02-Aug-2013 08:52 AM
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तेलंगाना राज्य के गठन को लेकर आंध्र प्रदेश के कांग्रेसी नेता और कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व आमने-सामने है। छब्बीस जुलाई को एक बैठक के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पृथक तेलंगाना के गठन को हरी झंडी देते हुए इस

विषय में सैद्धातिंक सहमति प्रदान कर दी थी। 30 जुलाई को इसे आंंध्र से पृथक करने की घोषणा यूपीए ने भी कर दी किन्तु जैसे ही यह भनक आंध्रप्रदेश के कांग्रेसी नेताओं को लगी कि केन्द्र सरकार पृथक तेलंगाना के गठन के लिए पांच अगस्त से प्रारंभ होने वाले मानसून सत्र में विधेयक ला सकती है तो तेलंगाना में इसका विरोध प्रारंभ हो गया। पार्टी के कई वरिष्ठ मंत्रियों ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कहा कि यदि आंध्रप्रदेश का विभाजन हुआ तो वे इस्तीफा दे देगे। इन मंत्रियों की संख्या 15 बताई जा रही हैं।
गुंटूर से कांग्रेस सांसद रायपति संबाशिव और पार्टी के दो विधायकों ने इस्तीफा दे दिया हैं।
हालांकि आंध्र प्रदेश के विभाजन का कांग्रेस के भीतर और बाहर भारी विरोध होना तय है, किन्तु पार्टीं इसमें भविष्य की राजनीति देख रही है। सत्ता विरोधी रूझान के चलते और जगन मोहन रेड्डी के प्रति राज्य में सहानुभूति लहर होने के कारण आंध्रप्रदेश में कांग्रेस की हालत खराब बताई जा रही है। ऐसे हालात में राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव के समय तेलंगाना क्षेत्र में कांग्रेस को बढ़त मिल सकती है। आंध्र के कांग्रेसी मंत्रियों का कहना है कि पार्टीं प्रदेश के लोगों की भावनाओं को समझने में नाकाम रही है और एक राष्ट्रीय पार्टीं क्षुद्र चुनावी फायदे के लिए अलोकप्रिय निर्णय ले रही है। आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने पृथक तेलंगाना के लिए अपनी तरफ से कोई विरोध प्रकट नहीं किया है। वे उस बैठक में भी थे जिसमें सोनिया गांधी सहित तमाम बड़े नेता मौजूद थे। दिग्विजय सिंह ने इस बैठक के समय कहा था कि बातचीत की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अब तेलंगाना पर निर्णय लेने का समय आ गया है। इस माह के शुरूआत में ही कांग्रेस ने कहा था कि वह शीघ्र ही इस विषय में कोई निर्णय लेगी। कांग्रेस को उम्मीद थी कि पृथक तेलंगाना को लेकर पार्टी में कोई मतभेद उत्पन्न नहीं होगा और एकता बनी रहेगी। लेकिन अब ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है तेलंगाना को लेकर लगातार टकराव बढ़ रहा है। कांग्रेस पहले भी कई बार पृथक तेलंगाना का वादा कर चुकी है लेकिन बार बार कांग्रेस का स्टेंड बदलता रहा। पर इस बार 42 लोकसभा सीट वाले आंध्रप्रदेश से कांग्रेस को उम्मीदें नहीं हैं लिहाजा वह तेलंगाना को अलग कर वहां अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है। जो फर्मूला तैयार किया है उसके तहत रॉयलसीमा से दो जिलों अनंतपुर और कुरनूल को पृथक तेलंगाना में शामिल किया जाएगा जिससे आंध्र प्रदेश की 42 लोकसभा सीटें 21-21 में विभाजित हो जाएंगी। कांग्रेस का यह मानना है कि इस नई व्यवस्था से वाईएसआर कांग्रेस का प्रभाव भी थोड़ा कम हो सकेगा। रॉयलसीमा में जगन मोहन रेड्डी का प्रभाव बहुत अधिक हैं इसे विभाजित करके कांग्रेस जगन मोहन रेड्डी की ताकत को कम करना चाहती है। हैदराबाद को लेकर तेलंगाना और बाकी आंध्र प्रदेश में बहुत टकराव