पैसा डीमेट के नाम पर, एडमीशन पीएमटी से
02-Aug-2013 09:36 AM 1234802

मध्यप्रदेश के मेडिकल कॉलेजों की प्रवेश परीक्षा पीएमटी घोटाले की पड़ताल में पाक्षिक अक्स को कुछ ऐसे सनसनीखेज तथ्य हाथ लगे हैं जो सरकारी तंत्र की लापरवाही या मिलीभगत तथा निजी मेडिकल कॉलेज के सूरमाओं की पहुंच और पकड़ की पोल खोल रहे हैं। यदि इस पूरे घोटाले की निष्पक्ष जांच की जाए तो कानून के हाथ निजी मेडिकल कॉलेजों के संचालकों के गिरेबान तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी। पुलिस की गिरफ्त में आए डॉ. जगदीश सागर, तरंग शर्मा और व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) के अधिकारी-कर्मचारी तो महज ऐसे मोहरे हैं जो सालों से सत्ता के दलालों और निजी मेडिकल कॉलेज से जुड़े लोगों की कठपुतली भर हैं।
पाक्षिक पत्रिका अक्स को अपनी पड़ताल में पता चला है कि एमबीबीएस के इच्छुक छात्रों से पहले तो निजी मेडिकल कॉलेजों की प्रवेश परीक्षा डीमेट में पास करवाने के नाम पर 30 से 50 लाख तक वसूल लिए जाते थे और फिर उन छात्रों को येन-केन-प्रकारेण पीएमटी में चयनित करवा दिया जाता था। इसके लिए डॉ. जगदीश सागर और व्यापमं के नितिन महिंद्रा, अमित मिश्रा जैसे घोटालेबाजों की मदद ली जाती थी। मतलब साफ है कि एक बार डीमेट के नाम पर पैसा वसूल लेने के बाद जब यह कन्फर्म हो जाता था कि इस छात्र का एडमीशन लेना तय है तब उसे डीमेट के बजाए पीएमटी कोटे से चयनित करवा दिया जाता था। इस हेरफेर के चलते निजी मेडिकल कॉलेजों को डीमेट के जरिए भर्ती करने के लिए कुछ अतिरिक्त सीटें मिल जाती थीं। सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के चलते फिलहाल मध्यप्रदेश के निजी मेडिकल कालेजों की 50 प्रतिशत सीटें राज्य सरकार द्वारा आयोजित की जाने वाली पीएमटी और शेष 50 प्रतिशत सीटें ष्ठरू्रञ्ज (डेंटल एंड मेडिकल एडमीशन टेस्ट)के जरिए भरे जाने का प्रावधान है। इस हेरफेर के चलते निजी मेडिकल कॉलेजों द्वारा 50 के बजाए 70-80 प्रतिशत सीटें तक हथिया ली जाती हैं। यानी कि दोहरी कमाई। इस वर्ष भी पीएमटी में चयनित जो लगभग 185 छात्र संदेह के दायरे में हैं उनमें से 80 से ज्यादा निजी मेडिकल कॉलेजों के लिए चयनित हुए हैं। यह साफ किसी षड्यंत्र की ओर इशारा कर रहा है। इस सनसनीखेज खुलासे और घोटाले के तरीके को मेडिकल माफिया सत्ता के दलालों की मदद से जांच की जद में नहीं आने देने के लिए जी-जान से जुटा है और सफल होता भी नजर आ रहा है। यदि पिछले सालों की जांच की जाए तो और भी चौंकाने वाले नतीजे सामने आएंगे।
जाति प्रमाण पत्र भी फर्जी..!
मध्यप्रदेश पीएमटी घोटाले का एक बड़ा सनसनीखेज तथ्य यह है कि डीमेट के नाम पर पैसा वसूलने के बाद जिन छात्रों को पीएमटी दिलवाई जाती थी उन्हें आरक्षित वर्ग का बताया जाता था यानी कि जाति प्रमाण पत्र भी फर्जी...
