महंगाई मारेगी ड़ंक
02-Nov-2018 07:29 AM 1234872
चुनावी साल में महंगाई का बड़ा महत्व होता है। सत्तारुढ़ पार्टी की कोशिश रहती है कि महंगाई पर लगाम कसकर वह फिर से सत्ता की सवारी कर सके। लेकिन मध्यप्रदेश सहित पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बजते ही महंगाई ढंक मारने लगी है। खासकर प्याज ने तो नेताओं की आंख में आंसू ला दिए हैं। हालांकि उन्हें उम्मीद है कि नवंबर के प्रथम सप्ताह में नई प्याज के आते ही उसके भाव कंट्रोल में आ जाएंगे। गौरतलब है कि अक्टूबर के आखरी पखवाड़े में प्याज के दाम में प्रति क्विंटल 600 रुपये तक की बढ़ोतरी हुई है। थोक मार्केट में प्याज के दाम 1500-1600 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2000-2100 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गए। चिल्हर में 25 रुपये किलो तक बिक रहा है। हालांकि आलू के दाम स्थिर हैं। यह 1500 रुपये प्रति क्विंटल तक बिक रहा है। आलू-प्याज कारोबारियों का कहना है कि ऊपरी मार्केट में ही प्याज की कीमतों में तेजी आ गई है। पिछले दिनों हुई बारिश के चलते प्याज की फसल खराब हुई है, जिससे आवक घट गई है। वहीं डिमांड भी बढ़ गई है। इसके चलते कीमत बढ़ रही है। व्यापारिक सूत्रों का कहना है कि आवक में कमी के चलते त्योहारों में एक बार फिर इसकी जमाखोरी हो सकती है, ऐसे में दाम और बढ़ेंगे। उधर थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की बढ़ती दर सरकार के लिए चिंता का विषय बननी चाहिए, क्योंकि इसके पहले खुदरा मुद्रास्फीति में भी बढ़त देखने को मिली और यह एक तथ्य है कि थोक मुद्रास्फीति का असर खुदरा मुद्रास्फीति पर पड़ता है। ध्यान रहे कि आम तौर पर जब ऐसा होता है, यानी खुदरा के साथ थोक मुद्रास्फीति दर में वृद्धि होती है तो महंगाई सिर उठा लेती है। इसके पहले कि ऐसा हो और महंगाई एक मसला बने, सरकार को उस पर लगाम लगाने के लिए गंभीरता से सक्रिय होना चाहिए। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले किसी भी सरकार के लिए इससे बुरा और कुछ नहीं हो सकता कि महंगाई सिर उठा ले। सरकार इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकती कि महंगाई बढऩे का अंदेशा एक ऐसे समय उभर रहा है, जब आम चुनाव भी सिर पर हैं और देश चुनावी माहौल में प्रवेश कर चुका है। सरकार के नीति-नियंताओं को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि त्योहारी सीजन भी निकट आ चुका है। सितंबर माह में थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर 4.53 प्रतिशत से बढ़कर 5.13 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष वह इसी कालखंड में 3.14 प्रतिशत ही थी। साफ है कि मुद्रास्फीति की मौजूदा दर को चिंताजनक ही कहा जाएगा। वैसे उसकी बढ़त पर हैरानी इसलिए नहीं, क्योंकि बीते कुछ समय से पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। यह करीब-करीब तय माना जा रहा था कि इसका असर मुद्रास्फीति पर पड़ेगा। हालांकि सरकार ने पेट्रोल और डीजल के मूल्य कम करने की कोशिश की है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ते रहने के कारण वह नाकाम साबित होती हुई दिख रही है। इस पर हैरत नहीं कि विपक्ष महंगे पेट्रोल और डीजल को एक राजनीतिक मसला बनाने की कोशिश में है। यह सही है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते मूल्य पर भारत सरकार का कोई जोर नहीं, लेकिन वह केवल यह तर्क देकर कर्तव्य की इतिश्री भी नहीं कर सकती कि पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़ते दामों के लिए उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। सरकार को उन स्थितियों के बारे में सोचना चाहिए, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम इसी तरह बढ़ते रहें। इस पर विचार इसलिए होना चाहिए, क्योंकि कच्चे तेल की खरीद में अधिक डॉलर का भुगतान रुपए की कमजोरी का एक कारण भी बन रहा है। यह ठीक है कि खुद प्रधानमंत्री तेल कंपनियों के अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल ऐसा लगता नहीं कि पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़ते दामों पर अंकुश लगाने के किसी ठोस उपाय तक पहुंचा जा सका है। यदि खुदरा और थोक मुद्रास्फीति इसी तरह बढ़ती रही तो यह भी तय है कि रिजर्व बैंक की ओर से ब्याज दरों में नरमी की उम्मीद नहीं की जा सकती और सरकार इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकती कि यदि थोक मुद्रास्फीति में वृद्धि का सिलसिला थमा नहीं तो उस पर अर्थव्यवस्था को दुरुस्त रखने का दबाव और बढ़ जाएगा- इसलिए और भी, क्योंकि औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े भी गिरावट दर्शा रहे हैं। -विशाल गर्ग
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^