है। दोनों जगह के राजनीतिक चाहते हैं कि हैदराबाद उन्हीं के राज्य में रहे। लेकिन केन्द्र ने जो फार्मूला निकाला है उसके तहत हैदराबाद दोनों राज्यों की सयुक्त रूप से दस वर्ष तक राजधानी बना रहेगा। इस विभाजन से तेलंगाना के बाद कोस्टल आंध्र और रॉयलसीमा के विभाजन की मांग भी उठ सकती है। लेकिन असली मुद्दा हैदराबाद को लेकर पैदा होगा। सरकार चाहती है कि मानसून सत्र से पहले इसकी घोषणा कर दी जाए पर इसका विरोध अब तेज होने लगा है तीन विधायकों ने पहले ही विभाजन का विरोध करते हुए इस्तीफा दे दिया है वाईएसआर कांग्रेस के 16 विधायक भी इस्तीफा दे चुके हैं। तेलंगाना की 5 दशक पुरानी लड़ाई उस वक्त निर्णय मोड़ पर पहुंच गई थी जब तेलंगाना राष्ट्र समिति के के. चन्द्रशेखर राव ने लगातार दस दिन तक उपवास करके क्षेत्र में पृथक राज्य की मांग से नए सिरे से उठा दिया था। तेलंगाना के समर्थन में बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन हुआ और बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़े। कांग्रेस ने इस आदोलन को देखते हुए दिसम्बर 2009 में अचानक पृथक तेलंगाना के लिए प्रभावी उपाय करने की घोषणा की। लेकिन कुछ ही दिनों के भीतर केन्द्र को अपना निर्णय बदलाना पड़ा क्योंकि रॉयलसीमा और कोस्टल आंध्रा में हिसंक विरोध शुरू हो गया था। इस विरोध का कारण मुख्य रूप से हैदराबाद ही था। रॉयलसीमा और कोस्टल आंध्रा के नेता किसी भी सूरत में हैदराबाद सौंपने के लिए तैयार नहीं हैं। देखा जाए तो हैदराबाद रॉयलसीमा क्षेत्र में आता है और भारत के मेट्रो शहरों में इसे गिना जाने लगा है। यह आईटी का भी बहुत बड़ा केन्द्र है इसी कारण हैदराबाद-सिकंदराबाद शहर जहां भी होंगे वहां आर्थिक हालत बेहतर रहेंगे। अब कांग्रेस जो फार्मूला लेकर आ रही है उससे अगले एक दर्शक तक स्थिति थोड़ी नियंत्रित रहेगी लेकिन उसके बाद क्या समाधान निकाला जाएगा इसका जिक्र कांग्रेस ने नहीं किया है। क्या हैदराबाद को दो हिस्सों में बाटा जाएगा यदि ऐसा हुआ तो एक नया आंदोलन खड़ा हो सकता है।
बगावत
गुंटूर से कांग्रेस सांसद रायपति संबाशिव और पार्टी के दो विधायकों ने विरोध में इस्तीफा दे दिया है। रायपति इस समय अमेरिका में हैं। उन्होंने वहीं से लोकसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा भेज दिया है। वहीं, कांग्रेस की ओर से आंध्र प्रदेश के प्रभारी और सीनियर नेता दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया है कि यह भारी मन से लिया गया मुश्किल फैसला (तेलंगाना को अलग राज्य बनाने का) है। तेलंगाना समर्थक कुछ लोगों को आशंका है कि कहीं कांग्रेस बगावत से डर कर राज्य बनाने का मामला ठंडे बस्ते में न डाल दे।
राजनीति
आंध्र प्रदेश के बंटवारे को लेकर विरोध के स्वर भी तेज होने लगे हैं। कांग्रेस से 36 का आंकड़ा रखने वाले आंध्र प्रदेश के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी के पुत्र जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने विरोध की आवाज़ तेज कर दी है। पार्टी ने एक बयान में कहा है कि तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने का प्रस्ताव अलोकतांत्रिक और जनविरोधी है। पार्टी के दो नेताओं-जलील खान और जय प्रकाश ने कांग्रेस के फैसले को विदेशियों की बांटने और इस देश पर राज करने की साजिश करार दिया है। वाईएसआर कांग्रेस का कहना है कि तटीय आंध्र प्रदेश के लोग इस एकतरफा फैसले को कभी मंजूर नहीं करेंगे। पार्टी जल्द ही बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन शुरू करेगी।