...जी हां फर्जी जाति प्रमाण पत्र! दरअसल अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के छात्रों को प्रवेश में पात्रता के प्राप्त अंकों में छूट का प्रावधान है। मेडिकल माफिया करता यह है कि छात्रों के फर्जी जाति प्रमाण पत्र लगाकर उन्हें परीक्षा दिलवाता है। चूंकि यह पहले से ही तय हो चुका होता है कि अमुक छात्र अमुक निजी कॉलेज में प्रवेश लेगा। इसलिए थोड़ी बहुत नकल या हेरफेर से ही छात्र निजी मेडिकल कॉलेजों में पीएमटी कोटे से प्रवेश के लिए जरूरी अंक हासिल कर लेता है। यानी की जिससे डीमेट के नाम पर वसूली की उसे पीएमटी कोटे में चयनित करवा दिया। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में तो फिर भी जाति प्रमाण पत्र आदि की सख्ती से जांच होने का खतरा बना रहता है लेकिन उन छात्रों को जिनके माता-पिता पहले से ही चिकित्सा की दुकान चला रहे हैं या जिनके एजेंडे में सरकारी नौकरी और छात्रवृत्ति शामिल नहीं है वे बड़ी आसानी से इस फर्जी जाति प्रमाण पत्र का उपयोग कर पीएमटी पास कर लेते हैं।
60 प्रतिशत से ज्यादा एससी-एसटी
सूत्र बताते हैं कि पुलिस की जांच में प्रारंभिक तौर पर पीएमटी के जरिए निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए पात्र पाए गए 80 छात्रों में 60 प्रतिशत से ज्यादा छात्र एससी-एसटी के हैं। यह एक ऐसा चौंकाने वाला आंकड़ा है जिसने पुलिस और  दूसरे आला अधिकारियों को सकते में ला दिया है। यह आंकड़ा साफ संकेत कर रहा है कि फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के सहारे परीक्षा देने और फिर कम अंक प्राप्त होने के बावजूद आरक्षण नियमों का फायदा उठाकर डॉक्टरी करने वालों की तादाद इससे भी बहुत ज्यादा हो सकती है। चूंकि ऐसे डॉक्टरों को पकड़े जाने का जोखिम इसलिए भी नहीं है कि एक बार प्रवेश मिल जाए फिर भला कौन पूछता है। यदा कदा शिकायत हुई भी तो चंद टुकड़े फेंक कर उसे दबा देने के लिए रसूख और मालदार बाप काफी हैं... ाफिलहाल मेडिकल माफिया इस जुगत में जुटा है कि पुलिसिया जांच का दायरा किसी भी हाल में जाति प्रमाण पत्रों की जांच तक न पहुंच पाए। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि  पिछले पांच सालों में निजी मेडिकल कॉलेजों में जिन छात्रों ने खुद को एससी-एसटी कोटे का बताकर परीक्षा दी है और चयनित हुए हैं उन सबके जाति प्रमाण पत्रों की अविलंब जांच की जाए।

दलालों के हवाले मेडिकल एज्यूकेशन

लालकृष्ण आडवाणी जब राजनाथ सिंह को लिखे पत्र में अपनी यह व्यथा व्यक्त करते हैं कि पार्टी के बड़े नेता भू-माफिया, शिक्षा-माफिया और खदान-माफिया बन चुके हैं... शिक्षा की आड़ में अकूत संपत्ति बना रहे हैं तो शायद उनके जेहन में कहीं न कहीं मध्यप्रदेश की तस्वीर जरूर रही होगी। यदि मध्यप्रदेश के पिछले कुछ सालों परिदृश्य पर सिलसिलेवार ढंग से नजर डाले तो यह बात आइने की तरह साफ होती चली जाती है कि कैसे सरकारी शिक्षा व्यवस्था हाशिए पर सरकती जा रही है और एज्यूकेशन माफिया आक्टोपस की तरह बाहें फैलाए पूरी प्रशासनिक व्यवस्था के साथ-साथ प्रदेश के नौनिहालों के भविष्य को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है... पूरे सिस्टम पर मानों एक तरह से दलालों का कब्जा हो चुका है चाहे वह तकनीकी शिक्षा हो या फिर चिकित्सा शिक्षा... हर जगह दलालों का एक गिरोह, एक काकस बना हुआ है जो पूरे सिस्टम को अपनी उंगलियों पर नचाता है... पर प्रदेश के शिक्षा परिदृश्य का सबसे दुखद और चिंताजनक पहलू है दक्षिण भारत के राज्यों और महाराष्ट्र की तरह मेडिकल एज्यूकेशन का दलालों के हरम में दम तोड़ देना... मेडिकल एज्यूकेशन एक ऐसी अबला की तरह हो गया है जिसे चंद दलालों का गठजोड़ जब चाहे, जैसे चाहे अपनी हवश का शिकार बनाता है और उसकी सुनवाई न खादी (नेता) की अदालत में होती है और न खाकी (पुलिस) की अदालत में... बचते हैं टूटे हुए सपने लिए हताश और मासूम काबिल बच्चे...