बह गई 2,500 किमी सड़क
17-Sep-2018 06:11 AM 1234817
मानसून की बारिश ने एक बार फिर सड़क निर्माण में हुए भ्रष्टाचार की पोल खोल दी है। भ्रष्टाचार की बुनियाद पर बनी प्रदेशभर की 2,500 किलोमीटर लम्बाई से ज्यादा सड़कें गारंटी पीरियड में ही बह गई हैं। ये सारी सड़कें गांव-खेड़ों की नहीं, बल्कि भोपाल, इंदौर, उज्जैन, जबलपुर, ग्वालियर जैसे प्रमुख शहरों की हैं। इन शहरों की 70 प्रतिशत से ज्यादा सड़कें गड्ढेदार हो गई। अब इन तमाम सड़कों की मरम्मत के लिए 561 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि नगरीय निकायों ने शासन से मांगी है। हर साल बारिश के दिनों में सड़कें खराब होती है और डामर की बनी सड़कें तो हल्की बारिश में ही बह जाती है। सड़कों की बदहाल स्थिति को लेकर हल्ला मचता रहा है। हालांकि विगत वर्षों में डामर की बजाय सीमेंट कांक्रीट की सड़कें ज्यादा बनाई जाने लगी जिससे कई वर्षों तक ये सड़कें सही-सलामत रहें। लेकिन सीमेंट कांक्रीट की सड़कों में भी गड्ढे बन गए हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों ने जहां अपने अधिकांश राजमार्गों को बीओटी ठेकों पर बनवाया, जिसके एवज में जनता को 15 से 20 साल तक भारी-भरकम टोल टैक्स चुकाना पड़ता है। वहीं शहरी सीमा के अंदर नगरीय निकायों द्वारा सड़कों का निर्माण किया जाता है। हालांकि लोक निर्माण विभाग के अलावा प्राधिकरण भी अपनी योजनाओं में शामिल सड़कों के अलावा मास्टर प्लान के साथ मुख्य सड़कों का निर्माण करता रहा है। अभी प्रदेशभर में बारिश जारी है, जिसके चलते अधिकांश सड़कें गड्ढेदार हो गई और सोशल मीडिया पर इन गड्ढेदार सड़कों के फोटो के साथ सरकार का मजाक उड़ाया जा रहा है। पिछले दिनों नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने प्रमुख शहरों में खराब हुई सड़कों की जानकारी जब हासिल की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पता चला कि भोपाल, जबलपुर, इंदौर, उज्जैन, ग्वालियर, सागर, रीवा जैसे प्रमुख शहरों में ढाई हजार किलोमीटर से ज्यादा सड़कें बारिश के कारण बदहाल हो गई। इनमें 70 प्रतिशत से ज्यादा सड़कें सीमेंट कांक्रीट की हैं, जिनके लिए दावा किया जाता है कि इन सड़कों का रख-रखाव 25-50 सालों तक नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि डामर की सड़कें दो-तीन सालों में ही खराब हो जाती है। सभी सरकारी विभाग और नगरीय निकाय सड़कों का ठेका देते वक्त तीन साल का गारंटी पीरियड निर्धारित करते हैं। यानी इस दौरान अगर सड़कें क्षतिग्रस्त होती हैं तो ठेकेदार फर्म ही उसे सुधारकर देंगी, लेकिन नगर निगम से लेकर अन्य विभागों में सालों से यह घोटाला होता रहा है कि गारंटी पीरियड वाली सड़कों के पुनर्निमाण या पेंचवर्क के लिए नए सिरे से राशि खर्च की जाती है। इस बार भी यही घोटाला दोहराने के प्रयास किए गए और इन बर्बाद हुई सड़कों की मरम्मत के लिए शासन से 561 करोड़ रुपए की राशि नगरीय निकायों द्वारा मांगी गई। अगर राजधानी भोपाल की बात करें तो यहां और इसके आसपास करीब एक दर्जन सड़कें बदहाल हैं। इनके पेच वर्क पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन हालात नहीं सुधरते। कई सड़कें तो ऐसी हैं, जिनके बार-बार जर्जर होने के कारण सीमेंट कांक्रीट (आरसीसी) कर दिया गया है। लेकिन आरसीसी करने के बाद भी इन सड़कों पर वाहन हिचकोले खाते हुए चलते हैं। तकनीकी खामियों के चलते अलाइनमेंट, मरम्मत आदि बढऩे से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन विभाग ठेकेदारों के सामने मौन है। मंत्री ने दिखाई सख्ती जो सड़कें खराब हुई हैं उनमें से ज्यादातर सड़कें गारंटी पीरियेड की ही है और इसको लेकर विभागीय मंत्री रामपाल सिंह ने भोपाल में बैठक ली, जिसमें बदहाल सड़कों की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और शासन से मांगी राशि पर भी चर्चा की गई। दरअसल इस बार विधानसभा चुनाव होने के कारण शासन की चिंता है कि बदहाल सड़कों से उसे नुकसान होगा, लिहाजा बारिश खत्म होते ही अधिकांश सड़कों को ठीक कराने का युद्ध स्तर पर अभियान शुरू किया जाएगा। अब विभागीय मंत्री ने नगरीय निकायों को कहा है कि वे गारंटी पीरियड वाली सड़कें ठेकेदार फर्मों से दुरुस्त करवाएं, अन्यथा उन्हें काली सूची में डालें। - नवीन रघुवंशी
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