मी टू वाला फिल्टर
18-Oct-2018 09:10 AM 1234892
भारत में इन दिनों मी टू ऐसा फिल्टर बन गया है जिसमें राजनेताओं से लेकर फिल्म, खेल और अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोगों के नापाक इरादों को जाहिर किया जा रहा है। सबसे विवादित और चर्चित मामला केन्द्रीय मंत्री एमजे अकबर का है। 14 महिलाओं ने अकबर को यौन उत्पीडऩ का दोषी बताया है। यह तमाम कथित घटनाएं 15-20 साल पहले हुईं। लिहाजा, इसमें किसी तरह का आपराधिक मुकदमा संभव नहीं है। एमजे अकबर को लेकर चल रहा हालिया मामला भारतीय राजनीति में निर्णायक क्षण हो सकता है। जिस तरह से उनके खिलाफ यौन उत्पीडऩ के आरोपों को देखा जा रहा है और उसके बाद राजनीतिक आकाओं द्वारा कार्रवाई को लेकर चल रहे घटनाक्रम के सिलसिले में कम से कम यह बात कही जा सकती है। यह भारत में सोशल मीडिया और राजनीति पर उसके असर के मामले में भी निर्णायक क्षण है। वो पहले ऐसे मंत्री हो सकते हैं, जिन्हें सोशल मीडिया पर बढ़ते दबाव के कारण शायद अपने पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़े। आम तौर पर अब तक चलन रहा है कि अगर किसी शख्स को इस तरह के अपराध में सजा मिलती है या उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज होता है, तो उसे मंत्री का ओहदा या अन्य अहम पद छोडऩे को कहा जाता है। अकबर के खिलाफ अब तक कोई एफआईआर नहीं है। हालांकि, महिलाओं के आरोपों को भरोसा करने योग्य मानते हुए और मीडिया में अकबर के आसपास बुनी गई कहानी को ध्यान में रखें तो विदेश राज्य मंत्री के पास अपने पक्ष में सफाई पेश करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं बचता है। अकबर अफ्रीका के आधिकारिक दौरे पर थे और वो 14 अक्टूबर की सुबह ही भारत लौटे। भले ही उन पर अपने पद से इस्तीफा देने के लिए दबाव तेजी से बढ़ रहा हो, लेकिन उनका मंत्रालय ज्यादा कुछ नहीं कह रहा है। बहरहाल, मुमकिन है कि वो बाद में इस संबंध में एक बयान जारी कर दें। विदेश से लौटकर दिल्ली हवाई अड्डे पर पत्रकारों से बातचीत में भी उन्होंने इस तरह की बात कही थी। जहां तक इस संबंध में फैसला लेने में हुई देरी का सवाल है, तो बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अकबर की विदेश यात्रा के दौरान ही अगर उन पर कार्रवाई करने का फैसला किया जाता तो यह शायद सरकार के लिए ठीक नहीं रहता। साथ ही, यात्रा के बीच में उनसे ही स्पष्टीकरण मांगने की बात भी किसी तरह से उचित नहीं थी। बीजेपी नेताओं के मुताबिक, उच्च अधिकारियों, जूनियर या सीनियर मंत्रियों के द्विपक्षीय दौर के लिए एक निश्चित प्रक्रिया है, जिसका अवश्य पालन किया जाना चाहिए। इन नेताओं का कहना था कि मंत्री आखिरकार देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिष्टचार और औपचारिकता का यह भी तकाजा है कि अकबर को अपना पक्ष रखने के लिए भी मौका दिया जाना चाहिए। उन्हें आरोपों पर नेतृत्व के सामने जवाब देने का अवसर मिलना चाहिए। साथ ही, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह फिलहाल राजधानी दिल्ली में नहीं हैं, बैठक भी तत्काल संभव नहीं है। अकबर के इस्तीफे पर आखिरी फैसला इस तरह की सुनवाई के बाद ही किया जा सकता है। यहां इस बात का भी जिक्रकरना जरूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे राजनेता हैं, जिन्होंने सबसे पहले सोशल मीडिया की ताकत को महसूस किया। मोदी ने 2014 के आम चुनावों में इसे अपने (और बीजेपी के भी) फायदे के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया और वो अब भी ऐसा कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर चल रहे मी टू कैंपेन ने शहरी भारतीय समाज में हलचल पैदा कर दी है और भारत में अकबर पहले ऐसे हाई प्रोफाइल शख्स हैं, जिन पर यौन उत्पीडऩ के आरोपों के बाद अपने पद से इस्तीफा देने का दबाव लगातार बढ़ रहा है। यहां यह बात भी बेहद महत्वपूर्ण है कि मोदी सोशल मीडिया का रुख खुद और अपनी पार्टी के खिलाफ होते हुए चुपचाप नहीं देख सकते। इसके अलावा, अकबर के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई एक तरह का उदाहरण भी पेश करेगी। ऐसा पहली बार हुआ है, जब सोशल मीडिया पर किसी मंत्री के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाए गए हैं। संघ के लिए काफी मायने रखता है यह मुद्दा मोदी की वैचारिक पाठशाला राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ (आरएसएस) व्यक्ति निर्माण में गर्व की बात करता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल में दिल्ली में आयोजित संघ के एक कार्यक्रम में 3 दिन तक चले व्याख्यान में व्यक्ति निर्माण पर विस्तार से भाषण दिया। अकबर पर जिस तरह के आरोप लगे हैं, वो सीधे तौर पर उन सिद्धांतों के उलट हैं, जिसकी चर्चा मोहन भागवत ने इस कार्यक्रम के दौरान अपने भाषण में की थी। कुछ साल पहले आरएसएस ने अपने एक नेता के खिलाफ सिर्फ इसलिए सख्त कार्रवाई करने का फैसला किया था, क्योंकि उनकी एक गतिविधि को नैतिक भ्रष्टता का नमूना माना गया। हालांकि, उनके खिलाफ यौन उत्पीडऩ का कोई आरोप नहीं था। अकबर के खिलाफ इस तरह के आरोप मोदी को यह साबित करने का अवसर भी मुहैया कराते हैं कि जब वो (मोदी) महिलाओं की गरिमा की बात करते हैं, तो इससे उनका क्या आशय होता है। बीजेपी ने अकबर को राजनीतिक गुमनामी से बाहर निकाला और उसके बाद सबसे पहले पार्टी का प्रवक्ता बनाया। इसके बाद इस पार्टी ने अकबर को राज्यसभा सांसद और आखिरकार अहम माने जाने वाले विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री का पद दिया। - कुमार विनोद
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