यह मेहरबानी क्यों?
18-Oct-2018 06:30 AM 1234789
विधानसभा चुनाव में जहां बसपा और सपा ने कांग्रेस से गठबंधन नहीं करके उसके सियासी समीकरणों को बुरी तरह बिगाड़ दिया है। वहीं विधानसभा चुनाव में पहली बार किस्मत आजमाने जा रहे सपाक्स और जयस भाजपा की जीत की राह में रोड़ा बन सकते हैं। सियासी समीकरण को देखें तो इन छोटे दलों ने दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के सामने एक ऐसा चक्रव्यूह सा रच दिया है, जिसको तोड़ पाना इन भाजपा-कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। दो नई पार्टियों सपाक्स (सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था) और जयस (जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन) के चुनावी मैदान में उतरने से भाजपा और कांग्रेस का चुनावी खेल बिगड़ सकता है। ये दोनों पार्टियां विंध्य, ग्वालियर-चंबल और मालवा-निमाड़ क्षेत्र में करीब 80 विधानसभा सीटों पर हार-जीत का गणित गड़बड़ा सकती हैं। इसको देखते हुए भाजपा और कांग्रेस ने इन क्षेत्रों में डैमेज कंट्रोल की तैयारी शुरू कर दी है। गौरतलब है की सपाक्स पार्टी ने प्रदेश की सभी 230 सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा की है। मध्य प्रदेश सपाक्स समाज के संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी को इस नई पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया है। वहीं जयस ने प्रदेश की 80 सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा की है। इस कारण यह विधानसभा चुनाव जातिगत रूप ले चुका है। सपाक्स का सबसे अधिक असर विंध्य और ग्वालियर-चंबल संभाग में दिखेगा। विंध्य के सात जिलों में कुल 30 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से 16 भाजपा, 12 कांग्रेस और 2 बसपा के पास हैं। इस इलाके को जातियों की आबादी के नजरिए से देखा जाए तो यहां 29 प्रतिशत सवर्ण, 14 प्रतिशत ओबीसी, 33 प्रतिशत एससी/एसटी और 24 प्रतिशत अन्य की हिस्सेदारी है। सतना, रीवा जैसे बड़े जिलों वाले इस अंचल में ब्राह्मण-ठाकुर राजनीति का बोलबाला रहता है और सियासी पार्टियों के साथ दोनों ही वर्गों के बीच शह-मात का खेल चलता रहता है। हालांकि अंचल की कुछ सीटों पर ओबीसी के साथ ही एससी-एसटी वर्ग भी खासा असर डालते हैं। मप्र की राजनीति में ग्वालियर-चंबल संभाग वर्तमान में सबसे प्रभावी है। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र राजा-महाराजाओं की सियासत का केंद्र है। इस अंचल की खास बात ये है कि यहां एससी-एसटी, सवर्ण, ओबीसी तीनों वर्ग समान रूप से निर्णायक हैं। जबकि कांग्रेस-भाजपा के अलावा बसपा और सपा भी यहां अपना अच्छा खासा प्रभाव रखती हैं। इस क्षेत्र में 28 प्रतिशत सवर्ण, 32 प्रतिशत ओबीसी, 21 प्रतिशत एससी, 8 प्रतिशत एसटी और 11 अन्य जाति के लोग रहते हैं। एट्रोसिटी एक्ट के विरोध का गढ़ बने ग्वालियर-चंबल अंचल में सपाक्स पार्टी के गठन के साथ ही नए राजनीतिक समीकरण बनना तय हो गए हैं। सपाक्स पार्टी के रूप में यहां के नाराज सवर्णों को अपने विरोध के इजहार का एक निश्चित ठिकाना मिल गया है। नई स्थितियां दोनों प्रमुख दलों के लिए चुनौती बनकर उभरेंगी। कांग्रेसी अब तक यह सोचकर निश्चिंत थे कि एट्रोसिटी एक्ट का विरोध ईवीएम तक पहुंचते-पहुुंचते उनके पक्ष में हो जाएगा। भाजपा ये मानकर बैठी थी कि नाराज सवर्ण विकल्पहीनता की स्थिति में घर वापस आ जाएंगे। अब दोनों दलों को सवर्णों का वोट हासिल करने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। यूं तो सपाक्स पार्टी के सभी 230 सीटों पर चुनाव लडऩे के ऐलान से असर प्रदेश भर में दिखेगा, लेकिन ग्वालियर-चंबल अंचल में इसके विशेष मायने हैं। जयस बनेगा विलेन मप्र में सरकार बनाने में आदिवासी वोट बैंक बड़ी भूमिका निभाते हैं। प्रदेश में 47 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इन सीटों पर एकतरफा जीत हासिल करते हुए 32 सीटों पर कब्जा जमाया था, लेकिन इस बार इन सीटों पर आदिवासियों की आवाज को उठाने वाले संगठन जयस ने ताल ठोंक दी है। जयस के सबसे बड़े नेता डॉ. हीरालाल अलावा ने भाजपा को चुनौती दी है कि इस बार वो इन 47 सीटों में से एक भी सीट जीतकर दिखाए। ऐसे में ये तय है कि इस बार आदिवासियों को लेकर भी भाजपा मुश्किल में पडऩे जा रही है। वहीं किसी समय कांग्रेस का वोट बैंक माने जाने वाले आदिवासियों के सामने उनके बीच काम करने वाला एक विकल्प मौजूद है, जिससे कांग्रेस की राह भी आसान नहीं है। मप्र की राजनीति में कहा जाता है कि जिसने मालवा-निमाड़ जीत लिया उसकी सरकार बननी तय है। अंचल में इस बार आदिवासियों का संगठन जयस भारी पड़ता दिख रहा है। इस संगठन के लगातार बढ़ रहे प्रभाव से भाजपा ही नहीं कांग्रेस भी चिंतित है। जयस का सीधा असर 22 आरक्षित और इससे लगी 6 सामान्य सीटों (जहां आदिवासी वोटों की संख्या 25 हजार से ज्यादा है) पर पूरी तरह से दिख रहा है। यही वजह है कि प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा व कांग्रेस के सामने अपने-अपने आदिवासी वोट बैंक को बचाने की बड़ी चुनौती बन गई है। - विशाल गर्ग
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