18-Oct-2018 06:16 AM
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बुंदेलखंड की सियासत की दो तस्वीरें हैं। एक बुंदेलखंड पैकेज का भारी-भरकम बजट और भाजपा की लगातार मजबूती। दूसरी क्षेत्र का पिछड़ापन, भारी भ्रष्टाचार और भाजपा की आपसी कलह। भरपूर प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद यहां की जनता विकास नहीं देख सकी। यहां के छतरपुर और पन्ना पूरे विश्व में हीरे के लिए पहचाने जाते हैं, लेकिन यहां की खदानों से निकलने वाले हीरों ने महज मल्टीनेशनल कंपनियों व चंद कारोबारियों का भला किया। आधा बुंदेलखंड उत्तरप्रदेश में आता है, इसलिए केंद्र तक से बुंदेलखंड को लेकर लगातार सियासत होती रही।
सूखा, फसल बर्बादी, किसान आत्महत्या, पीने के पानी की किल्लत और बेरोजगारी जैसे शब्द बुंदेलखंड की पहचान के साथ इतने जुड़ गए हैं कि जब तक इस इलाके में ऐसा कुछ न हो, नेशनल मीडिया में यहां से जुड़ी खबरें जगह भी नहीं बना पातीं। इस इलाके में पिछले कई वर्षों से फसलों को काफी क्षति होती रही है। पिछली रबी और खरीफ दोनों फसलों में काफी नुकसान हुआ था। इसके बावजूद चारों गांवों के लोगों ने एक स्वर में कहा कि उन्हें
फसल बीमा योजना का कोई लाभ नहीं मिला है।
बुंदेलखंड इलाके के लोगों की पिछले लंबे समय से शिकायत रही है कि सरकार की घोषित विकास और जन-कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं होता है। मनरेगा कार्य के बारे में चारों गांवों के लोगों ने एक स्वर से कहा कि लगभग एक वर्ष से या तो मनरेगा का कार्य आरंभ ही नहीं हुआ है या हुआ है तो बहुत मामूली सा काम हुआ है। मनरेगा के तहत बहुत पहले जो काम हुआ था उसका भुगतान कुछ मजदूरों को आज तक नहीं मिला है। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के चलते मशीनों से काम करवा कर उसे मजदूरों का काम दिखा दिया जाता है। इस इलाके में पिछले कई वर्षों से फसलों को काफी क्षति होती रही है। पिछली रबी और खरीफ दोनों फसलों में काफी नुकसान हुआ था। इसके बावजूद चारों गांवों के लोगों ने एक स्वर में कहा कि उन्हें फसल बीमा योजना का कोई लाभ नहीं मिला है। इनमें से अधिकतर किसानों ने तो यहां तक कहा कि उन्हें तो फसल बीमा योजना के बारे में पता तक नहीं है और न ही किसी ने इस योजना के बारे में विस्तार से बताया है। उन्होंने कहा कि फसल की जितनी क्षति होती है उसे वे खुद ही सह रहे हैं।
मातृत्व लाभ योजना के तहत 5000 रुपये की सहायता पहले बच्चे के लिए घोषित हुई है। इन चार गांवों में चर्चा के दौरान पता चला कि इस गांव में किसी भी महिला को मातृत्व लाभ योजना के तहत किसी तरह की सहायता नहीं मिली है। केवल भरतपुर गांव में एक व्यक्ति ने बताया कि उनके परिवार को यह सूचना दी गई है कि यह सहायता उन्हें मिलेगी। लोगों ने बताया कि काफी पहले 1400 रुपए की सहायता बच्चों के जन्म पर मिलती थी जो बाद में रोक दी गई थी। आंगनबाड़ी कार्यक्रम में भी हाल के समय में गिरावट आई है। दो गांवों में लोगों ने बताया कि अब तो पौष्टिक आहार नहीं आ रहा है और हमें बताया गया है कि पीछे से व्यवस्था नहीं हो पा रही है। यह एक गहरी चिंता का विषय है कि महत्वपूर्ण विकास व जन-कल्याण की योजनाओं में पिछले कुछ महीनों से इस तरह की गिरावट आती जा रही है। यह क्षेत्र विविध कारणों से वैसे भी संवेदनशील दौर से गुजर रहा है।
हर जाति के अलग-अलग कुएं
बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में छुआछूत की परंपरा आज भी कायम है। यहां जाति के आधार पर पानी का बंटवारा होता है। टीकमगढ़ जिले के सुजानपुरा गांव में 3 जातियों के लिए अलग-अलग कुएं बनवाए गए हैं। यहां के लोग अपनी जाति के लिए बने कुएं पर ही पानी भर सकते है। यहां सामान्य और पिछड़ी जाति के लिए एक कुआं, दूसरा कुआं अहिरवार समाज के लिए जबकि तीसरा कुआं बंशकार समाज के लोगों का है। यह लोग कभी भी एक-दूसरे के कुएं से पानी नहीं भरतें, चाहे कितनी भी परेशानी क्यों ना हो। यहां के
लोगों का साफ कहना है कि वह छुआछूत मानते हैं, इसलिए एक-दूसरे के कुएं से पानी नहीं भरते हैं। टीकमगढ़ जिले के सुजानपुरा गांव में आज भी अंधविश्वास और छुआछूत की परंपरा कायम है। यहां छुआछूत का दंश अक्सर निचली जाति के लोगों को भुगतना पड़ता है।
द्यसिद्धार्थ पांडे