यह मेहरबानी क्यों?
18-Oct-2018 06:26 AM 1234938
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के ठीक 2 दिन पहले राज्य के पंडे-पुजारियों को उनके पूजा पाठ का फल दे दिया है। फल भी ऐसा कि हर किसी को अपने पुजारी न होने पर पछतावा हो और अगले जन्म में ब्राह्मण कुल में पैदा होकर पुजारी बनने के लिए ज्यादा से ज्यादा दान दक्षिणा मंदिरों में चढ़ाएं। अब राज्य के पुजारियों को पेट भरने की नहीं बल्कि भाजपा को वोट दिलवाकर फिर से सत्ता में लाने की चिंता है, जिससे आगे भी उन्हें मुफ्त की मलाई मिलती रहे और वे बेफिक्र होकर काम धंधा और मेहनत किए बगैर मुफ्त के माल पुए उड़ाते रहें। एक झटके में राज्य सरकार ने कैसे पुजारियों को मालामाल कर दिया है उसे इस फैसले से आसानी से समझा जा सकता है जिसके तहत ऐसे मंदिर जिनके पास खेती किसानी की जमीन नहीं है उनके पुजारियों को सरकार हर महीने 3 हजार रु. देगी। जिन मंदिरों के पास पांच एकड़ तक की जमीन है उनके पुजारियों को 2100 रु. महीने के देगी। जिन मंदिरों के पास 5 से 10 एकड़ तक की जमीन है उन पुजारियों को 1500 रु. हर महीने दिये जाएंगे और जिन मंदिरों के पास 10 एकड़ से ज्यादा का रकबा है उनके पुजारियों को 500 रु. महीना सरकारी खजाने से दिया जाएगा। सरकारी मेहरबानियों का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हो जाता बल्कि सरकार पुजारियों को देश भर के तीर्थ स्थल भी मुफ्त में घुमाएगी और जिन पुजारियों के पास अपने मकान नहीं हैं उन्हें गांवों में मुख्यमंत्री आवास योजना के और शहरों में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान भी बनाकर देगी। साल में दो बार सरकारी खर्चे पर पुजारियों की सेहत की जांच होगी। इस फैसले में सरकार ने यह व्यवस्था भी कर दी है कि पुजारी मंदिरों की 10 एकड़ तक की जमीन की पैदावार यानि आमदनी खुद रखेंगे और जमीन 10 एकड़ से ज्यादा हो तो उसे जब चाहें नीलाम कर सकते हैं। अब ग्राम सभाएं न तो पुजारियों की नियुक्ति कर सकती हैं और न ही उन्हें हटा सकती हैं। जाहिर है अब राज्य का हर पुजारी लाखों करोड़ों में खेलेगा वजह उसे तिहरी आमदनी होगी। भक्त जो दान दक्षिणा चढ़ावा बगैरह देते हैं वह तो उसका होता ही है लेकिन अब एक तरह से पुजारियों को मंदिरों की जमीनों का भी मालिकाना हक दे दिया है और इशारा यह भी किया है कि इस बार भी भाजपा सत्ता में आई तो अगली बार उन्हें कृषि ऋण पुस्तिकाएं भी दी जाएंगी। पुजारियों को दूसरी बड़ी आमदनी इन्हीं जमीनों से होगी और तीसरा जरिया इस फैसले से उजागर हो ही गया है कि उन्हें नगदी पैसा भी सरकार देगी। एक छोटे से छोटे मंदिर में भी रोजाना 500 रु. से कम का चढ़ावा नहीं आता सीजन यानि धार्मिक तीज त्योहारों के दिनों में तो इसकी तादाद 50 गुना तक बढ़ जाती है अब अगर औसतन हजार रु. रोज की भी दान दक्षिणा आई तो पुजारी जी को कम से कम 60 हजार रु. महीने की आमदनी होगी जो मेहनत मजदूरी करने वाले दूसरे लोगों के लिए सपना होती है और मुफ्त की जमीनों की पैदावार भी 20 हजार रु. एकड़ से कम नहीं होती। इतनी पगार राज्य के 80 फीसदी मुलाजिमों को भी नहीं मिलती। चुनावी लिहाज से देखें तो भाजपा और शिवराज सिंह कोई जोखिम जीत के बावत नहीं उठाना चाहते। राज्य के कोई घोषित 55 हजार और अघोषित एक लाख मठ मंदिर भाजपा के प्रचार के अड्डे शुरू से ही रहे हैं। अब कोई 5 लाख वोटों का इंतजाम तो भाजपा ने कर ही लिया है लेकिन उम्मीद ही नहीं बल्कि गारंटी भी है कि एक फैसले से मालामाल हो गए ये पुजारी जमकर भाजपा का प्रचार पूजा पाठ से भी पहले करेंगे। चुनाव से हटकर देखें तो भी भाजपा और साधू संतों और महंतो का याराना हमेशा से ही रहा है । शिवराज सरकार के ताजे फैसले ने तो इस दोस्ती का रंग और गाढ़ा करते हुए मेसेज दे दिया है कि धर्मतंत्र लोकतन्त्र पर भारी पड़ता है और विपक्षी दल भी वोट खोने के डर से इसका विरोध नहीं कर पाते उल्टे बयान यह देते हैं कि सत्ता में आए तो वे भाजपा से ज्यादा ही धर्म के इन दुकानदारों को देंगे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने भी यही इशारा किया तो साफ हो गया कि उनमें इस गलत और ज्यादती करते फैसले का विरोध करने का माद्दा ही नहीं है और इसीलिए कांग्रेस भाजपा से मुंह की खाती रही है। अलोतांत्रिक फैसले पर खामोशी क्यों कांग्रेस ही नहीं बल्कि कोई दूसरा दल या संगठन भी इस फैसले पर एतराज जताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा वजह सबके सब सिरे से धर्म के गुलाम हैं । किसी ने यह सवाल नहीं किया कि पुजारियों को सरकारी नौकरों की तरह तनख्वाह क्यों वे सरकार के लिए करते क्या हैं जो वह करदाताओं का पैसा उन लोगों पर लुटा रही है जिनकी गुजर बसर का इंतजाम तो भगवान और धर्म के ठेकेदारों ने पहले से ही कर रखा है क्योंकि वे पंडे पुजारी हैं। एक आम आदमी धर्म के खौफ के चलते मंदिरों में मेहनत की कमाई दक्षिणा की शक्ल में दे और सरकार भी उसी के टेक्स का पैसा पुजारियों को दे यह कहां लिखा है। सरकारी पैसे का इस्तेमाल जाति और धर्म से परे सभी के भले के लिए हो बात समझ आती है कि सरकार कुछ कर रही है लेकिन सरकार के लिए कुछ न करने वालों को मुफ्त की मलाई देने की तुक समझ से परे है । पूजा पाठ या भगवान की मूर्तियों की देखभाल कोई सरकारी काम नहीं है बल्कि एक ऐसा आदिम धंधा या कारोबार है जिसमें धर्म का डर दिखाकर तरह-तरह से आम लोगों को लूटा जाता है इसमें सरकार भी शामिल हो गई है तो बात चिंता की है और इस पर ऐतराज भक्तों को भी जताना चाहिए कि जब हम पुजारी को दान दक्षिणा देते ही हैं तो हमारे ही पैसे को और क्यों सरकारी तौर पर लुटाया जा रहा है। द्य बृजेश साहू
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