17-Jul-2013 08:25 AM
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आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
उसके बाद आए जो अजाब आए...
कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से कुछ समय पहले विधानसभा परिसर में एक भाजपा विधायक अपने मोबाइल पर धीमी आवाज में यही गजल सुन रहे थे। हालांकि राघवजी स्कैंडल के रूप में

अजाबÓ दो दिन पहले ही आ चुका था पर अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के घिरने की आशंका के चलते उनका यह गजल सुनना गलत नहीं था। बहरहाल भगवान ने लगता है उनकी सुन ली है। संकट आने से पहले ही आनंद आ गया। भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार प्रतिपक्ष के नेता के अविश्वास प्रस्ताव को उन्हीं के उपनेता ने धराशायी कर दिया। धराशायी भी कुछ इस अंदाज में किया कि कांग्रेस की इज्जत तो तार-तार हुई ही उसकी पूरी तैयारी और रणनीति ध्वस्त हो गई।
11 जुलाई 2013 का दिन मध्यप्रदेश की विधानसभा में अविस्मरणीय दिवस के रूप में याद किया जाएगा। भाजपा चाहे तो इसे विजय दिवस के रूप में भी सेलिब्रेट कर सकती है। एक तरह से विजयश्री ही मिली है भाजपा को। चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने ब्राह्मण की कूटनीति, क्षत्रिय के ओज और वैश्य के षड्यंत्र का प्रदर्शन किया। उन्होंने सदन में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के एक शब्द भी बोलने से पहले कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव पर गाज गिराते हुए कहा कि अविश्वास प्रस्ताव में कुछ ऐसे बिंदु हैं जिनका वे विरोध करते हैं। आज भी मध्यप्रदेश के 721 तीर्थ यात्री लापता है, केदारनाथ की आपदा के बाद, किंतु इस विषय को अविश्वास प्रस्ताव में सम्मिलित नहीं किया गया। मध्यप्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री राघवजी के कृत्य ने सदन को शर्मसार किया है। उस विषय को भी नहीं लिया गया। राकेश सिंह बोलते जा रहे थे उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बच्चा-बच्चा राम का राघवजी के काम का। कहकर हिंदुओं के अराध्य राम को जो अपमान किया है वह अक्षम्य है।
राकेश सिंह बोल रहे थे सदन में कांग्रेस के सदस्य हक्का-बक्का थे। अजय सिंह के चेहरे से हवाइयां उड़ रही थीं। आरिफ अकील सहित तमाम वरिष्ठ विधायक अवाक थे। कांग्रेस के विधायकों में खलबली थी। वे समझ नहीं पा रहे थे कि राकेश सिंह को रोकें या बोलने दें। उधर नेपथ्य से भाजपा विधायकों की तरफ से शेम-शेम की आवाजें आ रहीं थीं। वे मेजे थपथपा कर राम की जयकार करते हुए चौधरी राकेश सिंह का उत्साहवर्धन कर रहे थे। कुछ ऐसा नजारा था मानो महेंद्र सिंह धोनी मैदान में छक्के-चौके लगा रहे हों, लेकिन अपनी टीम के लिए नहीं बल्कि विकेट कीपिंग छोड़कर बल्ला थामकर विपक्षी टीम के लिए। सचमुच उस दिन क्रिकेट का मैदान बन गई थी मध्यप्रदेश की विधानसभा और चौधरी राकेश सिंह ने अपनी ही टीम को आल आउट करके अविश्वास प्रस्ताव की हवा निकाल दी थी।
