02-Nov-2018 07:02 AM
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अमृतसर में दशहरे के दिन शाम को जब रावण को जलाया जा रहा था तभी आज के रावणरूपी लापरवाहों की लापरवाही ने कईयों की जिंदगी छीन ली। पंजाब के अमृतसर में जोड़ा रेल फाटक के पास रावण दहन देख रहे लोगों पर ट्रेन के चढ़ जाने से अब लगभग 60 से अधिक लोगों की मौत हो गई। दस सेकंड के भीतर ही दशहरे का पर्व मातम में बदल गया। भारत के इतिहास में ऐसी घटना पहले कभी नहीं हुई, जब रेल से कट कर इतनी बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई हो। यह हादसा पहली नजर में सरकार और प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है। इसे आपराधिक लापरवाही कहा जाना चाहिए। अगर सरकार और प्रशासन सतर्क रहते तो यह हादसा नहीं होता। हादसे में जिन परिवारों के लोग मारे गए हैं, उनकी भरपाई कोई नहीं कर सकेगा।
इस हादसे ने स्थानीय जिला प्रशासन, राज्य सरकार, रेलवे और घडिय़ाली आंसू बहाने वाले नेताओं को कठघरे में खड़ा कर दिया है। पंजाब के मुख्यमंत्री ने इस घटना के बाद जिस तरह की हीला-हवाली दिखाई, वह शर्मनाक है। हादसे में बारह घंटे लग गए मुख्यमंत्री को अमृतसर पहुंचने में। जिस राज्य का मुख्यमंत्री इतना संवेदनहीन हो, उससे क्या उम्मीद की जा सकती है? हालांकि मुख्यमंत्री ने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं और चार हफ्ते के भीतर रिपोर्ट मांगी है। यह ऐसा हादसा है जिसके लिए कोई एक, दो या तीन व्यक्ति ही दोषी नहीं हैं। इसके लिए पूरा प्रशासन और सरकार दोषी है। यह घटना बताती है कि पंजाब सरकार कैसा राज चला रही है। उसके राज में चल रही प्रशासनिक मशीनरी में कैसी जंग लगी पड़ी है। लगता है जिलों के अफसर एकदम लापरवाह हो चुके हैं और आमजन की सुरक्षा से उन्हें कोई सरोकार नहीं रह गया है। सबसे पहली बात तो यह सामने आई है कि जिस जगह रावण दहन हुआ, उस जगह प्रशासन ने इस आयोजन की इजाजत ही नहीं दी थी। अगर ऐसा हुआ तो इससे प्रशासन पर ही सवाल खड़े होते हैं कि क्यों नहीं फिर उसने आयोजकों को रोका, स्थानीय पुलिस क्या करती रही, अनुमति के बिना हो रहे आयोजन को रोकने के लिए प्रशासन ने क्या कदम उठाए। इन सवालों का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। अगर स्थानीय प्रशासन की इजाजत के बिना कोई भी इस तरह का आयोजन करता है जिसमें लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सुनिश्चित नहीं होती है, तो इसके लिए आयोजक के साथ-साथ प्रशासन भी उतना ही दोषी है।
पुलिस हादसे के काफी देर बाद मौके पर पहुंची। जाहिर है, मेले जैसे आयोजन के दौरान पुलिस का जैसा इंतजाम रहना चाहिए, वह नहीं था। स्थानीय पुलिस के अलावा यह रेलवे पुलिस की जिम्मेदारी भी बनती है कि ऐसे मौकों पर वह पटरियों के आसपास लोगों को जमा न होने दे। रावण दहन देखने के लिए जो लोग रेल पटरी पर जमा हो गए थे, उन्हें वहां से हटाने के लिए पुलिस का कोई बंदोबस्त नहीं था। किसी ने भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई, पुलिस नदारद रही, अफसर सोते रहे और आयोजक अपने में मस्त रहे। यह हादसा बता रहा है कि लापरवाही किसी एक की नहीं, बल्कि कई स्तरों पर हुई है। दशहरे का मेला रेल पटरी के किनारे लगाया जा रहा है, इसकी रेलवे को कोई जानकारी नहीं दी गई थी। अगर रेलवे को इस आयोजन की पूर्व सूचना दी जाती तो ट्रेन का ड्राइवर रफ्तार तेज न रखता।
-नवीन रघुवंशी