विशेष राज्य का जिन्न
04-Sep-2018 08:08 AM 1234827
जब भी बिहार की सरकार घेरे में आती है विशेष राज्य के दर्जें का जिन्न बाहर निकल जाता है। केंद्र सरकार कई दफा इस मांग को खारिज करती रही है। नीतीश कुमार ही नहीं, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और लोक जनशक्ति जैसी पार्टियां भी अपनी सहूलियत और सियासी मतलब के हिसाब से यह मांग उठाती रही हैं। बिहार कांग्रेस के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल कहते हैं कि उनकी पार्टी बिहार को स्पेशल स्टेटस दिलाने का समर्थन करती रही है। इसके लिए पार्टी मुहिम चलाने की तैयारी भी कर चुकी है। लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान कहते हैं कि बिहार पिछड़ा राज्य है और इसे विशेष राज्य का दर्जा मिलना ही चाहिए। गौरतलब है कि बिहार के अलावा झारखंड, ओडिशा और राजस्थान में भी विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठती रही है। केंद्र सरकार इस मसले को छेडऩे से परहेज करती रही है। बिहार को स्पेशल स्टेटस मिलने के बाद बाकी तीनों राज्य भी उस के पीछे हाथ धोकर पड़ सकते हैं। गौरतलब है कि बिहार विधानसभा ने 4 अप्रैल, 2006 को ही राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग का प्रस्ताव पास कर दिया था और इस बारे में मुख्यमंत्री ने 3 जून, 2006 को प्रधानमंत्री को जानकारी दी थी। 31 मई, 2010 को बिहार विधान परिषद ने भी इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी थी और 10 जून, 2010 को मुख्यमंत्री ने फिर प्रधानमंत्री को चि_ी के जरिए यह जानकारी दी थी। 23 मार्च, 2011 को राज्य के सभी सियासी दलों और सांसदों से इस मुहिम को समर्थन देने की अपील की गई थी और एक हस्ताक्षर मुहिम की शुरुआत की गई थी। जब 13 साल पहले बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने को लेकर बिहार में नए सियासी ड्रामे ने जोर पकड़ा था तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को इसके अलावा कुछ और नहीं सूझ रहा था। उस समय राज्य के बाकी दल इसे नीतीश कुमार की सियासी नौटंकी करार दे कर उनकी मांग की हवा निकालने पर तुले हुए थे। नीतीश कुमार ने साल 2005 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद ही बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठाई थी और इस मामले को लेकर यह हवा बनाई गई थी कि अगर केंद्र ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे दिया तो उसके सारे दुख दर्द दूर हो जाएंगे। बिहार की वाजिब तरक्की नहीं हो पाने का ठीकरा केंद्र के माथे फोड़ कर नीतीश कुमार खुद की जिम्मेदारियों से पल्ला झाडऩे की कोशिश करते रहे हैं। 5-6 साल पहले इस मसले पर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए जद (यू) ने राज्यभर में हस्ताक्षर मुहिम शुरू की थी और एक करोड़ बिहारियों के हस्ताक्षर जुटा कर केंद्र सरकार को सौंपे थे। नीतीश कुमार बार-बार यह रट लगा रहे हैं कि बिहार के सामाजिक और माली पिछड़ेपन को दूर करने के लिए राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिलना जरूरी है। आजादी के बाद से ही केंद्र सरकारों ने बिहार की अनदेखी की है। पढ़ाई-लिखाई और सेहत के लिए जरूरत से काफी कम पैसे मिले। रोजगार के लिए बड़ी तादाद में लोग राज्य से भाग रहे हैं। खनिज से भरा होने के बाद भी यहां उद्योग नहीं लग सके हैं। जिन उद्योगों को बिहार आना चाहिए था वे छिटक कर दक्षिण और पश्चिम के राज्यों में चले गए। साल 2000 में बिहार के बंटवारे ने तो राज्य को पूरी तरह से चौपट कर के रख दिया। खदान वाला हिस्सा झारखंड में चला गया। विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद राज्य में पूंजी निवेश बढ़ेगा, कारखाने लगेंगे, रोजगार के मौके बढ़ेंगे और लोगों का यहां से जाना भी रुकेगा। नीतीश केवल हवाबाजी कर रहे हैं विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करने वालों का कहना है कि बिहार को एक स्पेशल इकोनौमी पैकेज की जरूरत है और इसके लिए संविधान में दिए गए मापदंडों की समीक्षा की जानी चाहिए। पिछड़े राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देकर माली मदद और टैक्सों में छूट दी जाती है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा, मिजोरम, सिक्किम और मेघालय को पिछड़े राज्यों का दर्जा देकर केंद्र सरकार स्पेशल मदद दे रही है। राजद नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि नीतीश कुमार इस मामले पर केवल हवाबाजी करते रहे हैं। बिहार के साथ कभी इंसाफ हुआ ही नहीं है। सरकार के पास केंद्र सरकार से विशेष राज्य के दर्जे की भीख मांगने के अलावा और कोई काम नहीं रह गया है। सरकार यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि केंद्र की वजह से ही राज्य की तरक्की नहीं हो पा रही है, तो राजद सरकार पर वह किस मुंह से बिहार के पिछड़ेपन का आरोप मढ़ती रही है। - विनोद बक्सरी
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^