इस अभूतपूर्व घटनाक्रम ने मध्यप्रदेश की राजनीति का मिजाज ही बदल डाला। अविश्वास प्रस्ताव में कांग्रेस ने शिवराज व सरकार को घोषणावीर घोषित करते हुए घोषणाओं पर अमल न होने, भ्रष्टाचार, कुपोषण, कानून व्यवस्था, महिला अत्याचार, आदिवासियों व दलितों पर अत्याचार, गेमन जमीन घोटाला, बिजली, पानी, सड़क, ब्लैक लिस्टेड कंपनी लैंको अमरकंटक पॉवर लिमिटेड से अनुबंध, अवैध खनन और खनन माफिया को मुख्यमंत्री का संरक्षण, मैग्नीज घोटाला, नमक खरीदी घोटाला, मनरेगा में घोटाला, लघु वनोपज संघ में घोटाला, सरकारी खजाना खाली करने, उच्च शिक्षा में अनियमितता, अधिकारी तथा कर्मचारी विरोधी सरकार, किसानों से छलावा, मुख्यमंत्री के रिश्तेदारों की कथित भ्रष्ट सोसाइटी, कोयला दलाली, सरकारी विज्ञापनों में घालमेल सहित तमाम मुद्दों पर घेरने की तैयारी कर रखी थी, लेकिन बहुत निकले फिर भी मेरे अरमान कम निकले की तर्ज पर जब चौधरी राकेश सिंह बोलने खड़े हुए तो बोलते गए। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कथन पर हिंदू वीरों की तरह ओजपूर्ण वाणी का प्रयोग करके सदन में ही संकेत दे दिया था कि फिर वहीं लौट के आना होगा यार ने कैसी जुदाई दी है की तर्ज पर वे भाजपा में ही जाने वाले हैं जहां उनके पूज्य पिताश्री ने राजनीति की थी। शाम होते-होते भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर उन्होंने इस अकल्पनीय नाटक का सर्वाधिक संभावित पटाक्षेप कर दिया। लेकिन तब तक कांग्रेस की भद पिट चुकी थी और विपक्ष में सदन के नेता राहुल सिंह की कूटनीतिज्ञ पराजय तथा रणनीतिक विफलता सामने प्रकट हो चुकी थी।
चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी की पृष्ठभूमि भले ही जनसंघी रही हो, लेकिन वे बड़ी उम्मीद से कांग्रेस से जुड़े थे। उन्हें लगता था कि भिंड, मुरैना क्षेत्र में वे कांग्रेस के एक कद्दावर ब्राह्मण नेता के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर लेंगे और कालांतर में प्रदेश की राजनीति में अपनी पकड़ बनाने में कामयाब हो जाएंगे। शुरुआत में ऐसा हुआ भी चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने तेजी से कांग्रेस में अपना कद बढ़ाया लेकिन बढ़ते कद के साथ-साथ उनके पर कतरने के इंतजाम भी कांग्रेस ने कर रखे थे। जमुना देवी के दिवंगत होने के बाद चौधरी राकेश सिंह को उम्मीद थी कि उन्हें मध्यप्रदेश विधानसभा में नेताप्रतिपक्ष बना दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। दिग्विजय सिंह ने राहुल भैया को आगे बढ़ा दिया। इसके बाद राकेश सिंह चर्चिच होने के रास्ते तलाशने लगे। पिछली बार जब कल्पना परुलेकर के साथ उनकी भी सदस्यता समाप्त कर दी गई तो उन्हें उम्मीद थी कि इस प्रकरण में पार्टी उनके साथ मजबूती से खड़ी हो जाएगी लेकिन पार्टी ने ही उनके खिलाफ षड्यंत्र कर दिया। उनसे बोला गया कि वे अपने तेवर बनाए रखें उधर आलाकमान को संदेश दिया गया कि वे विधायकी बहाल करने के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। जबकि ऐसा नहीं था। चौधरी बखूबी जानते थे कि मरा हाथी सवा लाख का की तर्ज पर उनकी जो विधायकी गई है उसका फायदा उनको दोगुना होकर मिलेगा। लेकिन यह फायदा दूसरों की आंखों में खटक रहा था। इसीलिए विधायकी की बहाली का जो नाटक मध्यप्रदेश विधानसभा में हुआ उसमें भी कमोबेश मुख्य किरदार भाजपा ही बन गई। इसके बाद भाजपा से चौधरी की दोस्ती जगजाहिर हो चुकी थी। कमाल की बात तो यह है कि कांग्रेस ने इस अंडर करंट को उस वक्त पहचाना ही नहीं और चौधरी को विधानसभा में उपनेता बनाए रखा। जबकि चौधरी सत्यमेव जयतेÓ का जाप करते हुए किसी बेहतरीन मौके को तलाश रहे थे और वह मौका आ ही गया। अविश्वास प्रस्ताव में राघवजी, लापता तीर्थयात्री