18-Aug-2018 09:42 AM
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मप्र पिछले पांच साल से कृषि कर्मण अवार्ड पा रहा है। लेकिन चिंता की बात यह है कि प्रदेश में सोयाबीन की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन गई है। इस कारण किसान अब दूसरी खरीफ फसलों की खेती करने लगे हैं। चालू खरीफ में सोयाबीन की बुवाई में 10.62 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में सोयाबीन की बुवाई बढ़कर 109.50 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई 98.99 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। सबसे ज्यादा बुआई मध्य प्रदेश में 54.95 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल 47.13 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई हुई थी। संभावना जताई जा रही है कि इस बार 65 लाख मीट्रिक टन सोयाबीन का उत्पादन होगा।
सोपा (सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया) के मुताबिक प्रदेश में पिछले 6 साल में सोयाबीन के उत्पादन में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। सोपा के अनुसार, प्रदेश में 2012 में जहां 64.858 लाख मीट्रिक टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था वह 2017 में घटकर 35.359 लाख मीट्रिक टन रह गया। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के अनुसार मौसम तेजी से बदलाव आया है। तापमान बढ़ रहा है और बारिश का ग्राफ गड़बड़ा गया है। इसकी वजह से फसलों में कीड़े लगे और पानी न होने से फसल सूख गई। इनमें पीले मोजर की बीमारी भी बढ़ी है। इस कारण सोयाबीन का उत्पाद कम हो रहा है।
प्रदेश के अधिकांश क्षेत्र में 15 दिन से बारिश नहीं हुई है। मानसून की बारिश में जो बोवनी की गई थी उनके पौधे पीले पड़कर मुरझाने लगे हैं। अगर एक-दो रोज में बारिश नहीं हुई तो फसल खत्म हो जाएगी। कृषि विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, प्रदेश में इस साल बोई गई 54.95 लाख हेक्टेयर सोयाबीन की फसल काफी अच्छी है। हालांकि जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के अनुसार सोयाबीन में 30 डिग्री का तापमान जरूरी होता है, जो औसतन 35 से 38 के बीच रहा। रुक-रुक कर पानी मिलना चाहिए, जो नहीं मिला, एक साथ बारिश हुई, तो कहीं नहीं हुई। वहीं बरसात नहीं होने के कारण पीले मोजर से पत्ते पीले हो गए हैं।
मध्य प्रदेश मेंं फसल उत्पादन के मामले में सोयाबीन बेल्ट माने जाने वाले मालवा इलाके के किसान अब बाजार में उपज की सही कीमत नहीं मिलने से तेजी से इस फसल से मुंह फेर रहे है। सरकारी रिकार्ड के मुताबिक मंदसौर जिले में पिछले 25 सालों से लगातार करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर में सोयाबीन फसल की बुआई की जा रही है, लेकिन अब इस कैश क्राप से किसानों ने हाथ खींच लेने से फसल बुआई के रकबे में 25 से 30 फीसदी की कमी हो गई है। वहीं 80 के दशक में विंध्य के किसानों की माली हालत सुधारने वाली नकदी फसल सोयाबीन की खेती अब किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। विंध्य प्रदेश के सबसे अधिक सोया उत्पादन वाले सतना जिले में कभी 85 हजार हेक्टेयर में बोई जाने वाली सोयाबीन की फसल का रकबा घटकर महज 10 हजार हेक्टेयर में सिमट गया है। स्थिति यह है कि सोयाबीन उत्पादन में मालवा को टक्कर देने वाले जिले में स्थित सोया प्लांटों को अब दूसरे राज्यों से उपज मंगानी पड़ रही है।
कृषि विशेषज्ञों की मानें तो अब सोयाबीन बुआई का सीजन खत्म हो गया है। किसान मूंग, उड़द और मक्का की बोवनी कर सोयाबीन से ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं। मूंग-उड़द में देखभाल और मेहनत भी कम करना होगी। सोयाबीन की जगह मूंग, उड़द और मक्का की बोवनी तेज हो गई है। अगले पांच दिन इन फसलों की बोवनी के लिए सबसे उपयुक्त हैं। प्रदेश में अल्प वर्षा का पूर्वानुमान यदि सटीक बैठा तो कम अवधि और कम बारिश की ये फसलें किसानों को बेहतर मुनाफा दे सकती है।
सोयाबीन की खेती में खर्च
सोयाबीन की खेती के लिए 1200 रूपए कल्टीवेटर पर खर्च होता है वहीं 6900 गोबर खाद दो ट्राली (3000 रु. ट्राली, लोडिंग और मजदूरी), 2000 बीज (40 किलो), 700 चारामार दवाई व छिड़काव पर, 1500 निंदाई (दो महीने बाद 15 मजदूरों से काम कराना, 5000 यूरिया, पोटाश, डीएपी, सल्फर सहित अन्य खाद, कोल्पा, कीटनाशक दवाई का छिड़काव दो बार पर, 2600 कटाई, हटाई, तिरपाल, बीमा बारदान पर, 700 फसल मंडी में परिवहन व मंडी भाड़ा पर, 1200 फसल की देखरेख पर, 750 हार्वेस्टर (150 रु. बोरा) पर खर्च होता है। इतना खर्च होने पर 15000 (5 क्विंटल प्रति एकड़ सोयाबीन का उत्पादन समर्थन मूल्य मूल्य 3000 रुपए क्विंटल) का सोयाबीन और 500 रुपए का भूषा निकलता है।
- नवीन रघुवंशी