खाद्य सुरक्षा की सियासत
17-Jul-2013 09:01 AM 1234779

केंद्र सरकार द्वारा गरीबों को जो सब्सिडी प्रदान की जा रही है। उसका नगदीकरण करते हुए यदि देश के 70 करोड़ गरीबों में बांटे तो प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष न्यूनतम 15 हजार रुपए उनके हाथ में आना तय है और यदि इसमें वर्तमान में खाद्य सुरक्षा के लिए आवंटित एक लाख 25 हजार रुपए की राशि का समायोजन कर दिया जाए तो अगले 5 हजार के करीब बल्कि उससे भी अधिक रुपए प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति सब्सिडी में शामिल होते हैं। देखा जाए तो गरीबों को दी जाने वाली सब्सिडी सीधे उनके बैंक खातों में पहुंचे तो शायद छह सदस्यों के एक परिवार को न्यूनतम प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ लाख रुपए की राशि तो मिल ही सकती है। जो इतनी पर्याप्त है कि भारत से गरीबी सदा के लिए दूर हो जाए। सारी योजनाओं में जो सब्सिडी दी जा रही है उसे प्रति व्यक्ति नगद प्रदान करने से शायद देश में गरीबी उन्मूलन की दिशा में प्रभावी सुधार हो सकता है, लेकिन यह व्यावहारिक नहीं है। क्योंकि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में आंकड़ों की गणना कुछ इस तरह होती है और हितग्राहियों का सर्वेक्षण तथा पहचान का तरीका इतना घटिया है कि नगद सब्सिडी जैसी योजनाएं भी कहीं न कहीं ध्वस्त होने का खतरा बना रहता है। यही कारण है कि खाद्य सुरक्षा विधेयक अब राजनीति में उलझता जा रहा है। सरकार इसे मौजूदा सत्र में पारित कराना चाहती है। इस जल्दबाजी का कारण यह है कि सामने ही पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं और उसके लगभग 4-5 माह बाद केंद्र में भी चुनाव होने वाले हैं। इसीलिए सरकार की मंशा साफ समझ में आ रही है।
महंगाई और भ्रष्टाचार के दलदल में डूबी सरकार को खाद्य सुरक्षा विधेयक चुनावी वैतरणी से पार लगाने वाला दिखाई दे रहा है, लेकिन सवाल वही है कि 10 माह के भीतर सरकार इसे लागू कैसे करा पाएंगी। क्योंकि आम जनता को जब तक इसका लाभ सीधे नहीं पहुंचेगा वह केवल तकनीकी भाषा के छलावे में आने वाली है नहीं। जब खाद्य सुरक्षा से वह प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होगी तभी सरकार को फायदा मिल सकता है। लेकिन इसमें अभी देरी है। खाद्य सुरक्षा विधेयक निश्चित रूप से गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक प्रभावी कदम साबित हो सकता है। पर सवाल वही है कि इस विधेयक को लागू किस रूप में किया जाएगा। हितग्राही कौन होंगे और उनकी पात्रता तय करने का क्या पैमाना होगा। क्या इस विधेयक के फलस्वरूप महंगाई बढ़ेगी? यदि हां तो उसका भार किस पर पड़ेगा। खाद्य सुरक्षा विधेयक के बाद महंगाई कम होने की बात भी सरकार कह रही हैं, लेकिन यदि खाद्य सुरक्षा विधेयक के लिए राशि जुटाने हेतु सरकार ने मध्यम वर्ग पर करों का बोझ लादा तो वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति पैदा होने वाली है। भारत के मध्यम वर्ग की विडम्बना यह है कि वह किसी भी प्रकार की सब्सिडी की फायदा नहीं उठा पाता बल्कि महंगाई की मार सबसे पहले उस पर ही पड़ती है क्योंकि वह बेहतर जीवन की जद्दोजहद में डूबा रहता है। बहरहाल खाद्य सुरक्षा बिल पर राजनीति अब तेज हो गई है। देश के 80 करोड़ लोगों को रियायती दर पर खाद्यान्न मुहैया कराने वाले केंद्र सरकार के इस अध्यादेश पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने हस्ताक्षर कर दिए हैं विपक्ष ने इस विषय पर अध्यादेश लाने के केंद्र सरकार के फैसले को राजनीतिक कदम बताया। विपक्ष का कहना है कि सरकार अपने कार्यकाल के शुरुआती चार सालों तक सोती रही और चुनाव से पहले आनन-फानन में अध्यादेश लागू किया। कांग्रेस नेता अजय माकन कहते हैं कि विधेयक को लागू करने के लिए एक वर्ष का समय है जो पर्याप्त है। उधर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने आशंका व्यक्त की है कि इस विधेयक से किसानों को नुकसान होगा। मुलायम की आपत्ति के बाद अब यह सवाल पैदा हो गया है कि छह माह के भीतर इस अध्यादेश पर समर्थन कैसे जुटाया जाए।
सरकार ने पहले इस योजना के लिए पांच लाख 55 हजार करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया था, लेकिन अब वह कह रही है कि इसके लागू होने से सरकारी खजाने पर केवल 23 हजार 800 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा जो पूरी योजना के लिए निर्धारित बजट की तुलना में काफी कम है। सवाल यह है कि अचानक बजट कम क्यों हो गया। किस तरह से इस योजना में प्रावधान किया गया है। पीजी थॉमस कहते हैं कि सरकार पहले ही करीब 6.02 करोड़ टन खाद्यान्न खरीद चुकी है। बाकी थोड़ा बहुत खाद्यान्न और जुटाना है, लेकिन भाजपा के रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि अध्यादेश लाने की जल्दबाजी क्या थी। उधर माकपा की नेता वृंद्धा करात ने भी कहा है कि सरकार कुपोषण की समस्या से निपटने में अक्षम रही। अब यह अध्यादेश लागू कर रही है। आखिर सरकार चाल साल क्या कर रही थी। लेकिन विपक्ष के इन आरोपों ने सरकार को बिल्कुल विचलित नहीं किया क्योंकि यह अच्छी तरह ज्ञात है कि इस विधेयक का विरोध करना राजनीतिक दलों को महंगा भी पड़ सकता है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी यह जोखिम उठाने को तैयार है। पार्टी की हाल ही में हुई बैठक में तय किया गया है कि पार्टी इस विधेयक रचनात्मक का विरोध करेगी।
कुमार सुबोध

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