17-Jul-2013 08:55 AM
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सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि कोई व्यक्ति या नेता जेल से चुनाव नहीं लड़ सकेगा। देश की शीर्ष अदालत का कहना है कि किसी भी कोर्ट में दोषी करार दिए जाने वाले जनप्रतिनिधियों की सदस्यता उसी क्षण समाप्त मानी जाएगी जिस क्षण कोई अदालत उन्हें किसी मामले में दोषी करार देगी। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होगा। सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधि कानून की उस धारा को और अधिक स्पष्ट कर दिया है जिसके तहत किसी अपराधिक मामले में भी दोषी करार दिए जाने की स्थिति में सांसदों और विधायकों को अयोग्य किये जाने के विरूद्ध सुरक्षा मिलती है। इसका अर्थ यह हुआ कि ट्रायल कोर्ट में भी दोषी करार दिए जाने पर सांसदों या विधायक को सदस्यता छोडऩी पड़ेगी। हालांकि जिन नेताओं ने वर्तमान में सजा के विरूद्ध अपील कर रखी है उनके ऊपर यह फैसला फिलहाल लागू नहीं होगा।
इस फैसले ने कई सवाल खड़े किये हैं भारत के प्राय: सभी राज्यों में कई दिग्गज नेता बहुत से मामलों का सामना कर रहे हैं। कईयों को निचली अदालत ने सजा भी सुना दी है। लालू यादव जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेता की राजनीति इस फैसले से समाप्त हो सकती है। चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में लालू यादव के विरूद्ध न्यायलय का निर्णय शीघ्र ही आने वाला है। जयललिता जैसी नेत्रियों को भी इस निर्णय से कहीं न कहीं घाटा होगा उन्हें दो मामलों में तीन साल तथा दो साल की जेल हुई है। उन्होंने इसके खिलाफ अपील कर रखी है और इसी आधार पर वह मुख्यमंत्री बनी हुई हैं। लेकिन अब यह फैसला कड़ाई से लागू हुआ तो उनकी कुर्सी वर्तमान में नहीं तो भविष्य में छिन ही सकती है। पुराने मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने थोड़ी राहत अवश्य दी है पर नए प्रकरण में अपील के आधार पर कोई नेता ऐसा फायदा नहीं उठा पाएगा। मध्यप्रदेश का ही उदाहरण लें तो राघवजी के खिलाफ यदि न्यायालय कोई दोष लगाता है तो वे चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। कमल पटेल भी एक मामले में उलझे हुए हैं। इससे पहले अदालतों में होने वाली देरी का फायदा उठाकर बहुत से नेता अपना राजनीतिक भविष्य बचाने में सफल हो जाया करते थे। किन्तु अब इस पर रोक लगेगी।
खास बात यह है कि क्या भारत की ससंद न्यायालय के इस फैसले को मान्यता दे सकती है। लगभग सभी प्रमुख राजनीति दलों के कोई न कोई नेता किसी न किसी अपराध में लिप्त हैं। बहुतों के विरूद्ध जांच चल रही है। ओम प्रकाश चौटाला जैसे नेता तो 22 जुलाई तक के लिए जमानत पर रिहा होकर इलाज करवा रहे हैं। 22 जुलाई के बाद उनके जेल जाने की सम्भावना है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चौटाला की चुनावी सम्भावनाओं को नष्ट कर सकता है। कांग्रेस, भाजपा, राजद, सपा, बासपा, अन्नाद्रुमुक सहित तमाम पार्टियों के बहुत से नेता किसी न किसी ट्रायल का सामना कर रहे हैं। इसी कारण आशंका पैदा हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को एक मत होकर हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां संसद में पलट सकती हैं। यदि ऐसा हुआ तो न्यायपालिका और विधायिका के बीच टकराव बढ़ सकता है। इसकी झलक केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के उस बयान में देखी जा सकती है जिसमें उन्होंने साफ कहा है कि न्यायपालिका सरकार के उद्देश्यों को समझ नहीं पाती है। हालांकि सीपीआई के नेता डी राजा ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताया है और कहा है कि इसके आगामी परिणाम काफी महत्वपूर्ण होंगे। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का कहना है कि यह फैसला वर्तमान व्यवस्था में पारदर्शिता लाने का काम करेगा इसलिए यह महत्वपूर्ण है। उधर सीबीआई के पूर्व निर्देशक जोगिंदर सिंह ने भी कहा है कि न्यायलापालिका को यह कदम आजादी मिलने के समय ही उठा लेना चाहिए था इससे राजनीति का अपराधीकरण रूकेगा। लेकिन बिड़बना यह है कि भारत में न्यायालय के फैसलों को कई बार संसद में बदल दिया जाता है। शाहबानो प्रकरण में इसकी बानगी देखी जा चुकी है जब मुसलमानों के वोट बैंक को बचाने के लिए एक वृद्ध महिला के खिलाफ इस देश की संसद खड़ी हो गई थी। मौजूदा फैसले में भी संसद दखलअंदाजी कर सकती है। इसी कारण सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भले ही राजनीति को साफ करने की दृष्टि से उपयोगी हो लेकिन इसका फायदा आम जनता तक नहीं पहुंच सकेगा।
अरुण दीक्षित