जिनके सपने इनके गठजोड़ के कदमों तले कुचल दिए जाते हैं... ये हवश खोर दलाल सरकार में भी बैठे हैं... प्रशासन में भी बैठे हैं और  डॉ. जगदीश सागर की तरह सालों से लाइसेंस किलरÓ यानि मुन्नाभाई डॉक्टरों की फौज तैयार करते विलासिता और अमीरी की नई इबारत गढ़ते पूरे सिस्टम को वेश्या की तरह भोगते रहते हैं... यूं तो दलालों के इस गठजोड़ की शुरुआत दिग्विजय सिंह की सरकार के जाते-जाते ही हो गई थी... लेकिन इसने असली रंग पकडऩा शुरू किया सन् 2004 के बाद। जैसे ही प्रदेश का निजाम बदला और भाजपा सत्ता पर काबिज हुई नए दलालों का आक्टोपस  अस्तित्व में आया। केंद्र में थे कुछ शातिर दिमागदार जिनका गठजोड़ हुआ सरकार में बैठे मंत्रियों और सरकार को रिमोट की तरह चलाने वाले कुछ सत्ताधीशों के साथ। 2004 से शुरू हुए दलालों के इस खेल का ग्राफ शुरुआती दौर में तो बहुत धीमे-धीमे आगे बढ़ा, लेकिन 2006-07 आते-आते इसने जिस तरह से तेजी से गति पकड़ी उसकी गति के आगे सारी नैतिकता, सारे नियम, नौकरशाह, नेता बिछते चले गए। आज आलम अराजकता का है। जो इन दलालों के साथ समन्वय नहीं बिठा पाए वे हाशिए पर डाल दिए गए और शिक्षा की सारी नियामक संस्थाएं दलालों के इशारों पर चलने लगी... महत्वपूर्ण पदों पर काबिल लोगों के बजाए दलालों के मोहरे बैठने लगे... जब भी एज्यूकेशन माफिया की बात आती है तब इन सबका सिरमौर होता है मेडिकल एज्यूकेशन माफिया... क्योंकि सबसे ज्यादा मांग और सप्लाई का अंतर चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में ही है।
दलालों का सागर
इंदौर पुलिस ने जिस जगदीश सागर के रैकेट को क्रेक किया है उसने पूरी सरकारी व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है... यदि सरकार में बैठे नेता पुलिस की इस सफलता के लिए अपनी पीठ थपथपाएं तो वह उतना ही बड़ा झूठ होगा जैसे कोई नेता यह दावा करे कि वह समाज सेवा के लिए राजनीति में आया है...Ó  वह तो भला हो आईएस दाणी (अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह), अजय तिर्की (प्रमुख सचिव स्वास्थ्य) और पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे जैसे वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों का जिन्होंने सारे दबावों को दरकिनार कर काफी पहले से रणनीति बनाई और फिर इसे इंदौर पुलिस के दिलीप सोनी जैसे काबिल अफसरों के जरिए अंजाम दिया। चूंकि आईएस दाणी प्रमुख सचिव स्वास्थ्य रहते हुए मेडिकल माफिया की कारगुजारियों से वाकिफ हो चुके थे... निजी मेडिकल कालेजों की प्रवेश परीक्षा डीमेटÓ के गड़बड़झाले, पीपुल्स और अरविंदो मेडिकल कालेज जैसे निजी मेडिकल कालेजों के प्रभावशाली कर्ताधर्ताओं और सरकार में बैठे उनके खैर-ख्वाहों के हथकंडों से दो-चार हो चुके थे... यही कारण था कि इस बार अधिकारियों की इस तिकड़ी ने तय किया था कि मुन्नाभाई बनाने वाली फैक्ट्री को ध्वस्त करना है। नतीजा इंंदौर के डॉक्टर जगदीश सागर और मेडिकल प्रवेश परीक्षा पीएमटी आयोजित करवाने वाली संस्था व्यवसायिक परीक्षा मंडल के दलालों नितिन महिन्द्रा, अजय कुमार सेन, डॉ. सागर, डॉ. अजय तथा  सी के मिश्रा की गिरफ्तारी के रूप में सामने आया। अब इनके गद्दे, तकिए, लॉकर वो बेहिसाब दौलत उगल रहे हैं जो इन्होंने काबिल छात्रों के सपनों को कुचलकर कमाई है... ये मोहरे जब इतनी अकूत दौलत के ढेर पर बैठे हैं तो फिर इन्होंने चिकित्सा शिक्षा, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक परीक्षा मंडल और सत्ता से जुड़े दलालों के खजाने को कितनी दयानतदारी से भरा होगा यह बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि सत्ता में बैठे दलालों के दलाल चुप्पी साधकर बैठ गए हो। दरअसल