आसान नहीं डगर...
18-Oct-2018 08:05 AM 1234799
मप्र विधानसभा चुनावों में इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ी टक्कर होती दिख रही है। भाजपा यहां 2003 से लगातार सत्ता में बनी हुई है। दस वर्षों के कांग्रेस के शासन के बाद एमपी की सत्ता में भाजपा का लगातार यह तीसरा कार्यकाल है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कोशिश चौथी बार भगवा पार्टी को सत्ता में वापसी कराना है लेकिन इस बार कांग्रेस की एकजुटता और सत्ता विरोधी लहर उनकी जीत के अभियान पर ग्रहण लगा सकती है। इसको देखते हुए अमित शाह सहित पूरा केन्द्रीय नेतृत्व मध्यप्रदेश पर नजर गड़ाए हुए है। केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर मुख्यमंत्री के साथ कंधे से कंधा मिलाकर एक-एक रणनीति पर विचार कर रहे हैं। यही नहीं अमित शाह भी रोड शो, सभा और रैली के साथ ही चुनावी रणनीति पर भी मंथन कर रहे हैं। जो इस बात का संकेत है कि शिवराज के लिए इस बार का चुनाव आसान नहीं है। अगड़ी और दलित जातियों की नाराजगी के बीच उन्हें किसानों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ रहा है। फसलों की कीमत गिरने से किसान गुस्से में हैं। पिछले साल मंदसौर में पुलिस फायरिंग में पांच किसानों की मौत का मामला भी अभी ठंडा नहीं पड़ा है। कांग्रेस अपनी चुनावी रैलियों में किसानों के मुद्दों को जोर-शोर से उठा रही है। मध्य प्रदेश में चुनाव के दौरान कांग्रेस नेताओं में एकजुटता कायम करने की सारी कवायद के बावजूद पार्टी में गुटबाजी खत्म नहीं हो पाई है। यह गुटबाजी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकती है। भाजपा के लिए यहां एक बड़ी चुनौती अगड़ी और पिछड़ी जातियों की नाराजगी को शांत करना है। गौरतलब है कि शिवराज सिंह चौहान को हाल के दिनों में अगड़ी जातियों एवं अनुसूचित जातियों दोनों के विरोध-प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा है। पहले एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित संगठनों ने प्रदर्शन किया जबकि इस एक्ट में संशोधन के खिलाफ अगड़ी जातियों ने अपना विरोध जताकर शिवराज सिंह को मुश्किल में डाल दिया। इन विरोध-प्रदर्शनों के बीच शिवराज सिंह को भाजपा के चुनाव अभियान को आगे बढ़ाने और पार्टी को सत्ता में वापसी कराने की चुनौती है। इसके अलावा 15 साल की सत्ता विरोधी लहर भी कहीं न कहीं शिवराज के खिलाफ है। इन सबके बावजूद भाजपा को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों से राजनीतिक फिजा बदलेगी और वह दोबारा सत्ता में काबिज होगी। लेकिन भाजपा की उम्मीद पर इस बार दो नई पार्टियां भी पानी फेरती नजर आ रही हैं। नौकरियों में आरक्षण की सरकारी नीति के खिलाफ सपाक्स और बेरोजगार आदिवासी युवाओं का जनजातीय संगठन जयस दोनों ही चुनौती दे रहे हैं। जयस का कहना है कि वह 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करेगी। इनमें वे 47 सीटें भी शामिल हैं जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। वहीं, सपाक्स का कहना है कि वह विधानसभा की सभी 230 सीटों पर या तो अपने उम्मीदवार खड़े करेगी या किसी का समर्थन करेगी। सपाक्स का दावा है कि उसे पिछड़े समुदाय का समर्थन प्राप्त है। हालांकि भाजपा का कहना है कि उस पर इन दोनों पार्टियों का कोई असर नहीं पडऩे वाला। प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह कहते हैं कि चुनाव में विकास हमारा मुद्दा है और जनता को यह पता है कि भाजपा ही इस प्रदेश में विकास जो जारी रख सकती है। पंचायत से पार्लियामेंट तक प्रचंड विजय चाहिए उधर शाह का कहना है कि आज मप्र सहित देश के अनेक राज्यों में हमारी सरकारें हैं, केंद्र में हमारी सरकार है। सबसे ज्यादा सांसद और विधायक हमारी ही पार्टी के हैं। देश के 70 प्रतिशत भू-भाग पर भाजपा की सरकारें हैं। हर तरफ जीत मिल रही है। लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब हमें हार ही हार मिला करती थी। उन विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करके, लगातार परिश्रम करके हमारे पूर्वजों ने पार्टी को इस स्तर तक पहुंचाया है और उन्होंने हमें एक जिम्मेदारी दी है। अगले 50 सालों तक पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक पार्टी का भगवा ध्वज लहराता रहे, यह जिम्मेदारी हमें अपने पूर्वजों ने सौंपी है। इसके लिए सिर्फ सरकार बनाने से काम नहीं चलेगा, हमें प्रचंड विजय हासिल करनी होगी। इतनी प्रचंड विजय हासिल करनी होगी कि मध्यप्रदेश से एक आंधी उठे जो 2019 में पूरे देश में सुनामी बन जाए और पूरे देश में भाजपा का झंडा फहराए। - अजय धीर
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