एक तीर से दो निशानें
18-Oct-2018 06:37 AM 1234879
जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उनमें से मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर सबकी नजर है। तीनों राज्यों में भाजपा की सरकार है और इसे कायम रखने के लिए पूरी भाजपा एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है। देखा यह जा रहा है कि चुनावी रणनीति बनाने में इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अधिक सक्रिय हैं। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी अपनी पार्टी के प्रादेशिक नेताओं से अधिक सक्रिय हैं। दोनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं की सक्रियता बताती है कि इन राज्यों की विधानसभा चुनावों का क्या महत्व है। दरअसल इन चुनावों को लोकसभा चुनाव 2019 का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसलिए पार्टियां एक तीर से दो टारगेट साधने में जुटी हुई हैं। सभी की निगाह 2019 पर भले ही पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हो, लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियों का फोकस लोकसभा चुनाव पर है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इनके नतीजों का असर 2019 में सबसे ज्यादा पड़ेगा। सफलता के रथ पर सवार भाजपा और उसके सहयोगी दलों का देश के 19 राज्यों और 70 फीसदी आबादी पर राज चल रहा है। इन चार राज्यों में विधानसभा की 560 सीटें हैं। जिनमें से 377 पर भाजपा जबकि 152 पर कांग्रेस का परचम लहरा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में इन राज्यों की 62 सीटें भाजपा ने जीती थीं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इनके नतीजों का असर 2019 में सबसे ज्यादा पड़ेगा। सफलता के रथ पर सवार भाजपा और उसके सहयोगी दलों का देश के 19 राज्यों और 70 फीसदी आबादी पर राज चल रहा है। इन चार राज्यों में विधानसभा की 560 सीटें हैं। जिनमें से 377 पर भाजपा जबकि 152 पर कांग्रेस का परचम लहरा रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में इन राज्यों की 62 सीटें भाजपा ने जीती थीं। भाजपा मोदी के भरोसे भाजपा निश्चित तौर पर अपने मुख्यमंत्रियों से अधिक प्रधानमंत्री के चेहरे पर विश्वास करेगी। उनके कार्यों को भुनाने की कोशिश करेगी। दूसरी ओर, कांग्रेस की सिर्फ चार राज्यों में सरकार है। उसके पास बड़े राज्यों में पंजाब और कर्नाटक (जेडीएस के सहयोग से) बचे हुए हैं। ऐसे में राहुल गांधी के सामने मिजोरम को बचाने की भी बड़ी चुनौती है। क्योंकि इस समय भाजपा पूर्वोत्तर में काफी मजबूत स्थिति में है। अगर कांग्रेस राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में से किसी प्रदेश को भाजपा से छीन पाई तो राहुल गांधी के पक्ष में सकारात्मक माहौल बनेगा और उससे गठबंधन करने से बच रहे दलों का भी रवैया बदलेगा। सियासी जानकारों का मानना है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ताकत लगाएगी कि किस तरह से वहां पर भाजपा को सत्ता से बेदखल किया जाए, जबकि भाजपा कांग्रेस से मिजोरम को भी छीनने की कोशिश करेगी ताकि उसका कांग्रेस मुक्त भारत का सपना पूरा हो सके। मप्र में जोरदार मुकाबला मध्यप्रदेश में विधानसभा की 230 सीटें हैं जिस पर 28 नवंबर को वोटिंग होनी है और गिनती 11 दिसंबर को। मध्यप्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं जिसमें से 26 पर भाजपा का कब्जा है तो कांग्रेस के पास केवल 3 सीटें हैं। कांग्रेस को उम्मीद है कि वह मध्यप्रदेश में विधानसभा और लोकसभा दोनों में अच्छा करेगी। वजह है शिवराज सिंह चौहान के 15 सालों का शासन साथ ही एक पीढ़ी वहां तैयार हो गई है जिसने दूसरे दल का शासन देखा ही नहीं है। कांग्रेस के कमलनाथ के पास अनुभव है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की युवाओं में खासी अपील है। महत्वपूर्ण बात ये है कि 2015 में रतलाम सीट