04-Sep-2018 08:01 AM
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डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। एक डॉलर 70.40 रुपए का हो गया है। रुपए की कीमत में यह तेज गिरावट आम आदमी से लेकर देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चिंता का कारण बन गई है। हालांकि नीति आयोग का कहना है कि रुपए के मूल्य में गिरावट के लिए वैश्विक आर्थिक घटक जिम्मेदार हैं और रुपया जल्द ही अपने सामान्य स्तर पर लौट आएगा। इससे देश में महंगाई बढऩे और विकास दर घटने की आशंका बढ़ गई है। रुपए में लगातार गिरावट से 2018-19 में देश का कच्चे तेल का आयात बिल 26 अरब डॉलर बढ़ कर 114 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। ऐसे में पेट्रोल-डीजल की कीमत बढऩे से अधिकांश वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं। आयातित सामान खासतौर से इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद और मोबाइल फोन के दाम भी बढ़ते हुए दिखाई दे सकते हैं।
डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत घटने के कुछ कारण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के कारण रुपए की कीमत लगातार घटती गई है। पिछले हफ्ते तुर्की के स्टील के खिलाफ अमेरिका द्वारा शुल्क बढ़ाए जाने से तुर्की की मुद्रा लीरा सहित दुनिया के उभरते हुए देशों की मुद्राओं की कीमत में भी डॉलर के मुकाबले एकदम से गिरावट आई है। कच्चे तेल के तेजी से बढ़ते हुए आयात बिल और विभिन्न वस्तुओं के तेजी से बढ़ते हुए आयात के कारण देश में डॉलर की मांग बढ़ गई है। निर्यात के धीमी गति से बढऩे और विदेशी निवेशकों द्वारा नए निवेश की कमी के कारण भी देश में डॉलर की आवक कम हो गई है। इन सभी कारणों से डॉलर के मुकाबले रुपया गिरता जा रहा है। चूंकि डॉलर में निवेश दुनिया में सबसे सुरक्षित निवेश माना जा रहा है इसलिए दुनिया के निवेशक बड़े पैमाने पर डॉलर खरीद रहे हैं। इससे भी डॉलर मजबूत बना हुआ है। देश के विदेशी मुद्रा कोष का स्तर भी घटकर करीब 400 अरब डॉलर का रह गया है। विदेशी मुद्रा कोष में कुछ कमी और रुपए की कीमत में तेज गिरावट के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था कम जोखिम वाली अर्थव्यवस्था बनी हुई है।
भारत के लिए अच्छा आधार यह है कि भारत की डॉलर पर ऋण निर्भरता कम है। इसलिए डॉलर की मजबूती का अन्य देशों की तुलना में भारत पर असर कम पड़ रहा है। साथ ही आर्थिक मामलों में भारत की जो रेटिंग सुधरी हुई है, उससे भी अर्थव्यवस्था की मुश्किलें औरों के मुकाबले कम हैं। इन दिनों वैश्विक व्यापार युद्ध से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पैदा हो रही चिंताओं से विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में निवेश करने के जोखिम से बच रहे हैं और वे अब अधिक सुरक्षित अमेरिकी डॉलर और बांड में अपना निवेश कर रहे हैं। ऐसे में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआइ) भारत सहित तेजी से उभरते बाजारों में अपना नया निवेश नहीं कर रहे हैं और मौजूदा निवेश को तेजी से निकाल रहे हैं। इसी का असर है कि विदेशी मुद्रा भंडार घटने की प्रवृत्ति दिख रही है।
निस्संदेह कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें भी रुपए के मूल्य में गिरावट का प्रमुख कारण हैं। चूंकि अमेरिका ने भारत, चीन सहित सभी देशों को ईरान से कच्चे तेल का आयात चार नवंबर तक बंद करने के लिए कहा है। इस तिथि के बाद भी वहां से तेल मंगाने वाले देशों के खिलाफ अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है। भारत में इराक और सऊदी अरब के बाद सबसे ज्यादा कच्चा तेल ईरान से मंगाया जाता है। ईरान भारत से भुगतान यूरोपीय बैंकों के माध्यम से यूरो में स्वीकार करता है। डॉलर की तुलना में यूरो में भुगतान भारत के लिए लाभप्रद है। इसके अलावा ईरान से कच्चे तेल का आयात परिवहन कारणों से भी
सस्ता पड़ता है। स्पष्ट है कि भारत के द्वारा ईरान से कच्चे तेल का आयात बंद किए जाने से कच्चे तेल की खरीदी से संबंधित नई चिंताएं सामने होंगी। निस्संदेह भारत के सामने कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमत संबंधी चिंता बनी हुई है। आने वाले समय में भारत के लिए
चुनौतियां बढ़ेंगी।
आने वाले समय में और होगी गिरावट
अर्थविशेषज्ञों का मत है कि निकट भविष्य में डॉलर की तुलना में रुपया 72 के स्तर को पार कर सकता है। रुपए की कीमत में और किसी बड़ी गिरावट के बचने के लिए हाल ही में प्रकाशित बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच की रिपोर्ट पर ध्यान देना होगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में तेजी से बढ़ रही विकास दर के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और रुपए की कीमत व विदेशी मुद्रा कोष का उपयुक्त स्तर बनाए रखने के लिए आरबीआइ को प्रवासी भारतीय बांड जारी करके 30 से 35 अरब डॉलर जुटाए जाने चाहिए। जिस तरह आरबीआइ बीते कुछ वर्षों में रुपए की गिरावट को थामने के लिए बाजार में हस्तक्षेप करता रहा है, अब वैसी ही सक्रियता आरबीआइ को फिर दिखानी होगी। निश्चित रूप से ऐसे प्रभावी कदमों से डॉलर के मुकाबले रुपए की घटती हुई कीमत पर रोक लगाई जा सकेगी। हालांकि इस समय प्रति डॉलर की कीमत 70 रुपए के ऊपर है और उभरते बाजारों की अन्य मुद्राओं के साथ रुपया भी बीते कुछ दिनों में उथल-पुथल का शिकार हुआ है। ऐसे में अर्थ विशेषज्ञों का यह कहना है कि जब तक विदेशी मुद्रा बाजार में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता है तब तक रुपए में एक खास हद तक कमजोरी भारत के लिए निर्यात के दृष्टिकोण से एक अवसर बन सकती है। भारतीय रुपया अन्य समकक्ष राष्ट्रों की तुलना में अधिक कमजोर नहीं हुआ है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) द्वारा दर्ज 36 कारोबारी साझेदार देशों का सूचकांक भी उन देशों की मुद्रा की कीमत घटने का स्पष्ट संकेत दे रहा है।
- सुनील सिंह