एज्यूकेशन और खासकर मेडिकल माफिया के फर्माबरदारों की पहुंच सत्ताधीशों के ड्राइंग हाल, बेडरूम तक इतनी तगड़ी है कि अभी भी कुछ खास अपनों को पुलिस जांच की जद से बाहर करने का खेल पूरी ताकत और बेशर्मी से खेला जा रहा है। कहीं किसी मेडिकल कॉलेज संचालक को सिर्फ इसलिए बचा लिया जाता है क्योंकि वहां पर तकरीबन 50 से ज्यादा आईएएस, आईपीएस अफसरों के बच्चे मुन्नाभाई बनने की तालीम हासिल कर रहे हैं या इससे भी कहीं ज्यादा बनकर निकल चुके हैं... कहीं रैकेट में शामिल किसी संदिग्ध डॉक्टर को सिर्फ इसलिए बचा लिया जाता है क्योंकि वह एक प्रभावशाली और हाल ही में भाजपा में शामिल पुलिस अफसर का दामाद है... तो वहीं पीएमटी में गड़बड़ी के लिए जवाबदार व्यावसायिक परीक्षा मंडल के डायरेक्टर पंकज त्रिवेदी को जांच के पहले ही क्लीनचिट देते हुए उन्हें घोटाला सामने आने के बाद तत्काल निलंबित करना तो दूर जांच के दौरान पद से सिर्फ इसलिए नहीं हटाया जाता ताकि वे सबूतों में हेरफेर कर सकें। इसके पीछे शिक्षा के क्षेत्र को अपनी उंगलियों पर नचा रही जय परशुरामÓ (मुख्य सचिव आर.परशुराम नहीं) की उस लॉबी का हाथ है जिनके मोहरे तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा की हर नियामक संस्था में बैठे हुए हैं। यह मोहरे किसी भी अनियमितता पर कागजी तीर तो बड़ी कुशलता से चलाते हैं लेकिन असल मकसद माफिया की मदद का ही होता है...
आंच के डर से दबेगी जांच
इस पूरे शर्मनाक और दुखद घटनाक्रम का सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि पीएमटी घोटाले की पूरी जांच सीधे-सीधे पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे की देखरेख में कराए जाने का उच्च स्तरीय निर्णय लिया गया था। उनकी सहायता के लिए एक और ईमानदार अधिकारी सरबजीत सिंह (अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक) को भी शामिल किया जाना था पर अब जबकि जांच की आंच सरकार तक पहुंचने लगी है तो सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री की मौजूदगी में हुई एक बैठक में इस जांच की आग पर पानी डालने का इशारा कर दिया गया है। फिर भी यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि इस बार भी जांच का अंजाम पहले पहचान में आ चुके 114 मुन्नाभाईयों की जांच की तरह नहीं होगा। जिसमें चिकित्सा शिक्षा विभाग गृह विभाग को पत्र पर पत्र लिखता रहा और मुन्नाभाई पढ़कर चले भी गए। सन् 2005-06 में खंडवा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक डीसी सागर ने जब कुछ मुन्नाभाईयों को धरदबोचा था तब सरकार सक्रिय हो जाती तो आज यह नौबत सामने नहीं आती यह प्रदेश का दुर्भाग्य है कि जब सत्ता और प्रशासन में बैठे जिम्मेदार या उनसे जुड़े रसूखदार दल्लेÓ प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह के हाथ के नीचे, खुद अपनी हांडी में, अपनी पहुंच और पैसे की हवस की आंच में, अपने ही हाथों से दलालों की दाल गला रहे हों तो फिर भला इनकी दाल कैसे न गले...
छत्तीसगढ़ से सबक लीजिए शिवराज जी...
शिवराज सिंह सरकार को और कुछ नहीं तो पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ से ही सबक लेना चाहिए। व्यापमं मध्यप्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ व्यावसायिक परीक्षा मंडल और मेडिकल माफिया की मिली भगत से जब वहां दो बार छत्तीसगढ़ पीएमटी के पेपर आउट हुए तो उन्होंने नीट की मेरिट लिस्ट के आधार पर प्रवेश देने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष नीट के जरिए चयन पर कोई रोक नहीं लगाई है इसी का फायदा उठाकर 18 जुलाई के नीट संबंधी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने यहां के कालेजों में नीट के जरिए ही प्रवेश दिया।  द्य

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