राजनीति की डगर
04-Sep-2018 08:16 AM 1234806
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कलेक्टर ओमप्रकाश चौधरी ने पहले नौकरी से इस्तीफा दिया और फिर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह की मौजूदगी में कमल थाम लिया। महज 22 वर्ष की आयु में आइएएस बनने वाले इस होनहार अफसर ने मात्र 35 साल की उम्र में अपना त्याग पत्र देकर अच्छे-अच्छों को अचंभे में डाल दिया। माना जा रहा है चौधरी भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ सकते हैं। वह छत्तीसगढ़ में आने वाले विधानसभा चुनावों में रायगढ़ जिले की खरसिया सीट से किस्मत आजमा सकते हैं। ओम प्रकाश चौधरी छत्तीसगढ़ के मुख्यमत्री रमन सिंह के चहेते अफसरों में भी शामिल रहे हैं। बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस के गढ़ में सेंधमारी के लिए बड़ा दांव खेला है। चौधरी दरअसल अघरिया समुदाय से आते हैं जिसका छत्तीसगढ़ में अच्छा वर्चस्व है। माना जा रहा है कि पार्टी उन्हें खरसिया से टिकट दे सकती है, जहां से नंदकुमार पटेल के बेटे उमेश पटेल विधायक हैं। खरसिया सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। चौधरी स्थानीय होने के साथ युवा आइकॉन के रूप में भी यहां लोकप्रिय हैं। पिछले कुछ महीनों से ओपी चौधरी के नौकरी छोडऩे और बीजेपी में शामिल होने की चर्चा चल रही थी। आईएएस चौधरी वर्तमान में रायपुर के कलेक्टर थे। इसके पहले वे दंतेवाड़ा में कलेक्टर रह चुके हैं। पिछले चुनाव के समय वे जनसंपर्क विभाग में थे। इसके बाद से वे सीएम डॉ. रमन सिंह के करीबी और पसंदीदा अफसरों के रूप में गिने जाते रहे हैं। ओपी चौधरी अपने कामों की वजह से छत्तीसगढ़ में लोकप्रिय हैं। दंतेवाड़ा की एजुकेशन सिटी हो या रायपुर में गरीब बच्चों को स्कूलों में शिक्षा के अधिकार के तहत दाखिला दिलवाने की बात हो, उन्होंने इनका प्रतिनिधित्व किया। इस मामले में ओम चौधरी अकेले नहीं है। छत्तीसगढ़ में ही कई बड़े अधिकारी अपना शानदार कैरियर बीच में ही छोड़कर राजनीति के मैदान में कूद रहे हैं। कईयों को सफलता मिल जाती है तो कईयों को इंतजार करना पड़ता है। छत्तीसगढ़ के ही अजीत जोगी खुद इस मामले में एक बड़े उदाहरण के तौर पर देखे जा सकते हैं। जोगी ने कलेक्टर स्तर के अधिकारी से लेकर छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बनने तक का शानदार सफर तय किया है। भारत एक ऐसा देश है जहां नौकरशाही राजनीति की रीढ़ मानी जाती है लेकिन इस रीढ़ की हड्डी के पास अपना कोई शरीर नहीं है। वैसे जिस तरह से नौकरशाहों में राजनीतिक दलों में शामिल होने की भगदड़ है, उसे देखकर लगता है कि अगली बार जब विधानसभा का सत्र आयोजित होगा तो मंत्रालय और विधानसभा में फर्क करना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि कांग्रेस और भाजपा जिस तरह से नौकरशाहों को प्रत्याशी बना रही है, उससे सदन में उन्हीं की बहुलता दिखेगी। रिटायर्ड एडीजी रेवतीचरण पटेल समेत पुलिस के कई मंझोले अफसर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और आस लगाकर बैठे हैं कि पार्टी नेतृत्व की उन पर कृपा दृष्टि बरसेगी। चौधरी के अलावा प्रदेश के नौकरशाहों में एक बड़ा नाम रहा गणेश शंकर मिश्र का भी भाजपा में शामिल होने के लिए कतारबद्ध हैं। ये दोनों अफसर अगर राजनीति में सफलतापूर्वक मुकाम हासिल कर लेते हैं तो यकीन मानिए कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के छोटे और मंझोले नेताओं को अभी से राजनीति छोड़कर दूसरे काम-धंधे के बारे में सोचना शुरू कर देना चाहिए क्योंकि पहले लोकसभा चुनाव और उसके बाद स्थानीय निकायों के चुनाव में नौकरशाही से ही नेता निकलने वाले हैं। नौकरशाहों के लिए रेड कारपेट भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व जिस तरह नौकरशाहों के लिए रेड कारपेट बिछा रहा है, उससे पार्टी के आम कार्यकर्ता क्षुब्ध है। कार्यकर्ता ही हमारी ताकत है जैसी बातें उसे हंसा रही हैं। उसे समझ में आने लगा है कि उसका काम केवल जिंदाबाद-मुर्दाबाद करना है, भीड़ जुटाना है, प्रदर्शन करके खुद के खिलाफ अपराध पंजीबध्द करना है, झण्डे लगाने हैं, पॉम्पलेट्स बांटने हैं, मतदान केंद्र संभालना है और जब प्रत्याशी बनाने की बारी आए तो नौकरशाहों को बुलाकर सिर पर बिठाना है। पार्टी की सरकार बन गई तो चिरकुट टाइप के मंत्रियों की दुत्कार सहना है। कार्यकर्ता अब यही सब सोच रहे हैं। उन्हेें समझ में आने लगा है कि अपना समय और खून जलाने का कोई मतलब नहीं है। नौकरशाहों के साथ पार्टी अगर सरकारी कर्मचारियों को भी अपने साथ शामिल कर ले तो कार्यकर्ताओं का झंझट ही खत्म हो जाएगा और अभी तो कई आला अधिकारी भविष्य के नेता बनने वालों की लाइन में खड़े दिखने वाले हैं। -रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^