ कई दलित महापुरूषों की मूर्तियां लगवायीं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और दिल्ली के करीबी नोएडा में ऐसे पार्क आज भी मौजूद हैं। मायावती के समय के अम्बेडकर नगर, संतकबीर नगर, सिद्वार्थनगर, गौतमबुद्व नगर जैसे कई नाम इसका उदाहरण हैं। नये जिले बनने के बाद भी यहां के हालात नहीं सुधरे हैं। अखिलेश सरकार ने अपने समय में जनेश्वर पार्क बनाया और कई जिलों के नाम बदले। इसके बाद भी अपने वोट बैंक को खुश नहीं रख पाये और बहुमत की सरकार अगले चुनाव में धराशायी हो गई थी। हार से नहीं ले रहे सबक योगी सरकार ने अपने के पहले की सरकारों के कामों से कोई सबक नहीं सीखा और सत्ता में आने के बाद विकास की जगह पर ऐसे ही नाम बदलने वाले काम करने लगी। सबसे पहले योगी सरकार ने मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर दीनदयाल उपाध्याय नगर कर दिया गया। इसके बाद इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज कर दिया गया। फैजाबाद का नाम बदल कर अयोध्या कर दिया गया। इकाना क्रिकेट स्टेडियम का नाम बदल कर पूर्व प्रधनमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर रख दिया गया। यह सिलसिला अभी चल रहा है। कुछ लोगों के द्वारा आगरा, लखनऊ और कई दूसरे शहरों का नाम भी बदलने की मांग उठाई जा रही है। जिस तरह से बसपा और सपा ने अपने दलित और पिछड़े वर्ग को खुश करने के लिये नाम बदलने की राजनीति की उसी तरह से योगी सरकार अपने हिंदुत्व के वोट बैंक को खुश करने के लिये काम कर रही है। -मधु आलोक निगम
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