17-Sep-2018 06:08 AM
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मप्र में खनन माफिया ने मुरैना के देवरी गांव में डिप्टी रेंजर को अवैध खनन में लगे ट्रैक्टर ने कुचल कर मार डाला। यह दर्शाता है कि प्रदेश में माफिया के हौंसले कितने बुलंद हैं। वह भी तब जब सरकार ने अवैध रेत खनन पर अंकुश लगाने के लिए नई रेत खनन नीति लागू कर दी है। दरअसल, रेत माफिया को खाकी और खादी का साथ मिला हुआ है। अगर इस बीच कोई माफिया को रोकने की कोशिश करता है तो उसे मौत मिलती है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कानून व्यवस्था इतनी लचर क्यों हो गई है कि वह प्रदेश अवैध खनन का गढ़ बनता जा रहा है।
प्रदेश में खनन माफिया के हौंसले इतने बुलंद हैं कि उनको पुलिस और प्रशासन का एक दम भय नहीं है। हर साल ग्वालियर-शिवपुरी-मुरैना और भिंड जिले में हो रहा लगभग 5 हजार करोड़ रुपए का अवैध उत्खनन और परिवहन 20 से 30 जिंदगियां छीन रहा है। बेखौफ माफिया हर वर्ष एक वर्दीधारी की जिंदगी को रेत-पत्थर के वाहन से कुचल रहा है। इसके अलावा वन, माइनिंग और प्रशासन की टीम पर हर साल लगभग 15 हमले किए जा रहे हैं। खास बात यह है कि अवैध उत्खनन और परिवहन का यह मामला हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी बीते सत्र में उठा था। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने पूरी सरकार की नीयत पर सवाल उठाए थे। इसके बावजूद सरकार ने खनन माफिया और उसके संरक्षकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
मध्य प्रदेश में राजगढ़, भिंड हो या छिंदवाड़ा धरती का सीना चीरकर अवैध उत्खनन की तस्वीरें पूरे प्रदेश से आती रहती हैं। यही वजह है केंद्रीय खनन मंत्रालय ने लोकसभा में दिए गए जवाब में माना है कि मध्य प्रदेश अवैध खनन के मामले में नंबर दो पर है। आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में अवैध उत्खनन के सबसे ज्यादा 31173 मामले महाराष्ट्र से आए, लेकिन एफआईआर 794 में दर्ज हुई। मध्य प्रदेश से 13880 मामले आए, लेकिन एफआईआर दर्ज हुई 516 में, जबकि आंध्र प्रदेश से 9703 मामले आए एफआईआर हुई 3 में।
सरकार आंकड़ों से फिक्रमंद तो है, लेकिन राजस्व बढ़ाने के नाम पर पीठ भी थपथपा रही है। खनन मंत्री राजेन्द्र शुक्ल कहते हैं कि, जिस आंकड़े की बात कर रहे हैं वो चिंता का विषय है लेकिन जब सरकार बनी थी तब खनिज राजस्व 600 करोड़ आता था, आज 4500 करोड़ आ रहा है क्योंकि हमने उन लोगों पर अंकुश लगाया, शिकंजा कसा जिनको कांग्रेस के शासनकाल में संरक्षण मिलता था और नीचे तक निर्देश दिये कि अवैध उत्खनन को बर्दाश्त नहीं करना है।
मध्य प्रदेश के चंबल इलाके में अक्सर खनन माफियाओं के द्वारा पुलिस, वन और राजस्व अधिकारियों को निशाना बनाए जाने की खबरें आती रहती हैं। इस वर्ष मार्च में एक समाचार चैनल के पत्रकार संदीप शर्मा ने कथित तौर पर चंबल क्षेत्र में पुलिस और रेत माफिया के बीच सांठगांठ का खुलासा किया था, जिसके बाद भिंड जिले में डंपर से कुचले जाने पर उनकी मौत हो गई थी। पिछले वर्ष आईएएस अधिकारी सोनिया मीणा ने छतरपुर जिले की सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट के तौर पर बेतवा नदी में किए जा रहे अवैध खनन की जांच करने का कदम उठाया तो खनन माफियाओं ने बंदूक दिखाकर उन्हें धमकाया था। बाद में उन्हें मौत की धमकी मिली थी जिसके बारे में उन्होंने मुख्य सचिव बीपी सिंह को शिकायत की थी।
2016 में एक फॉरेस्ट गार्ड नरेंद्र शर्मा को उस वक्त कुचल दिया गया जब उसने एक ट्रैक्टर ट्रॉली को रोकने की कोशिश की। साल भर पहले धर्मेंद्र चौहान नाम के कॉन्सटेबल के साथ भी ऐसी ही वारदात को अंजाम दिया गया था। मार्च 2012 में आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार ने मुरैना के बनमोर में अवैध खनन किए गए पत्थरों से भरी एक ट्रैक्टर ट्रॉली को रोकने की कोशिश की थी, उन्हें भी कुचल कर मार डाला गया था।
खाकी और खादी की शह
मप्र में खनन माफिया का दुस्साहस यूं ही नहीं बढ़ा है। सत्ता परिवर्तन के बाद कुछ दिन बंद रहा अवैध खनन अब रफ्तार पकडऩे लगा है। इसको खाकी और खादी दोनों की शह मिली है। हर दिन होने वाली लाखों की उगाही सभी को जानबूझकर आंख बंद करने पर मजबूर कर रही है। सूत्रों का कहना है कि इन वाहनों का रेट तय कर रखा है। रेत और पत्थर के अवैध खनन के लिए अलग-अलग रेट निर्धारित हैं। माफिया के गुर्गे हर दिन के हिसाब से पुलिस और नेता के पास रकम पहुंचा देते हैं। इसीलिए इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। रेत के इस काले कारोबार की तह तक पहुंचने के लिए हमारी टीम जान जोखिम में डालकर रेत की खदानों तक पहुंची। जहां पर दिन में ट्रेक्टरों से अवैध उत्खनन किया जा रहा है। अवैध उत्खनन के लिए नदी की धारा को ही रोक दिया गया है। जगह-जगह गड्ढे कर दिए गए हैं। दिन में नदी से रेत निकालकर ट्रैक्टरों के जरिए बाहर मुख्य सड़क पर एकत्रित कर लिया जाता है और उसके बाद रात के समय ट्रकों और डंपरों में भरकर रेत को उत्तर प्रदेश पहुंचा दिया जाता है।
- विकास दुबे