विकास से हिन्दुत्व पर क्यों लौटे मोदी?
02-Aug-2013 09:43 AM 1234850

नरेन्द्र मोदी के दो बयानों ने कांग्रेस को संजीवनी प्रदान की एक बयान में उन्होंने कहां है कि वे हिन्दु राष्ट्रवादी हैं और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है दूसरे बयान में उन्होंने कहा कि पिल्ला भी गाड़ी के नीचे आ तो उन्हें दु:ख होगा मोदी ने यह बयान गुजरात दंगों के संदर्भ में दिया था इसके बाद उन्होंने कहा कि कांग्रेस पर जब भी संकट आता है तो वह धर्मनिरपेक्षता के बुर्के में छिप जाती है। यह सारे बयान मोदी की हिन्दुवादी छवि को पुष्ट कर रहे हैं।
मोदी अभी तक विकास की बात करते आए हैं गुजरात का चुनाव भी उन्होंने विकास के आधार पर ही लड़ा है लेकिन अचानक उनका हिन्दुत्व पर लौटना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। संघ को मालूम है कि मोदी भले ही विकास के पुरोधा के रूप में स्थापित हो जाएं लेकिन धर्म निरपेक्ष कभी भी नहीं हो सकते क्योंकि सारी पार्टीयां मोदी को हिन्दु सम्प्रदायिकता का प्रतीक मानती हंै। ऐसी स्थिति में मोदी हिन्दुत्व व विकास साथ लेकर चले तो शायद विजयश्री मिल सकती है इसलिए संघ ने जानबूझकर मोदी को हिन्दुत्व पर भी अपने विचार प्रकट करने का कहा है। मोदी के इस बयान ने कांग्रेस को संजीवनी प्रदान कर दी। कांग्रेस अच्छी तरह जानती है कि विकास ओर सुशासन जैसे नारों से वह चुनाव नहीं जीत सकेगी क्योंकि पिछले पांच सालों में इन दोनों मोर्चो पर केन्द्र सरकार नाकाम रही है भ्रष्टाचार भी एक बड़ा मुददा है जो कांग्रेस को तंग करेगा। ऐसी स्थिति में कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता की आड़  में न केवल युपीए को संगठित रख सकती है बल्कि आगामी चुनाव में अपनी स्थिति बेहतर बनाए रख सकती है। इसी कारण कांग्रेस को जब यह मुद्दा मिला तो उसने इस मुद्दे को हाथों हाथ लिया और मोदी को हिन्दुराष्टवादी नेता घोषित करने में जुट गई। कुछ हद तक कांग्रेस की चाल कामयाब भी रही देश में एक बार फिर हिन्दुत्व को लेकर बहस उठ खड़ी हुर्ई है और बहस के केन्द्र में नरेन्द्र मोदी ही हैं। कांग्रेस आम जनता को यह बता रही है कि मोदी धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं बल्कि हिन्दु राष्ट्रवादी हंै। मोदी की दृष्टि से देखा जाए तो हिन्दुराष्ट्रवादी और कांग्रेस पर हमला यह दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं इनके द्वारा मोदी कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करना चाह रही है। मोदी का कहना है कि कांग्रेस न तो हिन्दुओं की हिमायती है न ही मुसलमानों की हालांकि इस कदम ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को चिंतित किया है। इसका भाजपा पर असर भी दिखाई देने लगा है। दिल्ली भारतीय जनता पार्टी के उपाध्याक्ष अमीर राजा हुसैन ने मोदी के बयानों से नाराज होकर पार्टी छोड़ दी पार्टी छोडऩे से पहले हुसैन ने एक सेमिनार में भाजपा के हिन्दुत्व ऐजन्टे पर चिंता भी जताई थी और कहा था कि विकास पर हिन्दुत्व पर लोटना उन्हें गंवारा नहीं। हुसैन के कदम से लगता है कि भाजपा के न चाहने के बावजूद हिन्दुत्व एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है और आगामी चुनाव में यदि मोदी को कमान सौपी जाती है तो सम्प्रदायिक धु्रवीकरण होना तय है। जिसमें भाजपा अलग थलग भी पड़ सकती है। यदि ऐसा हुआ तो आगामी चुनाव में भले ही मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सीटें बढ़ जाएं वह सरकार बनाने की स्थिति तब भी नही होगी। एनडीए के बिखराव का फायदा कांग्रेस को मिलेगा या फिर कोई तीसरा मोर्चा अस्तत्वि में आ सकता है। जिसके सपने ममता बैनर्जी और नवीन पटनायक ने देखना शुरू भी कर दिया है। शायद इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोदी को सलाह दी है कि वह सबको साथ लेकर चले और हाल ही में राजनाथ सिंह के नेतृत्व में दिल्ली में हुई कोर कमेटी की बैठक में जो नजारा देखने को मिला उससे स्पष्ट हो गया कि हिन्दुत्व पर लौटना भाजपा के लिए संभव नहीं है।
