आदिवासियों के फंड पर अफसरों की कुंडली
04-Sep-2018 08:05 AM 1234930
मप्र में आदिवासियों के उत्थान के लिए डीएमएफ ने 1,610 करोड़ रूपए का संचय किया है। उसमें से चार साल पहले खनन प्रभावित क्षेत्रों में विकास के लिए 1,490.05 करोड़ रूपए मजूर किए गए लेकिन अभी तक मात्र 403.33 करोड़ रूपए ही खर्च किए जा सके हैं। गौरतलब है कि खनिज समृद्ध जिलों में निवासरत आदिवासियों के उत्थान के लिए केंद्र सरकार ने जिला खनिज फाउंडेशन यानी डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (डीएमएफ) की स्थापना की है। नियमानुसार, डीएमएफ फंड पेयजल, स्वास्थ्य देखभाल, पोषण, आजीविका के साधन इत्यादि पर कम से कम 60 प्रतिशत खर्च किया जाना चाहिए। लेकिन प्रदेशों की सरकार और स्थानीय प्रशासन की वजह से इस फाउंडेशन का लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिल पा रहा है। प्रदेश में आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल और पोषण की स्थिति सबसे खराब है। ऐसा तब है जब ये क्षेत्र उच्च खनन राजस्व पैदा करते हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) के अनुसार, प्रदेश के सिंगरौली में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर बहुत है। इस आयु वर्ग के बच्चों में स्टंटिंग (लंबाई न बढऩा) और कम वजन होना सामान्य है। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण इस समस्या के निदान के लिए डीएमएफ के फंड का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। गौरतलब है कि मार्च 2015 में भारत के केंद्रीय खनन कानून, द माइंस एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) या एमएमडीआर एक्ट (1957) में संशोधन कर डीएमएफ की स्थापना की गई। देश के सभी खनन जिलों में डीएमएफ एक गैर लाभकारी ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया गया है। इसका स्पष्ट उद्देश्य है-खनन संबंधित कार्यों से प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के हित और लाभ के लिए काम करना। डीएमएफ ट्रस्ट के लिए खननकर्ता (माइनर्स) पैसा देते हैं। यह राशि 2015 संशोधन से पहले दिए गए पट्टे के लिए रॉयल्टी राशि के 30 प्रतिशत के बराबर है और इसके बाद की लीज के लिए 10 प्रतिशत है। आज डीएमएफ कार्यान्वयन के चौथे वर्ष में प्रवेश कर चुका है, इसका संचयी राष्ट्रीय संग्रह अब तक 18,500 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। डीएमएफ का फंड न केवल बहुत है बल्कि नॉन लैप्सेबल भी है। डीएमएफ फंड के इस्तेमाल के लिए ग्राम सभा का सबसे अधिक महत्व है। इसलिए गांव पंचायत के सदस्य-सरपंच या ब्लॉक स्तर के पंचायत सदस्यों की इसमें भागीदारी जरूरी है। लेकिन ग्राम सभा की बैठक के लिए आवश्यक कोरम को पूरा नहीं किया जाता है। इसकी वजह है अफसरों और नेताओं का प्रभुत्व। लोगों का प्रतिनिधित्व तो न के बराबर ही है, ज्यादातर जिलों में खनन प्रभावित लोगों और क्षेत्रों की जरूरतों का आकलन कर डीएमएफ की योजना बनाने के लिए कार्यालय भी नहीं है। इसीलिए इसके अंतर्गत निवेश भी अनौपचारिक तरीके से हो रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, डीएमएफ का क्रियान्वयन आम सरकारी योजना की तरह किया जा रहा है, जहां शीर्ष स्तर पर बैठे उच्च अधिकारी निवेश को नियंत्रित कर रहे हैं। डीएमएफ प्रशासन को ऊपर से नीचे की तरफ नियंत्रित किया जा रहा है, जबकि नियंत्रण का स्तर नीचे से ऊपर की तरफ होना चाहिए था। मध्य प्रदेश ने राज्य खनिज निधि (स्टेट मिनरल फंड-एसएमएफ) की स्थापना की है। स्टेट मिनरल फंड में जिले अपने डीएमएफ संग्रह का एक निश्चित अनुपात में योगदान देंगे। फिर, राज्य सरकार का वित्त विभाग उन कार्यों को तय करेगा, जहां इस फंड का उपयोग किया जाना है। सिंगरौली जैसा कोयला खनन जिला, एसएमएफ में अपने डीएमएफ शेयर का 50 प्रतिशत का योगदान दे रहा है। लेकिन देश में इस जिले के आदिवासी सबसे अधिक बेहाल हैं। देशभर में 14,915 करोड़ का नहीं हुआ इस्तेमाल खनन प्रभावित क्षेत्रों और लोगों के लिए जिस मकसद से डीएमएफ गठित किया गया था, वह पूरा होता नहीं दिख रहा है। डीएमएफ ने देशभर में 18,467.45 करोड़ रूपए का संचय किया, जिसमें से राज्यों में विकास कार्य के लिए 10,699.33 करोड़ रूपए मंजूर किए गए, लेकिन पिछले चार साल में आदिवासियों के उत्थान के लिए मात्र 3,552.39 करोड़ रूपए ही खर्च किए जा सके हैं। - नवीन रघुवंशी
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