04-Sep-2018 08:37 AM
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इस साल प्रदेश में जब अनाजों की खरीदी हो रही थी उसी समय सुनियोजित तरीके से इस घपले को अंजाम दिया गया है। जानकारी के अनुसार मप्र की मंडियों में किसानों से खरीदा गया करीब 90 हजार मीट्रक टन अनाज कहां गायब हो गया यह किसी को पता नहीं है। 18 जिलों में गड़बड़ी का मामला उजागर होने के बाद भोपाल से लेकर प्रदेशभर में हड़कंप मचा हुआ है। उधर, सरकार ने सभी जिलों में खरीदी और गोदामों में रखे सभी अनाजों का मिलान कर रिपोर्ट देने को कहा है। अधिकारियों की मिलीभगत से इस घपले को अंजाम दिया गया है। सूत्र बताते हैं कि प्रारंभिक जांच में पन्ना, रायसेन, राजगढ़, रतलाम, रीवा, सागर, सतना, सीहोर, सिवनी, शहडोल, शाजापुर, शिवपुरी, सीधी, सिंगरौली, टीकमगढ़, उज्जैन, उमरिया और विदिशा जिले में यह गड़बड़ी सामने आई है।
जानकारी के अनुसार, इस साल समर्थन मूल्य पर चना, मसूर और सरसों की खरीदी की गई 90 हजार मीट्रक टन फसल का हिसाब नहीं मिल रहा है। स्थिति यह है कि समितियों में यह फसल खरीदी तो गई लेकिन गोदाम नहीं पहुंची। सूत्र बताते हैं कि इस गड़बड़झाले में बड़े अधिकारियों के भी हाथ है। उनके संरक्षण में ही या तो कागजों पर खरीदी की गई है या फिर मंडियों से ही अनाज गायब कर दिया गया है।
चना, मसूर और सरसों की खरीदी में किए गए घपले का खुलासा वेयर हाउस रिसीव (डब्ल्यूएचआर) से हुआ है। इसमें पाया गया कि जो कुल खरीदी हुई है उसमें से 90 हजार टन फसल की वेयर हाउस रिसीव नहीं है। गौरतलब है कि खरीदी केन्द्रों द्वारा जितनी भी फसल खरीदी जाती है उस फसल को वेयर हाउस में जमा करवाया जाता है। वेयर हाउस में जितनी फसल जमा होती है उसकी रिसीव जारी की जाती है, जिसे डब्ल्यूएचआर कहा जाता है। शासन द्वारा इसी को असली खरीदी माना जाता है। कई बार वेयर हाउस में घटिया क्वालिटी का खाद्यान्न पहुंचने पर उसे स्वीकार नहीं किया जाता है तो उसकी डब्ल्यूएचआर जारी नहीं होती। तो कई बार समिति कागजों में खरीदी कर लेती है लेकिन भौतिक रूप से खरीदी नहीं होने पर वह गोदाम नहीं पहुंचती जिससे इसका भी डब्ल्यूएचआर जारी नहीं होता है।
घपला सामने आने के बाद फसलों के भुगतान का काम रूक गया है। इससे किसान परेशान हो रहे हैं। सवाल यह उठ रहा है कि अब जब परिवहन कार्य पूरा हो चुका है ऐसे में यह फसल गई कहां। ऐसे में किसान भी हंगामा कर रहे हैं। रबी विपणन वर्ष 2018-19 में समर्थन मूल्य पर की गई चना, मसूर एवं सरसों की खरीदी और उसके गोदामों में भंडारीकरण का कार्य पूरा हो चुका है। लेकिन मामले में जब डब्ल्यूएचआर से जांच की गई तो पाया गया कि खरीदी गई मात्रा और गोदाम में भंडारित मात्रा में काफी अंतर है।
मामला सामने आने के बाद खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के संचालक ने अब कलेक्टरों से इस मामले में रिपोर्ट तलब की है। कलेक्टर विभाग को जानकारी देंगे की उनके जिले में खाद्यान्न का डब्ल्यूएचआर कितना जारी किया गया है। इस रिपोर्ट के बाद ही भुगतान होगा। सूत्र बताते हैं कि अनाज खरीदी में लगातार घपले आने से सरकार भी सख्त हो गई है। सरकार विभिन्न एजेंसियों से प्रदेश के गोदामों में रखे अनाजों की भी जांच कराएगी। जिसमें अनाजों का वजन, उनकी गुणवत्ता और मिलावट की जांच होगी।
विधायक ने अनाज खरीदी में भ्रष्टाचार के लगाए आरोप
हरदा और होशंगाबाद जिले में वर्ष 2018 में हुई गेहूं, चना और मूंग खरीदी में सहकारी समितियों के कर्मचारियों पर केंद्रीय जिला सहकारी बैंक होशंगाबाद के प्रभारी अध्यक्ष और सीईओ ने दबाव बनाकर करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया। यह आरोप विधायक आरके दोगने ने प्रमुख सचिव सहकारिता व पंजीयक को भेजे पत्र में लगाया। उन्होंने पूरे मामले की सीएजी से जांच कराने की मांग की। दोगने ने आरोप लगाया कि वर्ष 2018 में गेहूं, चना व मूंग खरीदी में समिति कर्मचारियों पर दबाव बनाकर प्रासंगिक खर्च की सीमा से 5-7 रुपए प्रति क्विंटल ज्यादा खर्च निकालकर गोलमाल किया। उन्होंने कहा कि सिराली, टिमरनी, खरकिया शाखा की जांच कराकर उनके आरोपों की पुष्टि कराई जा सकती है। इधर इस मामले में अध्यक्ष भरत सिंह राजपूत ने बताया कि खरीदी और परिवहन का काम सहकारी समितियां करती हैं। बैंक से सीधा कोई लेन-देन नहीं है। कहां से भ्रष्टाचार हो गया समझ से परे हैं। दोगने किसी को कुछ भी पत्र लिखें इससे क्या फर्क पड़ता है। दोगने कहते हैं कि वर्तमान बैंक संचालक जीएस चौरसिया ने भी शिकायत की। जिसे प्रथम दृष्टया सही मानते हुए उपायुक्त होशंगाबाद ने बालाजी ट्रेडर्स का भुगतान रोका। इसमें मनमाने ढंग से मुख्यालय स्तर पर समितियों को खरीदी में उपयोगी सामग्री सप्लाई कर भुगतान किया। जबकि समितियों पर दबाव बनाकर जबरिया घटिया स्तर की सामग्री सप्लाई की। बालाजी ट्रेडर्स ने खरीदी केंद्रों को रैग्जीन के बजाय कपड़े के टैग दिए।
- श्याम सिंह सिकरवार