पर लोकसभा के लिए उपचुनाव हुआ था जिस पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी और भाजपा से ये सीट छीनी थी। शिवराज सिंह चौहान को किसानों का भी गुस्सा झेलना पड़ रहा है, खासकर मंदसौर में किसानों पर हुई फायरिंग की घटना के बाद। राजस्थान हिंदुत्व की प्रयोगशाला राजस्थान भी हिंदुत्व की बड़ी प्रयोगशाला बन रहा है। यहां गोहत्या को लेकर हिंसा की कई घटनाएं हुई हैं। देखना यह है कि इसका फायदा भाजपा उठाएगी या फिर कांग्रेस। पिछले दिनों हुए राजस्थान के अलवर और अजमेर लोकसभा सीट उप चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को हरा दिया था। इसके साथ ही मांडलगढ़ विधानसभा पर भी उसे जीत हासिल हुई थी। यहां भाजपा का बड़ा चेहरा रहे घनश्याम तिवाड़ी ने पार्टी से नाता तोड़कर भारत वाहिनी पार्टी बना ली है। जो सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ेगी। घनश्याम तिवाड़ी उन गिने चुने नेताओं में शामिल रहे हैं, जिन्होंने राजस्थान में भाजपा की जड़ों को जमाने का काम किया। जाति से ब्राह्मण घनश्याम तिवाड़ी का अपने समाज पर जबरदस्त प्रभाव माना जाता है। यही वजह है कि 1980 के बाद से तिवाड़ी कई सीटें बदल चुके हैं लेकिन हर नई जगह से वे पहले से ज्यादा वोटों से जीतते हैं। छत्तीसगढ़ में ऊहापोह छत्तीसगढ़ ऊहापोह में है। अजीत जोगी और मायावती के हाथ मिलाने से समीकरण बदलेंगे यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन भाजपा नेता और मुख्यमंत्री रमन सिंह अपने काम के भरोसे चुनाव में उतर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि चुनाव अवधारणा और अनिश्चितता का खेल है। इन राज्यों के चुनाव में राहुल गांधी से बड़ी चुनौती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए है। क्योंकि भाजपा शासित तीन राज्यों में से एक भी खिसका तो केंद्र के खिलाफ भी जनता में एक धारणा बनेगी, जो 2019 के चुनाव में खतरनाक साबित हो सकती है। इसलिए तीन बड़े राज्यों में उसे गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। रही बात राहुल गांधी की तो ये चुनाव तय करेंगे कि 2019 में उनका भविष्य क्या होने वाला है। वो पहले के मुकाबले गंभीर हुए हैं। उनके भाषण में पैनापन आया है, लेकिन उन्हें सफलता तब मिल सकती जब कांग्रेस अपनी सेल्फ गोल की आदत छोड़ दे। बयानवीरों पर काबू रखे। कांग्रेस के पास अनर्गल बयानबाजी करने वाले नेताओं की फौज है, इस चुनाव में उनकी जुबान को पार्टी काबू में रख ले तो बड़ी बात होगी। वरना भाजपा उसे भुनाने में देर नहीं लगाएगी। बात करते हैं तेलंगाना की। यहां विधानसभा की 119 सीटें हैं। यहां 7 दिसंबर को वोटिंग होनी है। तेलंगाना में इस बार चंद्रशेखर राव के टीआरएस के खिलाफ विपक्ष ने पूरी घेराबंदी की है। विपक्ष ने एकजुट होकर गठबंधन बनाया है जिसे महाकुटामी कहा जा रहा है यानी महागठबंधन। इसमें कांग्रेस, तेलगु देशम पार्टी, सीपीआई और तेलंगाना जनसमिति शामिल है। कहा जा रहा है 80 सीटों के आसपास कांग्रेस चुनाव लड़ेगी, बाकी सहयोगियों को दिया जाएगा। यदि तेलंगाना के लोकसभा सीटों की बात करें तो यहां 17 सीटें हैं। मेघालय विधानसभा की 40 सीटें हैं और लोकसभा की 1 सीट। विधानसभा और लोकसभा दोनों पर कांग्रेस का कब्जा है मगर जिस तरह से भाजपा का उत्तर पूर्व के राज्यों पर कब्जा करने का अभियान चल रहा है, कांग्रेस को काफी सावधान रहने की जरूरत है। अब लोकसभा सीटों के आंकड़ों को देखें इन सारे राज्यों को मिला दें तो लोकसभा की 83 सीटें बनती हैं। इसमें से 60 भाजपा को पास है और कांग्रेस के पास केवल 9 सीटें। यानी 2019 में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। उसे बस अपने पत्ते सही ढंग से खेलने हैं क्योंकि 11 दिसंबर को जब पांच राज्यों के विधानसभा के आंकड़े आएंगे तो वो इस स्थिति में होंगे कि चीजों का सही आकलन कर सकें।
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