क्षेत्रीय पार्टियों का दबाव
04-Sep-2018 09:14 AM 1234788
कौन विश्वास करेगा की कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस इस समय क्षेत्रीय पार्टियों के दबाव में है। लेकिन यह हकीकत है कि क्षेत्रीय पार्टियां गठबंधन को लेकर कांग्रेस को आंख दिखा रही हैं। चाहें बसपा हो या सपा या कोई और पार्टी सभी अपने हिसाब से कांग्रेस से गठबंधन करना चाहती हैं। इसका प्रभाव यह हो रहा है कि मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होने वाले चुनाव में कांग्रेस का गणित गड़बड़ा रहा है। मप्र के समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष गौरी यादव ने मीडिया से बातचीत में यह कहा कि अगर कांग्रेस प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करती है, तो अगले विधानसभा चुनाव में एसपी सभी विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। मध्यप्रदेश में एसपी का कोई खास जनाधार नहीं है। ऐसे में उसके प्रदेश अध्यक्ष की तरफ से इस तरह का बयान देने का क्या मतलब है? आखिर क्या कारण है कि समाजवादी पार्टी मध्यप्रदेश जैसे राज्य में कांग्रेस से सौदा करने की कोशिश कर रही है। इस बयान के कई मायने हैं। अभी विधानसभा चुनाव के बाद असल तैयारी लोकसभा चुनाव की चल रही है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल अभी से ही अपनी रणनीति को अंजाम देने में लगे हैं। एसपी का भले ही मध्यप्रदेश में कोई बड़ा जनाधार नहीं है। वहां लड़ाई बीजेपी बनाम कांग्रेस ही रही है। फिर भी कांग्रेस से सीटों को लेकर तालमेल करने की बात करना और कांग्रेस को अकेले चुनाव लडऩे की धमकी देना उस सियासी चाल को दिखाता है, जिसको वो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के वक्त यूपी में करना चाहती है। क्योंकि आज की तारीख में कांग्रेस का यूपी में जनाधार बेहद कमजोर है। बीजेपी सत्ता में है। लेकिन, पांच साल सरकार चलाने के बाद अब समाजवादी पार्टी विपक्ष में है। बीएसपी भी महज 19 सीटों पर विधानसभा में सिमट चुकी है, फिर भी मायावती के प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता। मायावती का प्रभाव हर हाल में कांग्रेस से ज्यादा है। ऐसे में यूपी के भीतर कांग्रेस इस वक्त बिना किसी प्रतिस्पद्र्धा के चौथे स्थान पर साफ-साफ दिख रही है। जब भी यूपी में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन बनाने की बात हो रही है, तो एसपी-बीएसपी-आरएलडी के साथ कांग्रेस का भी नाम आता है। ऐसे में सीट शेयरिंग के फॉर्मूले के वक्त कांग्रेस को उसकी ताकत के मुताबिक ही सीट देने की बात होगी। यही वजह है कि पहले से ही कांग्रेस के ऊपर एसपी-बीएसपी जैसे दल की तरफ से दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है। यूपी में महागठबंधन बनाने को लेकर एसपी की तरफ से बीएसपी और आरएलडी को साथ लाने को लेकर तो सहमति दिखती है लेकिन, कांग्रेस को साथ लेने में एसपी की तरफ से कोई खास दिलचस्पी भी नहीं दिखती है। यह वही एसपी है जिसके मुखिया अखिलेश यादव पिछले साल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे थे। उस वक्त राहुल-अखिलेश की जोड़ी की तरफ से मोदी-शाह की जोड़ी को चुनौती दी गई थी। लेकिन, उस वक्त यूपी के लड़कों (अखिलेश-राहुल) की जोड़ी का जादू फीका पड़ गया था। विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस से हाथ मिलाने की अखिलेश की कोशिश को राजनीतिक भूल माना गया था। क्योंकि जिन सीटों पर कांग्रेस चुनाव मैदान में थी, वहां किसी तरह का कोई मुकाबला जमीन पर दिख भी नहीं रहा था। कांग्रेस का कम जनाधार और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जमीन पर उतना ताकतवर और सक्रिय न होना भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सफाए का कारण बना। सही मायने में एसपी को कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का कोई फायदा नहीं मिल पाया। अब एसपी इस बात को समझ रही है, जिसके कारण यूपी में कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव के वक्त गठबंधन करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। अगर गठबंधन में कांग्रेस शामिल होती भी है तो उसे बेहद कम सीटों पर ही मानना होगा। मध्यप्रदेश में कुछ यही हाल एसपी का है। लिहाजा, एसपी को मालूम है कि कांग्रेस उसे ज्यादा भाव नहीं देने वाली। कांग्रेस मध्यप्रदेश में अगर एसपी को सीट नहीं देती है, तो फिर उसी का हवाला देकर यूपी में भी एसपी की तरफ से भी कांग्रेस को ऐसा ही जवाब दिया जाएगा। एसपी की तरफ से पहले से ही इस तरह दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है। कुछ ऐसा ही हाल बीएसपी का भी है। बीएसपी की तरफ से मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तीनों प्रदेशों में कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन की शर्त रखी गई है। बीएसपी ने कांग्रेस को साफ कर दिया है