अपराध अब अधिकार
17-Sep-2018 07:25 AM 1234908
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि भारत में समलैंगिकता अब अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने कहा है कि समलैंगिकों को भी सम्मान से जीने का हक है। इसके साथ ही कोर्ट समलैंगिकता को अपराध मानने वाली धारा 377 को भी खत्म कर दिया। आपको बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद 17 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की कैटेगरी से हटाकर अधिकारों की झोली में डाल दिया है। सर्वोच्च अदालत की संवैधानिक पीठ ने एक मत से ये फैसला सुनाया है जिसमें दो बालिगों के बीच सहमति से बनाये गये समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 के प्रावधान को खत्म कर दिया गया है। ध्यान रहे - सुप्रीम कोर्ट ने दो बालिगों के बीच सिर्फ सहमति से बने संबंध को ही अपराध की कैटेगरी से हटाया है, बाकी बातें बदस्तूर जारी रहेंगी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों के अति महत्वपूर्ण फैसलों में से एक सुना रहे थे। अरसे से अपने हक के पक्ष में फैसले का लोगों को बेसब्री से इंतजार था। संविधान पीठ के सभी जजों ने अलग-अलग फैसले सुनाये, हालांकि, सभी एकमत थे। धारा 377 को मनमाना करार देते हुए और व्यक्तिगत पसंद को सम्मान देने की बात कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2013 के अपने ही फैसले को पलट दिया। एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के 2009 के फैसले को ही सही ठहराया है। धारा 377 के तहत समलैंगिकता को आपराधिक कृत्य से हटाकर दो बालिगों को सहमति से संबंध बनाने का हक देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसके सामाजिक और संवैधानिक परिप्रेक्ष्य में कई पहलुओं की चर्चा की। सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणियां सिर्फ धारा 377 ही नहीं अंग्रेजों के जमाने के ऐसे तमाम कानूनों के सिलसिले में बेहद महत्वपूर्ण लगती हैं। केंद्र की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार ने जरूर कुछ कानूनों को खत्म किया है, लेकिन ऐसे अप्रासंगिक कानूनों का अंबार है जिनके होने का आज कोई मतलब नहीं रह गया है। धारा 377 खत्म नहीं हुई है सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को मनमाना जरूर बताया है, लेकिन इसका कतई ये मतलब नहीं निकाला जाना चाहिये कि इसे रद्द कर दिया गया है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आईपीसी की धारा 377 में यौन संबंधों को लेकर क्या प्रावधान थे। दरअसल, धारा 377 में अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने को अपराध घोषित किया गया है। धारा के अंतर्गत कोई भी पुरुष अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है तो उसे अपराध माना जाता हैं। इसमें महिला और पशुओं को भी शामिल किया गया है। इस अपराध के लिए उम्रकैद या दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है। आपको बता दें कि समलैंगिकता का मामला सबसे पहले 1290 में इंग्लैंड के फ्लेटा इलाके में सामने आया था। जिसके बाद इसको कानून बनाकर अपराध की श्रेणी में शामिल कर लिया गया था। इसके बाद ही ब्रिटेन और इंग्लैंड में 1533 में अप्राकृतिक यौन संबंधों को लेकर बगरी एक्ट बनाया गया। बगरी एक्ट के तहत ऐसे अपराधियों के लिए फांसी का प्रावधान रखा गया था। हालांकि 1817 में बगरी एक्ट से ओरल सेक्स को हटा दिया गया था। आपकों बता दें कि भारत ऐसा अकेला देश नहीं है, जहां समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है। इससे पहले भी दुनिया के तमाम देश समलैंगिकता को मान्यता दे चुके हैं। इनमें न्यूजीलैंड, उरुग्वे, डेनमार्क, अर्जेंटीना, आयरलैंड, अमेरिका, ग्रीनलैंड, स्कॉटलैंड, लक्जमबर्ग, पुर्तगाल, आइसलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, कनाडा, बेल्जियम, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, माल्टा, जर्मनी, फिनलैंड, कोलंबिया, इंग्लैंड और वेल्स, ब्राजील और फ्रांस जैसे 26 देश शामिल हैं। - विशाल गर्ग
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