पुलिस विद्राह
18-Oct-2018 09:04 AM 1234804
योगी आदित्यनाथ यूपी की जिस पुलिस की पीठ थपथपाते नहीं थकते थे, उसी के सैकड़ों जवान विद्रोह पर उतर आये हैं। यूपी पुलिस ने एक ऐसा एनकाउंटर कर दिया है जिस पर उठते सवालों के जवाब न तो पुलिस के मुखिया को सूझ रहा है, न खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को। विवेक तिवारी मर्डर केस ने यूपी पुलिस के अनुशासन की हवा निकाल दी है। कई थानों में पुलिसकर्मियों के काली पट्टी बांध कर विरोध जताने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर बगावत की दास्तां सुना रही हैं - जैसे बात अभी की नहीं, बल्कि 1857 के विद्रोह की हो। क्या ये सब सिर्फ पुलिसकर्मियों के एक बेजान संगठन के कारण हो रहा है? जो संगठन अपनी बदलहाल कामकाजी व्यवस्था का दुखड़ा सुनाने की हिम्मत नहीं कर पाता हो - क्या वो इतना ताकतवर हो गया है कि साथी पुलिसकर्मियों को बागी बना दे। निश्चित रूप से प्रशांत चौधरी की पत्नी राखी मल्लिक और कुछ साथियों के मन में गुस्सा होगा - इस बात के लिए कि बचाने के लिए कोई आगे नहीं आया। एक तो पकड़ कर जेल भेज दिया - और ऊपर से बर्खास्त भी कर दिया। पुलिस महकमे को करीब से जानने समझने वाले के लिए लखनऊ एनकाउंटर जैसी घटनाएं मामूली बातें हैं - हाई प्रोफाइल केस हो जाने की वजह से ये सब इस स्तर तक पहुंच गया है। खबर है कि आरोपी सिपाही प्रशांत चौधरी की गिरफ्तारी और बर्खास्तगी के विरोध में 5 अक्टूबर को काला दिवस मनाये जाने से योगी आदित्यनाथ खासे खफा हैं। इलाहाबाद में मीटिंग बुलाने और थानों में काली पट्टी बांध कर विरोध जताने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ एक्शन लिया जाना इस बात की पुष्टि करता है। दो पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी के साथ-साथ तीन को सस्पेंड और तीन थानाध्यक्षों के तबादले भी कर दिये गये हैं। विवेक तिवारी मर्डर केस में पुलिसवालों की हरकत से सरकार पर जो सवाल उठे उस पर तो योगी के मंत्रियों और अफसरों ने जैसे तैसे काबू पा लिया, लेकिन प्रशांत चौधरी को मिल रहे सपोर्ट ने सभी के कान खड़े कर दिये हैं। एक सवाल ये भी है कि प्रशांत की पत्नी राखी मल्लिक के अकाउंट में भारी रकम इतनी जल्दी कहां से जुट गयी? ये कौन लोग हैं जो प्रशांत के सपोर्ट में मुहिम चला रहे हैं। यूपी पुलिस के आईजी अमिताभ ठाकुर ने भी सोशल मीडिया पर अपनी बात रखी है, जो सरकार के खिलाफ है। पुलिसवालों के लिए सोशल मीडिया पॉलिसी जारी करने के साथ ही यूपी पुलिस के डीजीपी ने कुछ और कदम उठाने की घोषणा की है - जिनमें से एक रिफ्रेशर कोर्स भी है। यूपी के डीजीपी ओपी सिंह का मानना है कि पुलिसवालों के लिए पेशेवर प्रशिक्षण न होने के कारण ही लखनऊ की घटना हुई। ओपी सिंह ने समझाने की कोशिश की है कि विवेक तिवारी मर्डर केस में आरोपी सिपाई यूपी पुलिस के ब्रांड एंबेसडर नहीं है। ओपी सिंह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि पुलिस लोगों की हमदर्द है, न कि देखते ही गोली मार देने वाली जैसी की उसकी छवि सामने आ रही है। कहते भी हैं, किसी निहत्थे को गोली मारने का औचित्य क्या है? ओपी सिंह ने पुलिस वालों के लिए पेशेवर प्रशिक्षण शुरू करने की घोषणा की है। ऐसा प्रशिक्षण पहले लखनऊ के छह हजार पुलिसकर्मियों को दिया जाएगा। उसके बाद 300-300 के बैच में पूरे यूपी में करीब एक साल तक चलेगा। डीजीपी ओपी सिंह के पेशेवर प्रशिक्षण कार्यक्रम में एक क्लॉज ऐसा जुड़ा है जिसे समझने की जरूरत लग रही है। जानकारी के मुताबिक ये पेशेवर प्रशिक्षण उन पुलिसवालों के लिए होगा जो 2013 से 2017 के बीच भर्ती हुए हैं। तो क्या पुलिस महकमे के मौजूदा आला अफसरों को एक खास दौर में भर्ती हुए पुलिसवालों में प्रशिक्षण की कमी भर लग रही है - या फिर, विद्रोह के पीछे किसी राजनीतिक कनेक्शन की भी गंध आ रही है। विद्रोह के पीछे राजनीति जानकारी के मुताबिक, प्रशांत चौधरी 2015 बैच का सिपाही है - और उसके समर्थन में सरकारी एक्शन का विरोध जताने वाले ज्यादातर पुलिसकर्मी भी उसी दौर के भर्ती हुए लगते हैं। सवाल ये है कि सिर्फ 2013 से 2017 के बीच भर्ती पुलिसवालों के लिए ही ऐसे प्रशिक्षण की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है? गौर करने वाली बात ये है कि ये वो पीरियड है जब यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार रही और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रहे। तो क्या पुलिस आलाकमान के खिलाफ विरोध का परचम थामे पुलिसकर्मी पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी सरकार के प्रति स्वामिभक्ति दर्शा रहे हैं? क्या उन्हें समाजवादी पार्टी के उपकार का हवाला देकर विरोध के लिए उकसाया जा रहा है? सवाल गहरे हैं और गंभीर भी। यदि यूपी पुलिस वाकई राजनीतिक पार्टियों के हाथ में खेल रही हैं, तो ये गंभीर ही नहीं, घातक परंपरा का जन्म होगा। -मधु आलोक निगम
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