कि अगर उसके साथ गठबंधन होगा तो तीनों ही राज्यों में वरना नहीं होगा। दरअसल, कांग्रेस मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ में बीएसपी के साथ गठबंधन तो चाहती है, लेकिन, राजस्थान में नहीं। क्योंकि उसे लगता है कि राजस्थान में वो अपने दम पर बीजेपी को चुनौती दे सकती है। दूसरी तरफ, मध्यप्रदेश में बीएसपी का जनाधार है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 6 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे, जबकि उसके चार विधायक भी चुनाव जीतकर पहुंचे थे। ऐसे में कांग्रेस दलित वोटों को साध कर बीजेपी विरोधी वोटों के बंटवारे रोकने के लिए बीएसपी के साथ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही गठबंधन करना चाहती है। बीएसपी की तरफ से भी दबाव बनाने की कोशिश हो रही है। एसपी के मध्यप्रदेश अध्यक्ष ने यह बयान देकर कांग्रेस पर दबाव और बढ़ा दिया है कि उसकी बात बीएसपी से भी चल रही है। दरअसल, पहले भी ऐसा होता रहा है जब कई राज्यों में साथ-साथ चुनाव लडऩे के बावजूद कुछ राज्यों में एक-दूसरे के विरोध में भी पार्टियां चुनाव लड़ती रही है। मसलन, बीजेपी के साथ जेडीयू का बिहार में गठबंधन काफी लंबे वक्त से है। (बीच में 2013 से 2017 तक जेडीयू अलग हो गई थी), फिर भी, जेडीयू का केवल बिहार में ही बीजेपी के साथ गठबंधन रहता है, लेकिन, जेडीयू बिहार से बाहर कर्नाटक, गुजरात जैसे राज्यों में अकेले चुनाव लड़ती रही है। इसके अलावा बीजेपी की पुरानी सहयोगी शिवसेना पहले भी जब बीजेपी के साथ रिश्ते बेहतर थे। महाराष्ट्र में गठबंधन होने और साथ चुनाव लडऩे के बावजूद कई दूसरे प्रदेशों में अकेले चुनाव लड़ती थी। इससे न ही गठबंधन पर असर पड़ता था और न ही बीजेपी को कोई नुकसान ही होता था, क्योंकि सहयोगी दलों का जनाधार दूसरे प्रदेशों में बेहद कमजोर था और बीजेपी मजबूत हालत में थी। लेकिन, कांग्रेस के लिए इस वक्त हालात वैसे नहीं हैं। कांग्रेस केंद्र में भी कमजोर हालत में है और कई राज्यों में भी उसकी हालत वैसी नहीं है। लिहाजा, उससे उसके सहयोगी और संभावित सहयोगी अपने हिसाब से बारगेनिंग करने में लगे हैं। एसपी की तरफ से दिया गया बयान उसी बारगेनिंग की रणनीति को दिखा रहा है, जिसके दम पर लोकसभा चुनाव के वक्त यूपी में एसपी की तरफ से कांग्रेस पर दबाव बनाया जाएगा। महागठबंधन पर संशय बरकरार यूपी में कांग्रेस का महागठबंधन में शामिल होने को लेकर संशय बरकरार है। सपा-बसपा ने भी कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर स्थिति साफ नहीं की है। ऐसे में कांग्रेस ने सभी सीटों पर मिशन 2019 की तैयारी शुरू कर दी है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, दिल्ली मुख्यालय की ओर से यूपी के हर जिले से चार-चार नाम मांगे गए हैं जो चुनाव लडऩे के इच्छुक हैं। इनका बायोडाटा भी मांगा गया है। इनमें 25 सीटों पर कांग्रेस का ज्यादा फोकस है। गठबंधन की प्रतीक्षा किए बगैर पार्टी ने इन सीटों पर चुनाव लडऩे वाले नेताओं को तैयारी करने के लिए कह दिया है। यह लोकसभा सीट वे हैं जिन पर पार्टी को नतीजे मिलने की पूरी उम्मीद है। पिछले दिनों अखिलेश यादव ने सपा व बसपा ने गठबंधन की बात कबूली थी लेकिन कांग्रेस को इसमें शामिल करने पर अभी तक चुप्पी साधी है। मायावती भी इस पर कुछ नहीं बोलती हैं। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस बीजेपी को हराने के लिए सपा-बसपा-आरएलडी के महागठबंधन में शामिल होना चाहती है लेकिन पेंच सीटों पर फंस रहा है। पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि अब दो विकल्प बचे थे या तो किसी तरह बीच का रास्ता निकालकर कांग्रेस सपा-बसपा गठबंधन में शामिल हो जाए या फिर उन सभी सीटों पर पार्टी अपने कैंडिडेट उतारे जिन पर वे मजबूती से बीजेपी को चुनौती दे सकती है। मोतीलाल वोरा की नियुक्ति से कमलनाथ क्यों परेशान कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी है लेकिन कांग्रेस मुख्यालय में जो हालिया बदलाव किये गए हैं उनमें सोनिया गांधी के वफादारों को ही जगह मिली है। मोतीलाल वोरा सोनिया गांधी के किचन कैबिनेट के मेंबर हैं। उन्हें एआईसीसी का प्रशासनिक महासचिव नियुक्त किया गया है। मोतीलाल वोरा एक ऐसे राजनेता रहे हैं जिनकी कभी किसी नेता के साथ राजनीतिक प्रतियोगिता नहीं रही, लेकिन 90 की उम्र में भी कांग्रेस पार्टी में इतने अहम पद की जिम्मेदारी मिलने से कइयों के कलेजे पर सांप लोटना लाजिमी है। खासकर कमलनाथ को। बताया जाता है कि वोरा को मिलते महत्व से कमलनाथ आहत हैं। पिछले दिनों दो मौके ऐसे आए, जब कमलनाथ ने अपनी छटपटाहट जाहिर की। एक बार तब जब राहुल गांधी ने एआईसीसी के गठन में कमलनाथ को जगह नहीं दी और दूसरी तब जब नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उनको पार्टी ने दूर रखा। द्य दिल्ली से रेणु आगाल
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