क्या दाग धुलेगा?
02-Nov-2018 07:34 AM 1234925
क्या कांग्रेस अध्यक्ष राहुल खुद मानते हैं कि वह पप्पू नहीं हैं। उन्हें भाजपा और आरएसएस ने पैसा खर्च करके पप्पू बनाया है। इसके पीछे उनका तर्क है कि राजनीति में आने के दिन से ही भाजपा और आरएसएस को उनके भविष्य का एहसास हो गया था, इसलिए सबने दुष्प्रचार करके पप्पू बना दिया। कांग्रेस अध्यक्ष का दावा है कि दिसंबर 2018 तक वह पप्पू की छवि को तोड़ देंगे, लेकिन मप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के निर्णय ने एक बार फिर सवाल को मौजूं बना दिया है। सवाल है कि क्या राहुल गांधी पप्पू के दाग को धो पाएंगे? उप्र विधानसभा चुनाव में गठबंधन के लिए कांग्रेस की पहली पसंद बसपा थी। कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 में पहली बार कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और बसपा प्रमुख मायावती की मंच से दिखी केमिस्ट्री ने एक नया फ्लेवर दिया। इसके बाद से भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेकने के लिए बनने वाले महागठबंधन में मायावती और बसपा धुरी की तरह दिखाई देने लगी। यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी और राहुल गांधी के निर्देश के बाद म.प्र., छत्तीसगढ़ और राजस्थान के नेताओं ने बसपा के साथ गठबंधन की संभावना को टटोलना शुरू किया। प्रयास भी हुए, सोनिया और राहुल ने हस्तक्षेप भी किया, लेकिन अंतत: गठबंधन नहीं हो पाया। बताते हैं अंतिम समय में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की राय के साथ जाना उचित समझा और बसपा पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अलग होती चली गई। राजस्थान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट का उत्साह हिलोरे मार रहा है। वह राज्य में कांग्रेस की सरकार के सत्ता में आने के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त हैं। प्रचंड बहुमत से 2013 में राजस्थान की सत्ता में लौटी वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ जबरदस्त सरकार विरोधी लहर है। वहीं कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि बसपा का राजस्थान में प्रभाव बहुत सीमित है। गठबंधन के लिए 200 विधानसभा वाले राजस्थान में कम से कम 15 सीटें देनी पड़ेंगी। इसका कोई औचित्य नहीं है। कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत, वरिष्ठ नेता सीपी जोशी समेत अन्य की राय को मानते हुए कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश के नेताओं के साथ जाना उचित समझा। जबकि बसपा कांग्रेस पार्टी के राजस्थान में गठबंधन करने के काफी संवेदनशील थी। छत्तीसगढ़ और म.प्र. में कांग्रेस बसपा के साथ गठबंधन की इच्छुक थी। छत्तीसगढ़ को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया का राजनीतिक गणित एक आकार ले रहा था। लेकिन इस बीच अजीत जोगी ने बसपा प्रमुख से मुलाकात की। जोगी की पार्टी के बसपा प्रमुख ने अच्छा संकेत दे दिया। बसपा प्रमुख मायावती का राजनीति का एक अंदाज है। वह किसी के हाथ में अपनी गर्दन नहीं देती। 90 के दशक से राजनीति में दबाव झेलते हुए मायावती को इस कला में महारत हासिल है। उन्हें चिकोटी काटना भी आता है। लिहाजा उन्होंने यह कहते हुए अजीत जोगी के साथ गठबंधन करना उचित समझा कि राज्यों में राजनीतिक दल अपना हित देखें और लोकसभा चुनाव में महागठबंधन जैसी अवधारणा पर जो दिया जाना ठीक रहेगा। इसी क्रम में मायावती हरियाणा में इनेलो के साथ तालमेल कर चुकी थी। हालांकि छत्तीसगढ़ में रमन सिंह सरकार के खिलाफ चल रहे जबरदस्त सरकार विरोधी लहर के कारण कांग्रेस ने इसे आसानी से स्वीकार कर लिया अब बारी म.प्र. की है। राहुल गांधी इसके लिए संवेदनशील थे। उनकी सलाह पर म.प्र. कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने मायावती से पिछले सप्ताह वार्ता की। बसपा के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्र से कांग्रेस के अन्य नेता बातचीत करते रहे। बसपा प्रमुख से भी चर्चा हुई। बसपा की मांग कोई 50 सीट की थी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल 30 सीट तक बसपा को देने पर सहमत थे। बसपा का म.प्र. में कुल वोट बैंक सात प्रतिशत के करीब का है। पिछले चुनाव में उसे चार सीटें मिली थी। 10 सीट पर उसके उम्मीदवार के वोट 30 हजार से अधिक थे। लेकिन बसपा जिन सीटों को मांग रही थी, उसके लिए म.प्र. कांग्रेस के नेता सहमत नहीं हो पाए। अंतत: यहां भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने न चाहते हुए प्रदेश कांग्रेस के साथ जाना उचित समझा। तालमेल नहीं हो पाया। सवाल फिर उठकर खड़ा हो गया। राहुल गांधी पप्पू हैं? निर्णय नहीं ले पाते। तभी बसपा के साथ कांग्रेस का तालमेल नहीं हो पाया। यह सवाल कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय 24 अकबर रोड पर लोगों की जुबान पर उठा। दीन दयाल उपाध्याय मार्ग स्थित भाजपा मुख्यालय में उठा। वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव भी कहते हैं कि राहुल गांधी में वो क्षमता नहीं दिखाई पड़ रही है। वह अभी कांग्रेस पार्टी की प्राथमिकताएं, दशा, दिशा नहीं तय कर पा रहे हैं। मुद्दे नहीं तय कर पा रहे हैं। हालांकि राम बहादुर राय का मानना है कि राहुल गांधी ने बहुत कुछ अपने आपको ठीक किया है, लेकिन इतना भर काफी नहीं है। भाजपा के एक महासचिव ने यह कहकर टिप्पणी से इनकार कर दिया कि राहुल गांधी पर बहुत ध्यान देने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि एक तरफ राहुल गांधी कम से कम जोखिम लेकर (बसपा से तालमेल) अच्छा नतीजा लाने का तर्क देते हैं और दूसरी तरफ पार्टी के भीतर चल रहे द्वंद का उनके पास कोई इलाज नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की टीम के एक सदस्य का कहना है कि लोगों को कहने दीजिए और आप 12 दिसंबर 2018 का इंतजार कीजिए। सूत्र का कहना है कि इसके बाद राहुल गांधी को पप्पू कहने का शब्द चर्चा में ही नहीं आएगा। राहुल गांधी के साथ करीब-करीब हर दौरे में रहने वाले सूत्र के मुताबिक म.प्र. में बसपा के साथ न जाने का फैसला लेना आसान नहीं था। लेकिन तमाम बदलावों पर विचार करने के बाद यह निर्णय हुआ है। सूत्र का कहना है कि तीनों राज्यों में राहुल गांधी जहां जा रहे हैं, उनकी जनसभा, रोड-शो या किसी भी कार्यक्रम में भरपूर जनसमूह उमड़ रहा है। इससे भाजपा में मंथन का दौर चल रहा है। यही नहीं संघ से भीड़ की वास्तविकता का आंकलन कराया जा रहा है। - दिल्ली से रेणु आगाल
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