04-Sep-2018 09:41 AM
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भारत को होशियार रहना होगा। भारतीय बाजार में चीनी सामग्रियों की डंपिंग (विदेशी बाजार में कम मूल्य पर विक्रय) से पहले ही हमारे कारोबारियों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था और अब अमेरिका व चीन के मध्य ट्रेड वार के गहराने से हमारे यहां चीनी सामान की डंपिंग और बढ़ सकती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब तक भारत इस समस्या से निपटने के प्रति न तो पर्याप्त रूप से सजग रहा है और न ही इसे लेकर उसका रवैया स्पष्ट है। चीन के इन सस्ते व खराब गुणवत्ता वाले सामानों की वजह से भारतीय लघु व कुटीर उद्योग धंधों को भी बहुत नुकसान पहुंचा है। चीनी माल के चलते हमारे यहां हजारों छोटे कारोबारियों को अपना कारोबार समेटना पड़ा और वे सड़कों पर आ गए।
यदि भारत यूं ही चीनी माल की डंपिंग की अनदेखी करता रहा तो यह आत्मघाती होगा। आखिर जब अमेरिका अपने घरेलू उद्योगों के हितों के संरक्षण के लिए विभिन्न चीनी सामग्रियों पर भारी भरकम शुल्क लगा सकता है, तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? हमारे देश में बढ़ती बेरोजगारी एक ऐसा प्रमुख मसला है, जो अगले आम चुनाव में मोदी सरकार के खिलाफ जा सकता है और वह इसकी अनदेखी करना गवारा नहीं कर सकती। हालांकि एक ऐसे दौर में बीजिंग से अच्छे रिश्ते रखना भी लाजिमी है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रवैया अस्थिर है और हम इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकते कि यदि कभी चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर हमारे खिलाफ सैन्य टकराव का रास्ता अख्तियार करें।
लेकिन इसके साथ-साथ हमें अपनी आर्थिक संप्रभुता को भी तो दांव पर नहीं लगा सकते। एक स्तर के बाद तो हमें अपना रवैया सख्त करना ही होगा। पुराने टेरिफ की समीक्षा करने के साथ कुछ नए टेरिफ भी लगाए जाएं और साथ ही साथ तस्करी के रास्तों पर भी पैनी निगाह रखी जाए, ताकि बगैर शुल्क चुकाए चीनी माल की डंपिंग न हो सके। देश के भीतर जो कारोबारी जल्द से जल्द भारी भरकम लाभ कमाना चाहते हैं, वे तस्करी के जरिए आए ऐसे माल को गुपचुप रूप से खरीद लेते हैं। ऐसे बेईमान कारोबारियों को पकड़कर ऐसा सख्त दंड दिया जाए जो मिसाल बने, ताकि दूसरे लोग ऐसा करने से हिचकें।
वाणिज्य पर गठित एक संसदीय स्थायी समिति ने पिछले दिनों लोकसभा में पेश अपनी 145वीं रिपोर्ट में कहा कि भारत में चीन की व्यापारिक गतिविधियां (अपने अतिरिक्त माल को दूसरे देश में बेचना, कीमतों को गिराना और वहां के स्थानीय विनिर्माताओं को नुकसान पहुंचाना) इस बात की गवाह हैं कि बीजिंग किस रास्ते पर चल रहा है। भारत सरकार के लिए यह गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए।
अमेरिका में चीनी आयातित सामग्रियों पर सख्ती बढऩे के साथ चीन भारत जैसे देशों में अपने माल की डंपिंग बढ़ाने की कोशिश कर सकता है, जिसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। भारत का चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा पहले ही भारतीय कारोबारी सर्किल में गंभीर चिंता का विषय है और यदि चीनी माल की डंपिंग बढ़ती है तो स्थिति और बिगड़ेगी। संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में चीनी सौर पैनलों का प्रमुख तौर पर हवाला दिया गया, जो भारत में खपाए जा रहे हैं। चीन इस वक्त दुनिया में फोटोवोल्टेइक पैनलों का सबसे बड़ा निर्माता है। रिपोर्ट में कहा गया कि चीनी सौर पैनलों की भारत में डंपिंग से हमारे यहां करीब दो लाख रोजगारों पर असर पड़ा है। गौरतलब है कि चीन द्वारा भारतीय विनिर्माताओं की कीमत पर यहां डंपिंग शुरू करने से पहले भारत वर्ष 2006 से 2011 के मध्य सौर ऊर्जा उत्पादों के बड़े निर्यातकों में से एक था। रिपोर्ट में कहा गया कि फिलहाल भारत से निर्यात लगभग ठिठक गया है और सरकार को डंपिंग रोकने की खातिर ठोस कदम उठाने चाहिए।
संसदीय समिति ने चीन के मुकाबले भारत में महंगी पूंजी को कारोबारी असंतुलन के एक प्रमुख कारक के रूप में चिह्नित किया और इस स्थिति में सुधार हेतु उत्पाद केंद्रित रणनीतियां बनाने का सुझाव दिया है। इसके साथ-साथ यह भी रेखांकित किया गया कि इसमें डंपिंग रोधी एवं संबद्ध शुल्क महानिदेशालय और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड एवं सीमा शुल्क बोर्ड के जोखिम प्रबंधन विभाग सहित संबंधित संस्थानों की जवाबदेही तय की जाए। समिति का यह भी कहना है कि चीनी निर्माता उन देशों के बाजारों के रास्ते भी अपना माल यहां भेज रहे हैं, जिनके साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता है। इसके अलावा चीन से अनुचित आयात चीनी माल का कम बिल दिखाकर, गलत घोषणा या फिर सीधे-सीधे तस्करी के जरिए भी हो रहा है। इन अवैध गतिविधियों का भारत के घरेलू उद्योग पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
सरकारी छूट से प्रोत्साहित होती हैं कंपनियां
भारतीय आयात में चीन की हिस्सेदारी वर्ष 2013-14 में 11.6 फीसदी थी, जो 2016-17 में बढ़ते हुए 16.6 फीसदी तक पहुंच गई। ऐसे में सवाल उठता है कि चीन आखिर अपने निर्यातों को भारतीय आयातकों के लिए इतना आकर्षक कैसे बना लेता है? इसका जवाब इस तथ्य में निहित है कि चीन अपनी एक्सपोर्ट कंपनियों को 17 फीसदी की प्रभावी छूट देता है। संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक इससे चीनी माल भारतीय माल की तुलना में 5 से 6 फीसदी सस्ता हो जाता है और भारतीय आयातकों के लिए लुभावना बन जाता है। इसके अलावा हम यह भी देखें कि महंगी बिजली, ऋण और लॉजिस्टिक्स के कारण वैश्विक बाजार में भारतीय वस्तुएं करीब 9 फीसदी महंगी हैं। चीन के उद्योगों को 6 फीसदी ब्याज दर पर कर्ज मिलता है, जबकि भारत में यह दर 11 से 14 फीसदी तक है। चीन में उद्यमों की लॉजिस्टिक्स लागत 1 फीसदी है, जबकि भारत में यह 3 फीसदी है।
- माया राठी