18-Oct-2018 06:05 AM
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मप्र में विकास की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले अधिकारियों-जनप्रतिनिधियों के लिए सिंचाई के आंकड़े आइना दिखाने वाले हैं। पन्ना जिले के कुल सिंचाई रकबे 3 लाख 73 हजार हेक्टेयर का करीब 60 फीसदी रकबा अभी तक असिंचित है। करीब आधा दर्जन मध्यम और लघु सिंचाई परियोजनाएं बीते कई सालों से अधूरी पड़ी हैं। कुछ परियोजनाओं में सालों से कछुआ गति से काम चल रहा है तो कुछ भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई हैं। आलम यह है कि किसानों को खेतों की सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। इस साल भी करीब एक पखवाड़े से बारिश नहीं होने के कारण जिलेभर में कई लाख हेक्टेयर में लगी धान की फसल सूखने की कगार पर पहुंच गई है। सिंचाई परियोजनाओं का काम पूरा करने में बरती जा रही लापरवाही किसानों को भारी पड़ रही है।
सलेहा क्षेत्र में भितरी मुटमुरू सिंचाई बांध को टूटे करीब चार साल हो गए हंै पर टूटे हिस्से को दोबारा बनाकर देने की शर्त पर विभाग ने पुराने ठेकेदार को ही बांध फिर से दुरुस्त करने को कहा था। इसके बाद तीन साल का समय हो गया है, ठेकेदार एजेंसी द्वारा बांध का काम नहीं कराया जा रहा है। बांध के 11 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल के खेतों की सिंचाई प्रस्तावित थी। इसका निर्माण वर्ष 2010-11 में कराया गया था। करीब चार साल पूर्व बांध बनकर तैयार ही हुआ था कि पहली ही बारिश में ढह गया। उक्त बांध निर्माण के दौरान भ्रष्टाचार के भी आरोप लगाए गए थे।
बांध टूटने पर उच्च स्तर की जांच होने पर कई अधिकारियों पर कार्रवाई भी हुई थी। बांध का काम पूरा नहीं होने के कारण इससे प्रस्तावित 25 किमी. लंबी नहर का निर्माण कार्य भी प्रभावित है। इस नहर की अनुमानित लागत करीब 85 करोड़ है और इससे 11,571 हेक्टेयर क्षेत्रफल की सिंचाई का कार्य प्रस्तावित है। करोड़ों की लागत से योजना बनाई गई थी कि गुन्नौर के किसानों को संपन्न बनाने नहर के माध्यम से बगरी बांध का पानी नागौद से गुन्नौर लाया जाएगा। यह योजना सालों से पेंडिंग है। इसके लिए शासन करोड़ों रुपए का मुआवजा भू-अर्जन के बदले बांट चुकी है। नहर का निर्माण भी कर लिया गया है। अब हालत यह है कि जब बरगी का पानी सतना ही नहीं पहुंच पाया है तो उसे नगौद से पन्ना लाना टेढ़ी खीर है। यदि बरगी बांध का पानी गुनू सागर तक पहुंच जाता तो आसपास के करीब दर्जनों गांव के किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिल जाता। साथ ही यहां के लोगों को पेयजल की समस्या से भी छुटकारा मिल जाता है। परियोजनों को लेकर अब तक करोड़ों बर्बाद हुए फिर भी परिणाम शून्य है।
बांध के फाउंडेशन निर्माण के लिए हार्डस्टेटा नहीं मिलने की वजह से खटाई में पड़ी रुंझ मध्यम सिंचाई परियोजना को दोबारा हरी झंडी मिल गई है। रुंझ नदी ग्राम मुटवाकला से निकलकर बाघिन नदी में मिलती है। इस नदी पर करीब तीन सौ करोड़ रुपए की लागत से बांध बनाने की स्वीकृति 22 जनवरी 2011 को मिली थी। परियोजना पर चार साल तक चले सर्वे और 42 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि बांध के फाउंडेशन निर्माण के लिए जरूरी गहराई तक हार्डस्टेटा नहीं मिल पा रहा है। जिस गहराई पर हार्डस्टेटा मिल रहा है उतनी गहराई पर फाउंडेशन को अपेक्षित मजबूती नहीं मिलने की आशंका के चलते परियोजना स्थगित कर दी गई थी। दो गांवों में भू-अर्जन की कार्रवाई चल रही है।
गुन्नौर विस के ही ककरहटी क्षेत्र स्थित वृंदावन बांध को सिंचाई के लिए बुंदेलखंड पैकेज के तहत तैयार किया गया था। यह कुछ सालों पूर्व ही बनकर तैयार हुआ था। तत्कालीन कलेक्टर ने निरीक्षण करने के बाद बांध के डिजाइन पर सवाल उठाए थे। इसके साथ ही उन्होंने बनने के साथ ही तालाब की मेड़ में पड़ी बड़ी-बड़ी दरारों को भरने के निर्देश दिए थे। इसकी बेस्ट बीयर सालों से टूटी है। बांध की बेस्ट बीयर तो इसके तैयार होने के कुछ ही महीनों बाद टूट गई थी, जिसे बना तो दिया गया, लेकिन इसकी ऊंचाई कम होने के कारण बारिश का पूरा पानी नाले में बह जाता है।
सालों से चल रही तेंदूघाट परियोजना
पवई विस क्षेत्र में आने वाली तेंदूघाट परियोजना विकास के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है। उक्त योजना को तत्कालीन मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह ने अपने कार्यकाल में स्वीकृत कराई थी। परियोजना के तहत वर्ष 2015 में काम शुरू हुआ था। तय अवधि के अनुसार इसे जून 2018 तक पूरा हो जाना चाहिए था। इस परियोजना से 9 हजार 956 हेक्टेयर रकबे की सिंचाई प्रस्तावित है। काम की गति काफी धीमी होने के कारण लोगों को इस परियोजना का लाभ मिलने में काफी समय लग सकता है।
- नवीन रघुवंशी