18-Aug-2018 10:34 AM
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क्रिकेट जगत में नाम कमा चुके इमरान के सामने अब खुद को बेहतर प्रधानमंत्री साबित करने की चुनौती है। खासकर तब जब उन्हीं की तलाकशुदा पत्नी कह चुकी हैं कि पाकिस्तान को जूता पॉलिस करने वाला मिला है। अभी तक पाकिस्तान की राजनीति में नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल (एन) और भुट्टो की पीपीपी का दबदबा रहा है। इमरान खान करीब 22 साल के राजनीतिक संघर्ष के बाद अपनी पार्टी की सरकार बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने देश में लोकतंत्र को मजबूत करने की होगी। हालांकि पाकिस्तान और भारत के निर्माण का इतिहास समान है। लेकिन लोकतंत्र के मामले में दोनों का इतिहास एकदम उलट है। वहां की सरकार शुरुआती समय से अभी तक स्वतंत्र निर्णय नहीं कर पाई है। यानी पाकिस्तानी सरकार मजबूत नहीं, बल्कि कमजोर रही है। सेना हमेशा सरकार पर हावी रही है। यही कारण रहा है कि पाकिस्तान में तख्ता पलट का लंबा इतिहास रहा है। चुनी हुई सरकार का तख्ता पलट कर सेना सत्ता में काबिज होती रही है।
ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान पर वास्तव में सेना, आईएसआई और आतंकियों की तिकड़ी राज करती है। खासकर पाकिस्तान की भारत नीति पर सेना और आईएसआई का काफी दखल रहता है। पाकिस्तान के 71 साल के इतिहास में ज्यादातर समय तक सत्ता पर सेना का ही कब्जा रहा है। वहां सेना बहुत मजबूत है और देश में कई बार तख्तापलट की घटनाएं हो चुकी हैं। चुनाव के दौरान से ही चर्चा रही है कि इमरान खान के सिर पर सेना का हाथ रहा है। उनके आलोचक यहां तक कह रहे हैं कि इमरान खान सेना और आईएसआई की सर्कस के ही कलाकारÓ हैं।
दूसरी तरफ, खुफिया एजेंसी आईएसआई भी काफी मजबूत है और उसका भी पाकिस्तान की राजनीति में काफी दखल रहता है। ऐसा माना जाता है कि कई आतंकी संगठनों को आईएसआई प्रश्रय देती है और उन्हें ट्रेनिंग आदि मुहैया कर कश्मीर में हमले के लिए भेजती है। पाकिस्तान दुनिया के अन्य देशों में भी आतंक का निर्यात करता है।
हालांकि अब वही आतंकी खुद उनके लिए भस्मासुर साबित हो रहे हैं। इसलिए इमरान के सामने पाकिस्तान को इस भस्मासुर से निजात दिलाने की भी चुनौती है। इमरान खान ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वे 90 दिन में आतंक का फन कुचल देंगे। उनके लिए आतंकियों का खात्मा एक बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि तमाम आतंकी संगठन आईएसआई की सरपरस्ती में पनप रहे हैं। इसके साथ ही निवेश के नाम पर चीनी कर्ज से मुक्त होना भी इमरान के लिए चुनौती है।
- माया राठी