इस बैठक में 21 उपसमितियां बनाने के निर्णय से यह संकेत मिलता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भले ही मोदी को अपने प्रचार के केन्द्र में रखे किन्तु सच तो यह है कि मोदी को फ्री हेन्ड देना संभव नहीं है। इसीलिए मोदी यूपीए सरकार पर आक्रमण तो करते रहेंगे पर वे स्वयं कभी भी पूरी कमान अपने हाथ में नहीं लेंगे। यही वजह है कि मोदी को चुनाव में अहम भूमिका देने के बावजूद भाजपा ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के एक वर्ग ने मोदी को हिन्दुत्व का प्रतीक घोषित करना शुरू कर दिया है मुंबई में भाजपा की चुनाव अभियान समिति ने सारे शहर में पोस्टर लगाकर मोदी को हिन्दू राष्ट्रवादी और देशभक्त के रूप में प्रचारित किया। यह एक सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है। इसका अर्थ यह है कि कांग्रेस जहां भाजपा को हिन्दुत्व में उलझाए रखना जानती है। वहीं भाजपा भी कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता में उलझाए रखना चाहती है। लेकिन इस कवायद ने चुनावी माहौल को अलग दिशा में मोड़ दिया है। आशंका है कि अगले चुनाव में विकास की जगह धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता एक बड़ा मुद्दा बन जायेगा। जिससे तस्वीर बदल भी सकती हैं।
धु्रवी करण के यह संकेत अभी से स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं। बहुजन समाज पार्टी की सुपीमो मायावती ने मोदी समर्थक विजय बहादुर सिंह को पार्टी से निकाल दिया है तो उधर बाबा रामदेव ने कहा है कि कांग्रेस मुसलमानों को कुत्ता समझती है। दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह ने भी मोदी को हिन्दुत्व राष्ट्रवादी न बनकर राष्ट्रवादी हिन्दू बनने की सलाह दी है। कुल मिलाकर देश में हिन्दू बनाम मुसलमान का माहौल तैयार किया जा रहा है जो देश के सद्भाव के लिए चिंताजनक है यदि यही हाल रहा तो चुनाव के समय जनता भ्रमित हो जाएगी। देश की जनता कांग्रेस से नाखुश है और इस कारण भाजपा को जो लाभ मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पा रहा है। रिटेल एफडीआई से लेकर पैट्रोलियम पदार्थों के दाम तेल कम्पनियों के हवाले करने के एक के बाद एक ऐसे फैसले कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार करती चली जा रही है कि जिससे उसको दुश्मन की ज़रूरत ही नहीं है। दरअसल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक नौकरशाह से सीधे देश के मुखिया बना दिये गये जिससे उनको जनता की हालत ही नहीं उसकी चाहतों का भी नहीं पता। इसी का नतीजा है कि वे आज तक जनता के बीच जाकर एक चुनाव लडऩे की हिम्मत तक नहीं जुटा सके हैं। यही हाल कांग्रेस सुप्रीमो और यूपीए की मुख्या सोनिया गांधी का है कि विदेशी माहौल में पैदा होने के साथ ही पली बढ़ी होने की वजह से उनको आम देशवासी की आवश्यकताओं और मिज़ाज की बिल्कुल भी समझ नहीं है।
उधर आगामी चुनाव में क्षेत्रीय दलों की सीटें और बढऩे जा रही हैं लेकिन विडंबना यह है कि उनके पास विदेश नीति से लेकर आर्थिक नीतियों का कोई ठोस विकल्प तक मौजूद नहीं है जिससे वे अगर भानुमति का कुनबा जोड़कर जैसे तैसे सत्ता में आ भी जाती हैं तो ना तो ऐसी सरकार स्थायी हो सकती है और ना ही वे जनता के लिये सिवाय दो चार लोकलुभावन योजनायें चलाने के विकास और सर्वसमावेशी उन्नति का कोई प्रोग्राम लागू कर पायेंगे। ऐसी सरकार बिना कांग्रेस के सपोर्ट के बन भी नहीं सकती जिससे कांग्रेस कुछ समय के लिये ऐसा करके समर्थन वापस लेने का अपना पुराना राग अलापेगी जिससे वह मध्यावधि चुनाव कराकर फिर से सत्त में आने का रास्ता तलाश कर सके।

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