भ्रष्टाचार का अड्डा
17-Sep-2018 10:07 AM 1234942
मप्र के परिवहन विभाग को कृपा पात्रों का चारागाह कहा जाता है। यानी जिस पर शासन-प्रशासन में बैठे रसूखदारों की कृपा बरसती है वही यहां के मालदार स्थानों पर पदस्थ होता है। लेकिन देखा यह जा रहा है कि कृपा पात्र लोगों पर एक महीने के अंदर ही गाज गिर जाती है। आरटीओ के नियमानुसार चौकियों पर अधिकारियों-कर्मचारियों को छह माह के लिए पदस्थ किया जाता है। लेकिन अब इस नियम का पालन नहीं हो रहा है। इसका ताजा उदाहरण अभी हाल ही में सामने आया है। आरटीओ में अभी हाल ही में विभिन्न चौकियों पर पदस्थ पांच अधिकारियों को एक माह के अंदर ही चलता कर दिया गया। इनमें मालथोन में पदस्थ जगदीश उइके, पिटोल में पदस्थ अजय मार्कों, वीरेंद्र यादव खिलचीपुर, सुरेश पाठक शाहपुर फाटा और विरेश तुकराम को खबासा से हटाया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि कृपा पात्र इन धनपतियों को एक माह में ही आखिर क्यों हटा दिया गया। दरअसल इस विभाग में कमाऊ पुत्र को हमेशा तवज्जो दी जाती रही है। शायद यही कारण है कि इन्हें एक माह के अंदर ही हटा दिया गया। विभाग के मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी तथाकथित तौर पर भले ही ईमानदार हैं लेकिन उनकी नाक के नीचे भ्रष्टाचार का खेल खूब चल रहा है। परिवहन चौकियों पर धनकुबेरों को पदस्थ करने के लिए कायदे-कानून को ताक पर रखा जा रहा है। उधर इस चुनावी साल में सरकार ने उन आरटीओ बैरियरों को शुरू कर दिया है जिन्हें अवैध वसूली के आरोपों के चलते एक साल पहले ताले लगवा दिए थे। तर्क तो यह दिया जा रहा है कि जबलपुर हाईकोर्ट के आदेश के बाद बैरियरों को पुन: खोला जा रहा है लेकिन, विभाग में ही चर्चाएं हैं कि, प्रदेश सरकार की माली हालत बेहद खराब है, चुनावी साल में लगातार खर्च बढ़ रहा है। वहीं सूत्र बताते हैं कि भाजपा को भी चुनावी साल में पैसे की जरूरत है। चौकियों से होने वाली कमाई पार्टी खर्च के लिए भी जाती है। ऐसे में टैक्स के नाम पर आमदनी के लिए आरटीओ बैरियर सबसे मजबूत विकल्प हैंं। अगर सरकार चाहती तो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट भी जा सकती थी परंतु ऐसा नहीं किया। गौरतलब है कि, मप्र में कुल 41 आरटीओ बैरियर हैं जिन्हें केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद 12 सितंबर 2017 को बंद कर दिया था। बाद में परिवहन विभाग ने 41 में से कुछ बड़े बैरियरों को चालू कर लिया जहां कंप्यूटरीकृत व्यवस्था थी। बाकी के 29 बैरियर एक साल से बंद पड़े थे। मप्र में आरटीओ बैरियरों को पंजाब सरकार की शिकायत पर बंद किया गया था। दरअसल फरवरी से अप्रैल तक गेहूं कटाई के दौरान पंजाब के हार्वेस्टर मप्र में आते हैं। उन हार्वेस्टरों से मप्र के हर बेरियर पर 500 से लेकर 1500 रुपए तक की वसूली हो रही थी। हार्वेस्टर मालिकों ने पहले इसकी शिकायत मप्र पुलिस को की फिर सीएम हेल्पलाइन में भी शिकायत दर्ज कराई लेकिन, समाधान नहीं हुआ। पंजाब हार्वेस्टर यूनियन के सदस्यों ने पंजाब के परिवहन मंत्री से शिकायत की। इसके बाद पंजाब के सीएम ने यह बात केंद्र सरकार तक पहुंचाई। केंद्र की आपत्ति के बाद सितंबर 2017 से प्रदेश के आरटीओ बैरियरों को बंद कर दिया गया था। पहले जब प्रदेश के आरटीओ बैरियर शुरू किए गए तब परिवहन आयुक्त डॉ. शैलेन्द्र श्रीवास्तव के पास लगातार अवैध वसूली की शिकायतें आ रही थी। उन्होंने इसकी पड़ताल करवाई और वहां तैनात कटरों को हटा दिया है। दरअसल श्रीवास्तव की लगातार कोशिश रही है कि परिवहन में भ्रष्टाचार और अवैध वसूली बिल्कुल न हो। मजे की बात यह है कि, इन्हीं निजी कर्मचारियों ने जबलपुर हाईकोर्ट में एक याचिका लगवाई है। श्योपुर के एक पूर्व आरटीओ ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि, याचिका पर हुआ खर्च बैरियरों पर पदस्थ कर्मचारियों एवं निजी कर्मचारियों ने मिलकर उठाया। अब देखना यह है कि, जिन निजी कर्मचारियों के कारण बैरियर बंद हुए वह अब दिखेंगे या नहीं। - कुमार राजेंद्र
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