18-Oct-2018 07:45 AM
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गौरतलब है कि दो माह पूर्व खरीफ वर्ष 2018-19 के लिए फसलों का नया न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जारी करते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार ने दावा किया था कि अब किसानों को उनकी उपज की लागत मूल्य का कम से कम डेढ़ गुना अधिक भाव मिलेगा। इससे प्रदेश के किसानों में भी उम्मीद जगी थी कि मंडियों में भाव अच्छे मिलने से खेती लाभ का धंधा बनेगी। वे बैंकों का कर्ज चुका सकेंगे। लेकिन, खरीफ की नई फसल मंडियों में आते ही केंद्र सरकार के डेढ़ गुना अधिक भाव दिलाने के दावे हवा में उड़ गए। खरीफ की नई फसलों के जो भाव मंडियों में बोले जा रहे हैं, उससे लाभ दो दूर किसानों का लागत मूल्य भी नहीं निकल पा रहा। व्यापारियों की मनमानी के सामने लाचार किसान उत्पादन मूल्य से कम लागत पर फसल बेचने को मजबूर है।
मंडियों में गल्ला व्यापारी एवं बिचौलियों की मनमानी के चलते किसानों को उनकी उपज का लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा। ऐसे में किसान मंडियों में लुटने को मजबूर हैं। प्रदेश की अधिकांश कृषि उपज मंडियों में खरीफ की प्रमुख 5 फसलों में से चार के भाव लागत मूल्य से कम हैं। केन्द्र सरकार ने सोयाबीन का समर्थन मूल्य 3399 प्रति क्विंटल तय किया है पर मंडी में भाव 2000-2850 रुपए तक बोले जा रहे हैं। जो समर्थन मूल्य से 750 रुपए कम है। उड़द का समर्थन मूल्य 5600 तय किया गया है। जबकि मंडी में उड़द के भाव अधिकतम 3500 रुपए क्विंटल बोले जा रहे हैं। यह समर्थन मूल्य से 2100 रुपए कम है।
कृषि कारोबार से जुड़े जानकारों का कहना है, देश के अंदर अनाज के मूल्य पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं। इसलिए किसानों को उनकी उपज का उचित दाम नहीं मिल पा रहा। बाजार में सक्रिय बिचौलिये एवं मंडी में व्यापार कर रहे गल्ला व्यापारी मंडियों में अनाज की आवक बढ़ते ही उसके दाम मनमानी तरीके से घटा देते हैं। जैसे ही उपज किसानों के हाथ से निकल जाती है, उसके दाम बढऩा शुरू हो जाते हैं।
उधर, किसानों ने खरीफ सीजन की सोयाबीन फसल निकाल ली है। खेतों में प्रति एकड़ करीब 2 क्विंटल से 5 क्विंटल तक उपज निकल रही है। इससे किसानों की लागत ही नहीं निकल पा रही है। कर्ज में दबे किसानों को सोयाबीन की फसल से इस साल भी फायदा नहीं हुआ है। हालत यह है कि करीब डेढ़ माह पहले सोयाबीन की फसल में तना छेदक रोग लग गया था। इससे भी किसानों को काफी नुकसान हुआ।
सीहोर जिले के सेवनिया के किसान राम सिंह परमार ने बताया कि कटाई के दौरान अचानक बारिश हो गई थी। इससे खेतों में कटी फसलों के भीग जाने से दाना दागदार हो गया। इससे भीगे हुए सोयाबीन का दाम कम मिल रहा है। फसल का उत्पादन भी बहुत कम हुआ है।
प्रदेश की कई मंडियों में सोयाबीन की बंपर आवक हो रही है। लेकिन किसान मायूस नजर आ रहे हैं। क्योंकि जहां एक ओर पंजीयन कराने के बाद भी मजबूरी में समय से पहले सोयाबीन बेचना पड़ रही है। वहीं दूसरी ओर सोयाबीन के दाम समर्थन मूल्य से भी कम मिल रहे हैं। बता दें की कुछ माह पूर्व शासन द्वारा सोयाबीन का समर्थन मूल्य 3399 रुपए घोषित किया था। हालांकि यह मूल्य भी किसान को कम लग रहा था। लेकिन वर्तमान में इस दाम से भी कम दामों पर सोयाबीन नीलाम हो रही है। अधिकतर मंडियों में सोयाबीन 2900 से 3000 तक के दाम पर नीलाम हो रहे हैं। इस मान से समर्थन मूल्य और नीलामी मूल्य में करीब 400 रुपए का अंतर है।
कंपनियां मालामाल, किसान बदहाल
देश का किसान मर रहा है। आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहा है, क्योंकि उसके पास घर चलाने और खाने के पैसे नहीं है। वहीं किसानों को खेती करने के लिए माल बेचने वाली कंपनियां हर साल मुनाफा कूट रही है। न तो किसी कंपनी को नुकसान होता है, और न ही किसी की बिक्री घटती है। बीते साल भारत की ट्रैक्टर कंपनियों ने सात लाख से ज्यादा ट्रैक्टर बेचे। इससे एक साल पहले की तुलना में यह संख्या 22 फीसदी अधिक है। देश की सबसे बड़ी ट्रैक्टर निमार्ता कंपनी महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अपनी घरेलू बिक्री में 22 फीसदी की तेजी का दावा किया। देश की दूसरी सबसे बड़ी ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनी टैफे ने भी बिक्री में 16 फीसदी का इजाफा दिखाने वाले आंकड़े पेश किए।
- विकास दुबे