न चेहरा न ही आधार
18-Aug-2018 09:51 AM 1234929
मध्य प्रदेश के पूर्व बीजेपी अध्यक्ष प्रभात झा ने कांग्रेस को आधारहीन, अर्थहीन और बिना जनसमर्थन वाली पार्टी करार दिया है। झा ने कहा, कांग्रेस ऐसी पार्टी है जिसके पास न तो कोई चेहरा है, न कोई आधार है, न कोई अर्थ है और न ही इसके पास कोई जन नेता है। उन्होंने कहा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी का एक बार फिर सफाया हो जाएगा। अगर झा के बयान का आकलन करें तो उसमें सच्चाई भी नजर आती है। मध्य प्रदेश में 15 वर्षों की भाजपा सरकार को बेदखल करने के लिए कांग्रेस विभिन्न स्तरों पर रणनीति बना रही है। इसी रणनीति के तहत दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी मुख्यमंत्री पद का चेहरा सामने नहीं करेगी। सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित होने के बाद पार्टी में गुटबाजी बढ़ जाएगी। इसलिए कांग्रेस बिना चेहरा शिवराज सिंह चौहान का मुकाबला करेगी। प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने के लिए हर धड़ा सक्रिय हो गया है। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी सितंबर के पहले हफ्ते में चुनाव के लिए तैयार ओंकारेश्वर से अपने चुनाव अभियान की शुरुआत करेंगे। उनका लक्ष्य सभी 230 विधानसभा सीटों तक पहुंचना है। प्रदेश में पिछले 15 सालों से भाजपा सत्ता में है। 2003 में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में मध्य प्रदेश में एक दशक लंबे कांग्रेस शासन के अंत के बाद, पार्टी सत्तारूढ़ भाजपा को मजबूत चुनौती दे पाने में नाकाम रही है। तब से भारत की सबसे पुरानी पार्टी राज्य में गुटबाजी और भितरघात से जूझ रही है। राज्य में अपने कुछ नेताओं की असंगत टिप्पणियों पर पार्टी को शर्मिंदगी और आलोचना का सामना करना पड़ा। विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस में दावेदारों ने तो अपना काम कर दिया है, अब 230 विधानसभा समन्वयक अपने-अपने क्षेत्र के दावेदारों की लोकप्रियता का वजन तौलने में लग गए हैं। समन्वयकों की बूथ, जोन और सेक्टर प्रभारियों के साथ बैठकों का दौर जारी है। एक-एक दावेदार की सक्रियता, जनता के बीच पकड़ और पार्टी में सक्रियता पर चर्चा हो रही है। पार्टी ने प्रत्याशी चयन का जो फॉर्मूला तय किया है, उसमें कोशिश यह रहेगी कि केंद्रीय स्क्रीनिंग कमेटी को केवल एक-एक नाम ही भेजे जाएं, जो सटीक और जिताऊ हों। इसकी कवायद शुरू हो चुकी है। सिटिंग एमएलए का परफॉर्मेंस देखा जा रहा है। दूसरे दावेदारों का भी आकलन हो रहा है। अभी बूथ, जोन, सेक्टर प्रभारियों और कार्यकर्ताओं से एक-एक दावेदार के बारे में पूछकर रिपोर्ट बन रही है। इसके बाद जिला अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों से चर्चा का दौर चलेगा। फिर, संयुक्त बैठक होगी। इसमें दावेदार भी उपस्थित रहेंगे। दावेदारों को अपने कार्य का ब्योरा तो देना ही होगा, विजन भी बताना होगा। उसके बाद उन्हें बैठक कक्ष से बाहर करके उपस्थित लोगों का मत लेकर लोकप्रियता के आधार पर नम्बरिंग होगी। पहले नाम पर सहमति बन जाती है तो ठीक, वरना वही सूची आगे बढ़ा दी जाएगी। प्रदेश कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी की मंशा है कि विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने से पहले ही कांग्रेस बड़ा जनांदोलन करे। आंदोलन के दौरान पार्टी जनता का ध्यान शिवराज और मोदी सरकार की नाकामियों की तरफ आकर्षित करें। लेकिन प्रदेश संगठन इसके लिए कोई रणनीति नहीं बना पाया है। सरकार के खिलाफ मुद्दों की कमी नहीं है। लेकिन पार्टी इसको कैश नहीं करा पा रही है। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे कांग्रेस को संजीवनी दे सकते हैं। ये सारे मसले बयानों में नेता उठा रहे हैं, लेकिन इसको सड़क तक ले जाने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है। एक तरफ कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के टिकट देने पर मंथन चल रहा है। दूसरी ओर कई नेताओं ने अपने क्षेत्र में मतदाताओं से घर-घर संपर्क शुरू कर दिया है। कुछ तो रैली भी निकालने लगे हैं। उन्हें भरोसा है कि पार्टी टिकट दे देगी। कांग्रेस के मौजूदा सभी विधायक अपना टिकट पक्का मान रहे हैं। वे नेता भी सक्रिय हो गए हैं जो पिछले विधानसभा चुनाव में कम मतों से हारे थे। विधानसभा चुनाव मैदान में पहली बार किस्मत आजमाने को तैयार नेताओं की भी कमी नहीं है। ये अपने राजनीतिक आकाओं के भरोसे क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं। मप्र में भले ही 15 साल से कांग्रेस सत्ता से बाहर हो, फिर भी आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट पाने के लिए इन दिनों विभिन्न समाज के नेता जुगत लगा रहे हैं। वे इसके लिए प्रभावी ढंग से प्रयास कर रहे हैं। कोई बड़ी रणनीति नहीं बना पाए कमलनाथ मप्र में पिछले 15 साल से सत्ता से दूर रही कांग्रेस के नेता अबकी बार सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं, लेकिन संगठन के पास इसके लिए कोई प्लान नहीं है। आलम यह है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भी मंशा है कि सरकार के खिलाफ कांग्रेस का विरोध जमीन पर दिखे, लेकिन तीन माह के अंदर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ कोई रणनीति नहीं बना पाए हैं। इस कारण कार्यकर्ता भी हैरान, परेशान हैं। मध्य प्रदेश में चुनाव करीब आते ही कांग्रेस की दुर्दशा दिखाई देने लगी है। अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस को लेकर कई सारे सवाल उठने लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल अनुशासनहीनता और कलह का है। इस कारण रोज-रोज हो रहे विवाद से सत्ताधारी खेमे को मदद मिल रही है। - अजय धीर
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