बिना टाइगर सूना नेशनल पार्क
04-Sep-2018 08:40 AM 1234918
शिवपुरी में स्थित माधव नेशनल पार्क देश का एक मात्र ऐसा पार्क है, जो बारह महीने सैलानियों के लिए खुला रहता है, बावजूद इसके यहां पर्यटक नहीं आ रहे। बिना टाइगर वाले पार्क में पिछले एक साल में महज 19 हजार सैलानियों ने ही भ्रमण किया, जबकि दूसरे नेशनल पार्कों में एक माह में ही 30 से 35 हजार सैलानी आते हैं। बफर जोन बनाए जाने के लिए पार्क के अंदर बसे सात गांव को खाली कराए जाने के लिए शासन ने करोड़ों रुपए का मुआवजा बांट दिया, लेकिन न तो बफर जोन बनाया गया और न ही टाइगर आया। हालांकि पार्क प्रबंधन द्वारा टाइगर सफारी का प्रस्ताव पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ को भेजा गया है, लेकिन अभी तक वहां से हरी झंडी नहीं मिली। यदि शिवपुरी में टाइगर सफारी शुरू हो जाए तो सैलानियों की संख्या में तो वृद्धि होगी ही, साथ ही शिवपुरी की अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा। 156 किलोमीटर क्षेत्र विस्तार वाले माधव नेशनल पार्क में तेंदुआ, भालू से लेकर सभी वन्य जीव मौजूद हैं, लेकिन टाइगर न होने से यहां एक बार आने वाला सैलानी दूसरी बार नहीं आता। बाहर से आने वाले सैलानी, विशेषकर विदेशी पर्यटकों को खुले में घूमता टाइगर देखना बेहद पसंद है। शिवपुरी नेशनल पार्क में जबसे टाइगर सफारी खत्म हुए, तब से सैलानियों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है और अब तो विदेशी सैलानी यदा-कदा ही शिवपुरी में नजर आते हैं। यदि सैलानी आते भी हैं तो वे पार्क को छोड़कर दूसरे पर्यटन स्थल देखकर चले जाते हैं। सैलानियों की घटती संख्या को देखते हुए ही शिवपुरी को टूरिज्म सर्किट से भी बाहर कर दिया गया। यदि शिवपुरी में टाइगर सफारी फिर से शुरू कर दी जाए तो न केवल टूरिज्म बढ़ेगा, बल्कि शहर के लोगों को रोजगार भी मिल सकेगा। कभी शिवपुरी में इतना बियावान जंगल हुआ करता था कि यहां टाइगरों की भरमार थी। सिंधिया स्टेट के समय में विदेशी लोग शिवपुरी में टाइगर का शिकार करने आया करते थे। इस बात के प्रमाण नेशनल पार्क में बनाए गए वो शूटिंग बॉक्स हैं, जहां पर बैठकर शिकारी टाइगर के आने का इंतजार करते थे। जब टाइगर पानी पीने के लिए चांदपाठा झील या उसके आसपास आता था तो उसका शिकार करते थे। इतना ही नहीं भूरा-खो के पास हाइवे किनारे एक पत्थर भी लगा हुआ है, जिस पर जॉर्ज पंचम (स्वतंत्रता से पूर्व इंग्लैंड का राजा) द्वारा किए गए टाइगर के शिकार की दास्तां लिखी हुई है। उस समय में यह प्रचलन था कि जब भी कहीं कोई टाइगर का शिकार करता था, तो वो उस जगह पर पत्थर लगवाकर मारे गए टाइगर की लंबाई व मारने वाले शिकारी का नाम लिखवाते थे। स्व. माधवराव सिंधिया के प्रयासों से माधव राष्ट्रीय उद्यान में शेरों को संरक्षित करने व पर्यटकों को शेरों को नजदीक से दिखाने के उद्देश्य से सन् 1989 में टाइगर सफारी शुरू किया गया था। भोपाल के वन बिहार से एक जोड़ा टाइगर मंगवाया गया, जिसमें नर का नाम पेटू व मादा का नाम तारा था। इस जोड़े से टाइगर सफारी में एक समय में एक दर्जन टाइगर हो गए थे। इसके अलावा तीन तेंदुओं को भी सफारी में अलग-अलग पिंजरों में रखा गया था। तत्समय में पार्क के अंदर व सफारी के बाहर एक टाइगर व 22 तेंदुओं को देखा गया था। लेकिन कानूनी पेंचों के चलते टाइगर सफारी बंद हो गई और माधव नेशनल पार्क एक बार फिर सैलानियों के न आने से सूना हो गया। माधव नेशनल पार्क के आसपास 122 गांव बसे हुए हैं। सात गांव जो पार्क के अंदर थे, उनमें रहने वाले ग्रामीणों को करोड़ों रुपए का मुआवजा बांटने के साथ ही दूसरी जगह जमीन भी दी गई, ताकि वे पार्क छोड़ दें। अधिकांश ग्रामीण तो चले गए, लेकिन कुछ अभी भी मुआवजा कम दिए जाने की बात कहकर डटे हुए हैं। ऐसे में यह भी एक सवाल है कि इतने अधिक गांव के दवाब वाले नेशनल पार्क में यदि टाइगर को बसाया गया तो शिकारी आसानी से उसे टारगेट कर लेंगे। क्योंकि जब पार्क के नजदीक ही लोग बसे रहेंगे, तो उनमें छुपकर शिकारी को अपना काम करने में अधिक परेशानी नहीं आएगी। माधव नेशनल पार्क के असि. डायरेक्टर वीएस यादव कहते हैं कि माधव नेशनल पार्क में एक साल में महज 19 हजार सैलानी ही आए, जबकि पेंच या अन्य पार्कों में इससे दुगने सैलानी एक माह में ही आ जाते हैं। टाइगर सफारी का प्रस्ताव पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ को तो भेजा ही है, साथ ही केबीनेट मंत्री को भी एक पत्र दिया है। सफारी शुरू हो जाए तो सैलानियों की संख्या जरूर बढ़ेगी। चारागाह बना माधव नेशनल पार्क कभी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाला माधव नेशनल पार्क अब महज चारागाह बनकर रह गया। पार्क की सुरक्षा में एक बड़ा बजट खर्च होने के बावजूद वन्यजीवों के संरक्षण के प्रति पार्क प्रबंधन लापरवाह बना हुआ है। माधव नेशनल पार्क घूमने जाने वाले सैलानियों को जितने वन्यजीव नहीं दिखते, उससे अधिक पालतू मवेशी (गाय-बैल) चरते मिलते हैं। माधव नेशनल पार्क में पालतू मवेशी तो चर ही रहे हैं, साथ ही झांसी तिराहा हवाई पट्टी के पास एवं कठमई-करौंदी क्षेत्र में टूटी बाउंड्री में से हर शाम को लकड़ी के ग_र लेकर महिला-पुरुष निकलते हैं। यह लकड़ी पार्क एरिया में से दिन में काटने के बाद शाम को ये लोग हर दिन निकलते हैं। माधव राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1958 में मध्यप्रदेश के राज्य बनने के साथ ही की गई थी। यह मूलत: ग्वालियर महाराजा के लिए शाही शिकार का अभयारण्य था। -विकास दुबे
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