नींद में जंगल के पहरेदार
17-Sep-2018 07:46 AM 1234802
देश में सबसे अधिक वन क्षेत्र वाले प्रदेश मप्र पेड़ों की अवैध कटाई के लिए कुख्यात है। यही कारण है कि साल दर साल प्रदेश का वन क्षेत्र कम होता जा रहा है। अधिकारियों और माफिया की मिलीभगत से वन सम्पदा का जमकर दोहन हो रहा है। हैरानी की बात यह है कि प्रदेश की राजधानी भोपाल और व्यावसायिक राजधानी इंदौर वन मंडल क्षेत्र में भी अवैध कटाई जोरों पर है। इंदौर वन मंडल की चोरल रेंज में एक हजार से ज्यादा पेड़ों की अवैध तरीके से कटाई हो गई। जंगल को मैदान कर खेती की जा रही है। मामला इतना गंभीर हो गया कि वन संरक्षक ने गुपचुप तरीके से दो एसडीओ और एक रेंजर की टीम बनाकर नुकसान का आंकलन कराया है। हैरत की बात यह है कि वन संरक्षक, एसडीओ और रेंजर कागजों में जंगलों का दौरा करना नियमित बताते हैं। डीजल का पैसा भी ले रहे हैं, लेकिन इतने पेड़ कट गए और उन्हें पता नहीं चला। बाई ग्राम से आशापुरा, ओखला जाने वाले रोड के दोनों तरफ बड़े पैमाने पर घावटी (कट) लगाकर पेड़ों को काट दिया गया है। आशापुरा तरफ तो एक कंपार्टमेंट में करीब 400 पेड़ों के कटे होने के प्रमाण मिले हैं। वन संरक्षक एमएस सिसौदिया ने प्रभावित स्थानों का दौरा करने के बाद जांच के लिए टीम गठित की है। इसमें एसडीओ अनिल पटेल, रालामंडल अधीक्षक आरसी चौबे और महू रेंजर सीएस श्रोत्रिय को नियुक्त किया गया है। तीनों अफसरों की टीम ने एक बार प्रभावित इलाके का दौरा कर फोटो भी ले लिए हैं। बाकायदा प्रभावित क्षेत्र को दर्शाने के लिए अक्षांश और देशांश भी फोटो में दर्शाया गया है, ताकि भोपाल में बैठे शीर्ष अफसर गूगल मैप के जरिए भी कटाई देख सकें। नियमानुसार वन संरक्षक, एसडीओ और रेंजर के जंगल निरीक्षण का शेड्यूल बना हुआ है। इसके अनुसार ही दौरा जरूरी है। रोटेशन में जंगल का दौरा करना ड्यूटी का प्रमुख हिस्सा है। वन संरक्षक को तीन महीने में एक बार, एसडीओ को महीने में एक बार और रेंजर को हर सप्ताह जंगल का दौरा करना अनिवार्य है, लेकिन अफसर दौरा डायरी में केवल कागजी निरीक्षण भर देते हैं। जंगल देखने नहीं जाते। इतने पेड़ कटने के बाद भी वन विभाग का फ्लाइंग स्क्वॉड, रेंज का दस्ता, सीसीएफ का अमला आरोपियों की धरपकड़ नहीं कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक जिम्मेदार अफसर ही निचले स्टाफ को धरपकड़ से रोक रहे हैं। कारण यह कि आरोपियों की मिलीभगत अफसरों से हो सकती है। उनकी गिरफ्तारी पर रैकेट का खुलासा हो सकता है, इसलिए केवल नुकसान का आंकलन किया जा रहा है। जंगल क्षेत्र में हरी लकड़ी कटने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। इस कारोबार में लगे लोग जंगल से हरी लकड़ी काटकर उसके गट्ठर तैयार कर यात्री बसों के जरिए कैलारस, सबलगढ़, जौरा आदि क्षेत्रों में खफा रहे हैं। हैरानी की बात यह है पहाडगढ़ मुख्यालय पर तैनात वन विभाग के अधिकारियों को इसकी जानकारी है, बावजूद इसके वे कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठाते। मालूम हो कि इन दिनों पहाडगढ़ स्थित रकैरा, धौंधा, ईश्वरा महादेव, हीरामन आदि जंगल क्षेत्र में इन दिनों पेड़ों की कटाई भारी तादात में की जा रही है। बावजूद इसके वन विभाग के अधिकारी इस ओर उदासीन बने हुए है। यही नहीं पेड़ों की कटाई के साथ ही अवैध शिकार के मामले भी बढ़ रहे हैं। इस कारण जंगल से वन्य प्राणी भी गायब होते जा रहे हैं। इसके बाद भी जिम्मेदारों को जंगल बचाने में दिलचस्पी नहीं है। आलम यह है कि प्रदेश के हर वन क्षेत्र में लगातार पेड़ों की कटाई हो रही है, चोर पकड़े भी जा रहे हैं, लेकिन अवैध कटाई थमने का नाम नहीं ले रही है। दरअसल वन विभाग के कर्मचारियों की मिली भगत से लकड़ी चोरों का बोल बाला है। वन विभाग के मैदानी अमले ने अभी तक अवैध रूप से ले जा रही सागौन की लकड़ी तो पकड़ी है, लेकिन जंगल से पेड़ों को बचाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसका परिणाम यह हो रहा है कि वनों में बहुमूल्य पेड़ों को धड़ा-धड़ काटा जा रहा है। अंधाधुंध कटाई से सिमट रहा जंगल का इलाका स्थिति यह है कि वनों में अंधाधुंध कटाई से जंगल का क्षेत्र लगातार सिमट रहा है। उदाहरणार्थ इछावर वन परिक्षेत्र का जंगल लगातार कम होता जा रहा है और पेड़ों के स्थान पर खेत आकार ले रहे हैं। जंगल कटने से वन प्राणियों को भी नुकसान हो रहा है। जंगल कटने के कारण उन्हें जंगल छोड़कर भागना पड़ रहा है। गौरतलब है कि इस समय जंगल में अंधा-धुन कटाई की जा रही है लेकिन वन विभाग लकड़ी चोरों द्वारा छोड़ी गई लकड़ी जब्त कर अपनी पीठ थपथपा रहा है। रेंज क्षेत्र के सागौन के जंगल का दायरा काम होता जा रहा है और इसके स्थान पर खेत आकार ले रहें हैं। जिस वन भूमि पर कभी घना सागौन का जंगल हुआ करता था अब वहां खाली मैदान पड़ा नजर आ रहे हैं। वन परिक्षेत्र में हो रही अंधाधुंध कटाई के कारण जंगल के वन प्राणियों की संख्या घटती जा रही है। इसी प्रकार इछावर रेंज के 24474.284 हेक्टेयर जंगल में एक समय शेर, तेंदुआ, हिरण, संभार आदि वन्य प्राणी थे लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या कम होती चली गई और कुछ जंगली जानवर तो पूरी तरह से खत्म ही हो गए। जो जंगलों में बचे हैं उनका भी चोरी छुपे शिकार हो रहा है। -विकास दुबे
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