18-Oct-2018 08:11 AM
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अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत और रूस के बीच एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 की खरीद से जुड़ी 5.2 अरब डॉलर की डील पर दस्तखत हो गए। दोनों देशों के बीच समझौते तो कई हुए, अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग पर भी सहमति बनी, लेकिन जिस वजह से राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी की इस मुलाकात पर सबकी नजरें टिकी थीं, वह एस-400 से जुड़ा यह सौदा ही है। इस डील को लेकर अमेरिका का सख्त एतराज था और ठीक इसी सौदे को मुद्दा बनाकर वह चीन की कई रक्षा इकाइयों पर प्रतिबंध लगा चुका है। पहले संकेतों में और बाद में खुले तौर पर अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि अगर भारत ने रूस से एस-400 खरीदने का समझौता किया तो वह प्रतिबंधों के दायरे में आ जाएगा।
पिछले कुछ समय से भारत और अमेरिका की नजदीकियां जिस तेजी से बढ़ी हैं, उसे देखते हुए यह आशंका जोर पकडऩे लगी थी कि कहीं अमेरिका अपने अन्य समर्थक देशों की तरह भारत पर भी अपनी इच्छाएं तो नहीं लादने लगा है। जबकि रूस भारत का पुराना सहयोगी रहा है और भारत की थल सेना, वायु सेना और नौसेना को मजबूत बनाने में उसकी बड़ी भूमिका रही है। यह करार दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में नए युग की शुरुआत है। भारत को जिस तरह से चीन और पाकिस्तान के साथ सीमाओं पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उसे देखते हुए एस-400 वायु रक्षा प्रणाली अत्यावश्यक हो गई थी। इसमें दो राय नहीं कि इससे रक्षा तंत्र को मजबूत करने में काफी मदद मिलेगी। रूस ने भारत को आतंकवाद से निपटने में भी मदद देने का भरोसा दिया है।
भारत ने रूस के साथ जो रक्षा करार किए हैं, उसके दूरगामी संकेत हैं। भारत के इस साहसपूर्ण फैसले से यह साफ हो गया है कि वह किसी देश का पिछलग्गू बन कर नहीं रहेगा। अपनी सुरक्षा के लिए भारत को क्या फैसले करने हैं और क्या नहीं, इसका निर्णय वह किसी के दबाव में आकर नहीं करेगा। भारत ने रूस के साथ करार करके अमेरिका को यह जता दिया है कि वह उसके कहने पर चलने वाला नहीं। भारत के इस फैसले से दुनियाभर में एक कूटनीतिक संदेश यह भी गया है कि भारत की विदेश नीति कहीं से ढुलमुल या कमजोर नहीं है। चाहे रूस हो या अमेरिका या फिर चीन, सभी से रिश्तों में सद्भाव और संतुलन की झलक हमारी विदेश नीति में मिलेगी। अमेरिका ने पिछले साल एक कानून बनाया था जिसके तहत उसने अपने सहयोगी देशों को रूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों के साथ किसी भी तरह का व्यापार और समझौते नहीं करने की चेतावनी दे रखी है। काउंटरिग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन एक्टÓ नाम के इस कानून का जो भी देश उल्लंघन करेगा वह अमेरिकी दंड का भागी होगा। यही चेतावनी अमेरिका ने भारत को भी दी है। इतना ही नहीं, चार नवंबर के बाद ईरान से तेल खरीद भी बंद कर देने को कहा है।
अमेरिका शुरू से ही पाकिस्तान पर अपना वरदहस्त बनाए हुए है और उसे हथियार, सैन्य और आर्थिक मदद तक देता आया है। जबकि पाकिस्तान इसका इस्तेमाल कैसे करता है, यह अमेरिका भलीभांति जानता है। लेकिन पिछले तीन दशकों में अमेरिका ने ऐसा कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जो पाकिस्तान को भारत में आतंकवाद फैलाने से रोक पाया हो। एस-400 वायु रक्षा प्रणाली की खरीद से अमेरिका की हवा खराब इसलिए है कि यह दुनिया की सबसे अत्याधुनिक मिसाइल रक्षा प्रणाली है। भारत के इस शक्ति से लैस होने से पाकिस्तान भी परेशान है। यों पिछले डेढ़ दशक में भारत के अमेरिका के साथ भी रिश्ते काफी मजबूत हुए हैं, खासतौर से रक्षा और एटमी ऊर्जा के क्षेत्र में। इसके अलावा अमेरिका के आइटी उद्योग में भारत का बड़ा योगदान रहा है। ऐसे में भारत ने रूस और अमेरिका दोनों को साथ लेकर चलने की जो रणनीति बनाई है, वह न केवल इन देशों से रिश्तों के, बल्कि शक्ति संतुलन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है।
आज नहीं तो कल यह होना ही था
ऐसे में आज नहीं तो कल, भारत को अपने व्यवहार से अमेरिका को यह संकेत देना ही था कि अपनी नीतियां वह अपने राष्ट्रहित के हिसाब से ही तय करेगा और किसी भी मजबूरी में वह अपने इस हक को नहीं छोड़ सकता। आज की दुनिया में कोई भी देश पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं है। सभी अपनी जरूरतों के लिए किसी न किसी हद तक एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। भारत भी रक्षा जरूरतों के लिए लंबे समय से रूसी सहयोग पर निर्भर रहा है, जबकि निर्यात के मामले में अमेरिका पर उसकी निर्भरता जगजाहिर है। ऐसे में अमेरिका से करीबी रिश्तों का मतलब अगर रूस से दूरी के रूप में नहीं लिया गया तो रूस से समझौते का मतलब अमेरिका से नाराजगी भी नहीं माना जाना चाहिए। भारतीय कूटनीति की अगली चुनौती अमेरिका को यही बात समझाने की है कि रूस से ताजा समझौते का मतलब अमेरिका की अवहेलना करना नहीं है। रूस से रक्षा सामग्री और ईरान से तेल खरीदना भारत की ऐसी ही जरूरतें हैं, जिनका ध्यान अमेरिका को रखना चाहिए। नए अमेरिकी कानून काटसा में जितनी छूट की गुंजाइश अब तक थी, उसे इन दोनों मामलों में जारी रखना भारत ही नहीं, अमेरिका के भी हित में है।
-बिंदु माथुर