17-Sep-2018 09:21 AM
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पिछले दिनों लगभग ढाई दशक पुराना सियासी दरख्त क्या दरका, पूरे सूबे का सियासी समीकरण ही बदल गया। आगामी लोकसभा चुनाव में जहां अभी तक भाजपा के टक्कर में सपा-बसपा गठबंधन मजबूती से खड़ा नजर आ रहा था अब इसी गठबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हालांकि समाजवादी के भीष्म पितामह सरीखे पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सपा को टूटने से बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है लेकिन पार्टी में शिवपाल समर्थकों की बहुतायत ने सपा के मंसूबों पर पानी फेर रखा है। दावा किया जा रहा है कि सपा के कई बड़े नेता शिवपाल के सम्पर्क में बने हुए हैं और जल्द ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर देंगे।
समाजवादी पार्टी में टूट का परिणाम यह हुआ कि जहां कुछ समय पूर्व तक समाजवादी पार्टी गठबंधन (सपा-बसपा गठबंधन) में अग्रणी पार्टी के तौर पर प्रभावशाली बनी हुई थी अब बाजी बसपा के हाथ में है। जाहिर तौर पर इस बदले समीकरण के बाद बसपा लोकसभा चुनाव में अधिक सीटों की मांग करेगी और सपा को बसपा की शर्तें मानने के लिए विवश होना पड़ेगा। जहां तक सपा में टूट के बावजूद गठबंधन के बने रहने की बात है तो अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं मिले है जिससे यह कहा जाए कि सपा-बसपा गठबंधन भी दरकने की कगार पर है।
जहां एक ओर लोकसभा चुनाव को लेकर सपा को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ रही है वहीं दूसरी ओर वट्वृक्ष बनने से पहले ही समाजवादी कुनबे की शाखाएं एक-एक करके टूटने लगी हैं। दरअसल वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने आश्चर्यजनक तरीके से बसपा और भाजपा को चैंकाते हुए पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर कब्जा जमाया। यहीं से जन्म होता है समाजवादी वृक्ष की शाखाओं के चिटखने का क्रम। वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के बाद सबकी निगाहें मुख्यमंत्री पद की ओर टिकी हुई थीं क्योंकि तत्कालीन सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री बनने से इंकार कर केन्द्र की राजनीति में ध्यान लगाने का ऐलान कर दिया था। मुलायम के छोटे भाई शिवपाल से लेकर उनके चचेरे भाई रामगोपाल और यहां तक कि बड़बोले आजम खां तक सूबे का मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब संजो चुके थे। मुलायम के हरदम इर्द-गिर्द रहने वाले आजम खां सहित शिवपाल यादव और रामगोपाल को उस वक्त झटका लगा जब मुलायम सिंह यादव ने सबकी आशाओं को चकनाचूर करते हुए अपने पिता होने का कर्तव्य निभाया और बेटे अखिलेश को सूबे की गद्दी सौंप दी। सही मायने में यदि कहा जाए तो यही वह समय था जब समाजवादी कुनबे में नफरत के बीच पड़े।
अपने परिवार वालों की तरफ से बगावत का भान अखिलेश यादव को भी हो चुका था। यही वजह है कि सोची-समझी रणनीति के तहत अखिलेश ने अपने चाचा शिवपाल यादव से दूरी बनानी शुरु कर दी। जब समाजवादी पार्टी सूबे की सत्ता से बाहर हुई तो अखिलेश ने मुलायम को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटाकर स्वयं राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर कब्जा जमाया उसी के बाद से शिवपाल यादव नयी पार्टी गठन की सूचना देने के लिए किसी खास मौके की तलाश में थे। अब उन्होंने नई पार्टी बना ली है। देखना यह है कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे में इस टूटन का असर प्रदेश की राजनीति पर किस तरह पड़ता है।
-मधु आलोक निगम