कई इलाकों, नदियों के
पानी पर झगड़ा
आंध्र प्रदेश और रायलसीमा के लोग तेलंगाना के कुछ हिस्सों को लेकर मांग करते रहे हैं। इनमें खम्मम जिले के भद्राचलम और नलगोंडा जिले के कोडाड जैसे इलाके शामिल हैं। सरकार को सीमा निर्धारण आयोग गठित कर ऐसी मांगों से उपजे विवाद को निपटाना होगा। राज्य में बहने वाली दो प्रमुख नदियां-गोदावरी और कृष्णा तेलंगाना की ओर से बहते हुए पूर्वी समुद्री तट की ओर बढ़ती हैं। आंध्र और रायलसीमा के नेताओं को इस बात की आशंका है कि भविष्य में इन नदियों के पानी को लेकर दोनों राज्यों में विवाद होगा।
आंध्र का खाली होगा खजाना
तेलंगाना मौजूदा आंध्र प्रदेश का सबसे कमाऊ इलाका है। राज्य के कुल राजस्व का 62 फीसदी हिस्सा तेलंगाना से आता है। इसमें भी 47 फीसदी हैदराबाद से ही आता है। सीमांध्र को ऐसी सहूलियत नहीं मिलेगी और वहां गरीबी पनपेगी। तेलंगाना क्षेत्र खनिज संपदा का केंद्र है। बंटवारे से कोयला, चूना पत्थर तथा लिग्नाइट के खदान आंध्र की झोली से निकल जाएंगे। इतना ही नहीं, अविभाजित आंध्र के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा बंट कर तेलंगाना के खाते में चला जाएगा। मौजूदा समय में आंध्र प्रदेश का तटीय इलाका खेतीबारी का प्रमुख केंद्र है। रायलसीमा इलाके में छिटपुट खदान हैं। आंध्र की अर्थव्यवस्था में टैक्स का एक बड़ा हिस्सा हैदराबाद से आता है लेकिन तेलंगाना बनने के साथ ही आंध्र प्रदेश को इसका नुकसान उठाना होगा। राज्य के खजाने में आयकर से कुल 30 हजार करोड़ रुपए आते हैं जिसमें 20 हजार करोड़ हैदराबाद से मिलता है। वजह है हैदराबाद इलाके में परंपरागत उद्योगों के साथ आईटी सेक्टर का बोलबाला। आंध्र के राजस्व में वैट का प्रमुख योगदान है। वर्ष 2012-13 में वैट से कुल 41,027 करोड़ मिला था। इसमें तटीय आंध्र का हिस्सा 5,918 करोड़, रायलसीमा का हिस्सा 1,116 करोड़ और तेलंगाना का हिस्सा 3,382 करोड़ रहा। इसी तरह एक्साइज से राज्य को कुल 16,896 करोड़ की आमदनी हुई। इसमें 5,478 करोड़ तेलंगाना से मिला। 60-70 फीसदी राज्य कर्मचारी हैदराबाद और रंगारेड्डी में तैनात हैं। बंटवारे के बाद आंध्र और रायलसीमा के कर्मचारियों को नए प्रदेश सीमांध्र में भेजा जाएगा। लेकिन आशंका है कि कर्मचारी इसका विरोध करेंगे।
क्या है प्रस्ताव में
एक मैकेनिज्म बने जो रायलसीमा, व आंध्र के अन्य क्षेत्रों की चिंताओं का समाधान करे। इसमें नदियों के जल का बंटवारा, बिजली के उत्पादन व वितरण का मसला, आंध्र प्रदेश के तीनों इलाकों के लोगों की सुरक्षा व संरक्षण का मसला शामिल हो। लोगों के बुनियादी अधिकारों की गारंटी दी जाए।
हैदराबाद दोनों राज्यों के लिए दस साल तक राजधानी होगी। कानूनी व प्रशासनिक उपाय किए जाएं, जिससे दोनों राज्य अपना काम ठीक से कर सकें। दस साल के भीतर आंध्र प्रदेश की राजधानी के लिए जरूरी बिल्डिंग व अन्य जरूरतों पर केंद्र सहायता दे।
पोलावरम सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय प्रोजेक्ट घोषित किया जाए। इसके लिए पर्याप्त फंड मुहैया कराया जाए।
आंध्र प्रदेश के पिछड़े इलाकों की विशेष जरूरतों को चिन्हित करके ऐसे इलाकों के विकास के लिए फंड मुहैया कराया जाए।
आंध्र प्रदेश व नए तेंलगाना राज्य के गठन के बाद दोनों राज्यों को कानून-व्यवस्था बनाए रखने में भी केंद्र सरकार मदद करे।
रेखा सिंह