सहित कई ज्वलंत किंतु प्रभावी मुद्दों को शामिल करने के लिए चौधरी कांग्रेस में ही जद्दोजहद कर रहे थे, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं था। सुनियोजित तरीके से चौधरी को इस अविश्वास प्रस्ताव में करीब-करीब हाशिए पर रखा गया। दिल्ली में अपने आकाओं को भी उन्होंने इसका भान कराने की कोशिश की लेकिन वहां कोई तवज्जो नहीं मिली। हताश चौधरी के समक्ष विभीषण बनने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। वे कुछ अलग अंदाज में भाजपाई राजनीति में पदार्पण करना चाह रहे थे और दिग्विजय सिंह की ट्वीट ने उन्हें यह अवसर मुहैया करा ही दिया। राम के भरोसे चौधरी की नैय्या पार हो गई। सदन में पल भर में ही वे तोगडिय़ा से बड़े हिंदू हृदय सम्राट बन गए। राम मंदिर से लेकर तमाम ज्वलंत मुद्दे उनके तसव्वुर में आ ही गए।
खास बात यह है कि नेता प्रतिपक्ष राहुल सिंह ने पिछले विधानसभा सत्र में कहा था कि अगले विधानसभा सत्र में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान मुख्यमंत्री के चेहरे पर हवाइयां उड़ती दिखाई देंगी। लेकिन नहले पर दहला पड़ गया और मुख्यमंत्री ने 24 घंटे पहले ही अजय सिंह के खिले चेहरे की बत्तियां गुल करने का इंतजाम कर दिया था। चौधरी राकेश सिंह अनायास भाजपा में नहीं आए। बीते वर्ष अगस्त माह में शिवराज सिंह चौहान जब शताब्दी एक्सप्रेस से मथुरा जा रहे थे उसी दौरान उनकी मुलाकात चौधरी से हुई थी इस मुलाकात में बहुत सी बातें हुईं और तभी यह लगने लगा था कि चौधरी भाजपा के निकट आ रहे हैं। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि कांतिलाल भूरिया को तो एक माह पहले ही चौधरी की भाजपा से निकटता की जानकारी थी। नरोत्तम मिश्रा ने भी जुलाई के पहले हफ्ते में चौधरी की मुलाकात संगठन महामंत्री अरविंद मेनन से करवाई थी। विधानसभा में 10 जुलाई को कैलाश विजयवर्गीय और चौधरी राकेश सिंह की मुलाकात ने कई कांग्रेसियों को आश्चर्यचकित किया था। समझा जाता है कि इसी दौरान विजयवर्गीय ने उन्हें कांग्रेस छोडऩे के लिए राजी कर लिया। नरोत्तम मिश्रा ने भी उन्हें राजी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राकेश सिंह को पराजय का डर था इसलिए वे अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते थे और अब भाजपा में आकर कम से कम उन्हें यह तो आश्वासन मिल ही गया है कि वे भाजपा की तरफ से प्रत्याशी बनाए जाएंगे।
इस मामले में अजय सिंह को पर्याप्त नुकसान पहुंचा है। नेता प्रतिपक्ष रहते हुए पिछले लंबे समय में वे कोई कामयाबी हासिल नहीं कर पाए। सरकार को भी घेरने में नाकामयाब रहे। हालांकि उन्होंने मेहनत बहुत की। इस बार उनकी तैयारी भी अच्छी थी, लेकिन तैयारियों को उनके ही दल के एक नेता ने धराशायी कर दिया। इससे साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस मध्यप्रदेश में बिलकुल संगठित नहीं है और परस्पर गुटबाजी में उलझकर अपना वजूद खोते जा रही है। चौधरी प्रकरण के बाद कांग्रेसी खेमें में मायूसी है। बहुत से नेता कांग्रेस में चल रही उठा-पटक से नाराज हो चुके हैं। कई बड़े नेताओं को ऐसा लग रहा है कि उनका टिकिट भी कट सकता है इसीलिए आने वाले दिनों में कुछ नेताओं का झुकाव भाजपा की तरफ हो सकता है। विंध्य क्षेत्र के एक नेता भी भाजपा से निकटता बढ़ा रहे हैं। यह सारे घटनाक्रम इस बात का संकेत हैं कि राहुल सिंह सदन में नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपने दल को एक प्रभावी नेतृत्व देने में असफल रहे हैं। हालांकि अब कांग्रेस उन्हें हटाने का जोखिम शायद ही उठाए लेकिन इस कांड ने उनकी भविष्य की राजनीति को लेकर कई सवाल तो खड़े किए ही हैं।
