क्या वास्तव में देश इतना सस्ता है?
02-Aug-2013 09:09 AM 1234783

कांग्रेस में नए-नए पधारे और समाजवादी पूँजीपतिÓ से कांग्रेसी सर्वहाराÓ बने अभिनेता बनाम नेता राजबब्बर ने घोषणा की है कि देश की मायानगरी  मुम्बई में 12 रुपये में सुपोषित भोजन, जिसमें प्रोटीन, बसा, कार्बोहाईड्रेट, लवण, लोहा, विटामिन इत्यादि सार्थक मात्रा में मौजूद हैं- किया जा सकता है। हालांकि बाद में उन्होंने माफी मांगकर अपना बयान वापस ले लिया। कांग्रेस के ही एक शब्दवीर रशीद मसूद ने तो एक कदम आगे बढ़कर घोषणा कर दी है कि दिल्ली में तो 5 रुपये में ही खाना मिलता है। फारुख अब्दुल्ला भी कुछ बोल रहे हैं। इन बयानों के बीच देश में गरीबी के मानकों को लेकर फिर बहस चलने लगी है।
तेंदुलकर समिति ने सरकार को बताया  था कि देश के शहरी 33 रु। 33 पैसे और ग्रामीण 27 रु। 20 पैसे प्रतिदिन में गुजारा कर सकते हैं। इस आंकलन को पहले आलोचना के बाद खारिज कर दिया गया था। लेकिन अब सरकार सब्सिडी सीधे खातों में डालने की योजना बना रही है, इसीलिये हितग्राहियों की संख्या के सही मापन के लिए सरकार ने फिर इसी समिति की सिफारिशों को तवज्जो दी है। हालाँकि गरीबी घटने का सरकार का दावा विपक्ष तो क्या, उसके ही मंत्री के गले नहीं उतर रहा है। केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि यह दावा पूरी तरह गलत है। भाजपा का कहना है कि यह गरीबों को उनके हक से वंचित करने की साजिश है। सवाल तो यह भी है कि जिस तेंडुलकर समिति की सिफारिश को सरकार खारिज कर चुकी है, उसी को आधार बनाकर दोबारा गरीबी के आंकड़े क्यों जारी किए गए। योजना आयोग  को आज की महंगाई और जीवन यापन की ऊंची लागत के आधार पर नई सीमा तय करनी चाहिए।
भाजपा नेता प्रकाश जावड़ेकर ने भी कहा है कि सरकार गरीबों की संख्या कम दिखाना चाहती है। ताकि सरकारी योजनाओं का फायदा कम से कम लोगों को मिल सके। उधर, माकपा नेता वृंदा करात का कहना है कि गरीबी के आंकड़े गरीबों के घाव पर नमक छिड़कने जैसे हैं।
विश्व बैंक गलत है?
विश्व बैंक के अनुसार  भारत के 70 प्रतिशत लोग दो डॉलर (करीब 120 रुपए) से कम में दिन बिताते हैं। इन्हें आमतौर पर गरीब माना जाता है। सरकार के 33।33 रुपए के आंकड़े पर सवाल का यह भी एक आधार है। सवाल यह भी है कि सरकार इसी आकड़े पर क्यों कायम रहना चाहती है। इसका सीधा जवाब यह है कि यूपीए सरकार खाद्य सुरक्षा योजना ला चुकी है। यदि विश्व बैंक के अनुसार चला गया तो सरकार को लेने के देने पड़ जायेंगे शायद इसी कारण खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने भी कहा है कि राज्य सरकारें गरीबी के नए आंकड़े इस्तेमाल कर सकती हैं। इससे कई लोग बीपीएल श्रेणी से बाहर हो जाएंगे। तेंडुलकर कमेटी के सुझावों की दोबारा पड़ताल करने का जिम्मा सी। रंगराजन समिति को सौंपा गया है। उसे जून 2014 में रिपोर्ट देना है। लेकिन योजना आयोग जल्दबाजी दिखा रहा है।  सरकार का दावा है कि पिछले आठ साल में देश में गरीबी 15।3 फीसदी घटी है। गरीबी का अनुपात 2004 - 05  में 37 ।2  प्रतिशत था। यह 2011 -12  में घटकर 21।9 प्रतिशत रह गया है। लेकिन बढ़ती महंगाई इस दावे के पोल खोल रही है। उधर वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने महंगाई के लिए आम जनता को ही जि़म्मेदार ठहराया है। चिदंबरम  का कहना है कि लोग अब पहले की तुलना में अधिक सब्जी, फल और मीट खरीद रहे हैं। जिसके कारण देश में महंगाई बढ़ी है।
कांग्रेसियों की यह कवायद देश में नयी बहस को जन्म दे रही है। आरोप यह भी लगाये जा रहे हैं कि चुनाव में जाने के लिए सरकार लोक लुभावन वादे तो कर रही है लेकिन उन वादों को पूरा करने के खजाना खाली है जिसे गरीबों का हक़ मरकर भरा जा रहा है। खाद्य सुरक्षा विधेयक के खर्च को पहले सवा लाख करोड़ किया गया बाद में सरकार ने कहा कि इस पर कुल 23 हजार करोड़ रूपये के लगभग भर पड़ेगा। अचानक खर्च  में कमी का कारण अब समझ में आ रहा है। लेकिन दिग्विजय और कपिल सिब्बल गरीबों के साथ खड़े हो गए हैं। अपनी पार्टी के खिलाफ।

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