सवाल कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव को लेकर भी उठे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सदन में कहा है कि जब कांगे्रस के उपनेता को ही नेता प्रतिपक्ष पर विश्वास नहीं हैं तो अविश्वास प्रस्ताव कैसा। मुख्यमंत्री ने सदन में ही राकेश सिंह की प्रशंसा करके आगामी रणनीति का संकेत दे दिया था उन्होंने कहा कि राकेश सिंह ने संकुचित स्वार्थों से ऊपर उठकर सिद्धांतों की राजनीति को तरजीह दी है। उन्होंने दल की नहीं दिल की सुनी तथा अपने राजनीतिक करियर को भी दांव पर लगा दिया।
तो सुरक्षित रहते अजय सिंह
नेताप्रतिपक्ष अजय सिंह से उस दिन कूटनीतिज्ञ चूक भी हुई। अजय सिंह को यह भनक लग गई थी कि चौधरी राकेश सिंह की निकटता भाजपा से निर्णायक स्तर तक बढ़ चुकी है। हंगामे के समय जब अध्यक्ष ने सदन की कार्रवाई आधे घंटे तक के लिए स्थगित कर दी थी उस दौरान यदि आलाकमान से बात करके अजय सिंह चौधरी राकेश सिंह को निष्कासित करवा देते तो शायद स्थिति कुछ संभल जाती। लेकिन अध्यक्षीय दीर्घा में बैठे सुरेश पचौरी ने भी कोई रुचि नहीं दिखाई क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे तय करने के लिए बुलाई गई बैठक से राकेश सिंह को दूर रखा गया है यह भनक पचौरी को भी लग चुकी थी। हालांकि अविश्वास प्रस्ताव की जवाब की तैयारी सरकार ने पूरे मनोयोग से की थी। बहुत मेहनत करके 18 पेज के प्रस्ताव का जवाब 85 पेज में तैयार किया गया था। सरकार का कहना है कि प्रतिपक्ष के आक्रमण देने की तैयारी उसके पूरी थी। यही कारण है कि चौधरी प्रकरण के अगले दिन 12 जुलाई को नरोत्तम मिश्रा ने अविश्वास प्रस्ताव के संबंध में बिंदुवार जानकारी लगभग 78 पृष्ठों में मीडिया को भी उपलब्ध कराई। जिसमें हर एक आरोप का विस्तार पूर्वक जवाब दिया गया है। यह बताया गया है कि मुख्यमंत्री ने 29 नवंबर 2005 से 8 जुलाई 2013 तक कुल 8 हजार 277 घोषणाएं की थी जिनमें से 7160 घोषणाओं के क्रियान्वयन की कार्यवाही पूरी हो चुकी है जो कि 87 प्रतिशत है। एक हजार 117 घोषणाओं में क्रियान्वयन की कार्रवाई चल रही है और बाकी घोषणाओं में से 325 घोषणाएं तीन माह से कम अवधि की हैं जिन्हें पूरा कर लिया जाएगा। सरकार ने जो जानकारी उपलब्ध कराई है उसमें घोषणाओं के विषय में विस्तार पूर्वक बताया भी गया है और यह भी वर्णन है कि किस विषय पर कितनी घोषणाएं की गई और उनमें से कितनी पूरी हो गई। भ्रष्टाचार के संबंध में भी प्रदेश सरकार ने बड़ी तैयारी के साथ अपनी सफाई प्रस्तुत की है साथ ही केंद्र सरकार द्वारा किए गए घोटालों की भी चर्चा की गई है। इस दस्तावेज में कुपोषण के संबंध में विपक्ष के कुप्रचार का जवाब देते हुए सरकार ने कुछ आंकड़े प्रस्तुत किए हैं जिनका सार यह है कि जच्चा-बच्चा मृत्यु दर में कमी आई है और कुपोषण से किसी की भी मौत नहीं हुई है। कानून व्यवस्था पर सरकार का कहना है कि यह विरासत में मिली थी, लेकिन वर्तमान सरकार ने उसे सुधारा, नक्सलवाद सहित तमाम समस्याओं पर प्रभावी रोक लगाई गई, पुलिस प्रणाली में सुधार किए गए, डकैतों पर नियंत्रण किया गया, सांप्रदायिक सद्भाव बनाकर रखा गया और महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष उपाए किए गए। आदिवासियों व दलितों पर अत्याचार के मामले में भी सरकार ने बताया है कि किसी समय देश में आदिवासी स्त्रियों से होने वाले बलात्कार का 60 प्रतिशत मध्यप्रदेश में ही होता था जो अब घटकर 49.6 प्रतिशत रह गया है। इसी प्रकार अनुसूचित जाति के विरुद्ध वर्ष 2002 में मध्यप्रदेश में अपराधों का प्रतिशत पूरे देश के अपराधों में 21.5 था जो अब घटकर 9.60 रह गया है। गैमन जमीन घोटाले पर भी सरकार ने वस्तुस्थिति बताते हुए कहा है कि उसमें जो भी कार्रवाई की गई वह कानून के मुताबिक थी और सरकारी खजाने को 5 हजार 250 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाने का कांग्रेस का आरोप गलत है। अटल ज्योति अभियान की विफलता सहित कई अन्य आरोपों पर भी सरकार ने अपना पक्ष रखा है और कहा है कि कांग्रेस ने तथ्यहीन आरोप लगाए हैं। इस दस्तावेज में मुख्यमंत्री के परिवार पर विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों पर भी सिलसिलेवार सफाई दी गई है। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ने अविश्वास प्रस्ताव से पहले ही अपने मंत्रियों को मुस्तैद किया था कि वे हर आरोप का डटकर जवाब दें और विपक्ष का सामना करें। लेकिन इसका अवसर ही नहीं आया। अवसर आता तो शायद पता लगता कि सरकार ने किस तरह तैयार करके रखी है। विशेष बात यह है कि चौधरी प्रकरण के बाद भाजपा की आक्रामकता और बढ़ी है। नेता प्रतिपक्ष द्वारा मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी को आरोपित करने के बाद मुख्यमंत्री ने भोपाल न्यायालय में अजय सिंह के विरुद्ध 1 करोड़ रुपए की मानहानि का दावा भी किया है। अजय सिंह ने 9 मई को सागर में एक सभा के दौरान कहा था कि प्रदेश में गुटखा पाउच पर प्रतिबंध लगा है। गुटखा पाउच पहले 10 रुपए में छह मिलते थे आज 10 में तीन मिल रहे है। इसकी कालाबाजारी हो रही है करोड़ों पाउच के रुपए साधना भाभी की मशीन में गिने जा रहे हैं।
पर्यवेक्षकों से बचे
चौधरी प्रकरण ने भाजपा को बहुत बड़ी राहत दी दरअसल अध्यक्षीय दीर्घा में भारतीय जनता पार्टी के सांसद अनिल माधव दवे, कैलाश सारंग, माया सिंह जैसे नेता मौजूद थे। खासकर दवे की मौजूदगी का कारण अविश्वास प्रस्ताव पर नेताओं के परफार्मेंस का आंकलन था। माया सिंह भी यही देखने को आईं थी। उमा भारती भी मौजूद थी। उधर कांग्रेस की तरफ से सुरेश पचौरी जैसे नेता दीर्घा में बैठे हुए थे। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होने से पहले ही नाटक का पटाक्षेप हो गया। इसलिए कुछ नेताओं ने मन ही मन चौधरी को धन्यवाद भी दिया।
दिग्विजय ही बने सूत्रधार
यह संयोग की बात है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में जब भी कुछ भारी उथल-पुथल होती है उसके तार कहीं न कहीं दिग्विजय सिंह से जुड़ ही जाते हैं। एक दिन पहले तक सत्ता के गलियारों में दिग्विजय के ट्वीट बच्चा-बच्चा राम का राघवजी के काम का की बड़ी चर्चा थी कहा जा रहा था कि दिग्विजय सिंह ने एक तीर से सबको घायल कर दिया, लेकिन अगले ही दिन उनका यह कथन कांग्रेस पर भारी पड़ गया। जिस अंदाज में राकेश सिंह हिंदू हितों के पैरोकार बनकर गरजे उसने दिग्गी राजा के ट्वीट की हवा निकाल दी। अब कांग्रेस की तरफ सन्नाटा छाया हुआ है।