चुनावी शिगूफा पड़ रहा भारी
18-Aug-2018 09:33 AM 1234777
साल के अंत तक मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियों ने लोगों को लुभाने के लिए तरह-तरह के हथियार आजमाने शुरू भी कर दिए हैं। इनमें से ही एक है कर्जमाफी का हथियार, जिसे पहले भाजपा ने चलाया और फिर कांग्रेस ने। हालांकि, मध्य प्रदेश के किसानों को शिवराज सिंह के कर्जमाफी के दावे की तुलना में राहुल गांधी की बातें अधिक लुभा रही हैं। लेकिन राहुल गांधी ने कर्जमाफी को लेकर जो घोषणा की है, उससे शिवराज सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। दरअसल, जब से राहुल गांधी ने सत्ता में आने पर कर्जमाफी की घोषणा की है, तब से किसानों ने अपना कर्ज चुकाना बंद कर दिया है। आलम ये है कि शिवराज सरकार की तरफ से अप्रैल में लाई गई ब्याजमाफी (कृषि ऋण समाधान) योजना में किसान रुचि भी नहीं ले रहे हैं। राहुल गांधी ने कर्जमाफी का जो हथियार इस्तेमाल किया है, उससे भले ही किसानों को फायदा हो रहा हो, लेकिन देखा जाए तो कर्जमाफी की वजह से किसानों को एक बुरी लत भी लग रही है। कर्जमाफी की घोषणा के बाद कर्ज चुकाने वाले किसानों की दर का घट जाना इसका एक उदाहरण है। इस तरह तो हर चुनाव से पहले किसान इस तरह की उम्मीद करेंगे और राजनीतिक पार्टियां कर्जमाफी के लुभावने वादे करके सत्ता में आ जाएंगी। आपको बता दें कि राहुल गांधी ने 6 जून को मध्य प्रदेश के मंदसौर में चुनाव के मद्देनजर घोषणा की थी कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आती है तो महज 10 दिनों के अंदर किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। फिलहाल राहुल गांधी की इस घोषणा को लेकर किसानों और राजनीतिक गलियारे में चर्चा का माहौल गर्म है। अगर इसके दूसरे पहलू पर नजर डाली जाए तो कर्जमाफी की वजह से सिर्फ डिफॉल्टर्स को ही फायदा होता नजर आएगा। हां ये बात सही है कि बहुत से किसान कर्ज चुकाने की हालत में नहीं होते हैं, लेकिन हर सरकार कर्जमाफी की जो घोषणाएं करती है, उसके चलते बहुत सारे किसान कर्ज नहीं चुकाते और कर्जमाफी की उम्मीद लगाए रहते हैं। यानी जिसने ईमानदारी से अपना कर्ज चुका दिया उसे कुछ नहीं मिला, लेकिन जिसने डिफॉल्ट किया उसे फायदा मिला। कर्जमाफी को राहत के तौर पर शुरू किया गया था, लेकिन अब ये वोट जुटाने का राजनीतिक हथियार जैसा बन गया है। करीब 4 लाख किसानों ने अल्पकालिक कर्ज लिया हुआ है, लेकिन भुगतान नहीं किया है। किसानों की ओर से करीब 2000 करोड़ रुपए की राशि अटकी पड़ी है। इस कर्ज को चुकाने की आखिरी तारीख 30 जून थी, लेकिन अब किसान चुनाव का इंतजार करते हुए से लग रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि उन्हें उम्मीद है इस बार कांग्रेस की सरकार आएगी और उनका कर्ज महज 10 दिन के अंदर माफ हो जाएगा। ऐसा नहीं है कि शिवराज सिंह की सरकार ने किसानों का कर्ज माफ नहीं किया है। मध्य प्रदेश सरकार ने समर्थन मूल्य पर फसल बेचने पर फसल मूल्य और बोनस समेत कई योजनाओं के जरिए सीधे किसानों के खातों में पैसा जमा कराया। इस बात का खूब ढिंढोरा भी पीटा कि जितना पैसे इस सरकार ने दिया है, उतना पैसा और किसी भी सरकार ने नहीं दिया है, लेकिन बावजूद इसके राहुल गांधी का ऑफर किसानों को अधिक लुभाता हुआ दिख रहा है। खैर, जो भी हो लेकिन कर्जमाफी को एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करना सिर्फ कर्ज डिफॉल्टर्स की संख्या में बढ़ोत्तरी करना है। कटेगी ईमानदार उपभोक्ताओं की जेब चुनावी फायदे के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई सरल बिजली और बिल माफी योजना ईमानदार उपभोक्ताओं पर भारी पडऩे वाली है। इसको लेकर समय पर बिल भरने वाले उपभोक्ताओं में सरकार को लेकर नाराजगी दिखने लगी है, जिससे उन पर विवाद का साया मंडराने लगा है। दरअसल माना जा रहा है कि इस योजना से पहले ही बड़े घाटे में चल रही बिजली कंपनियों को और अधिक नुकसान होना है, जिसकी भरपाई सरकार व कंपनियां मिलकर नियमित बिजली बिल भरने वालों से करेंगी। जिसकी वजह से यह तय है कि आम लोगों की जेब पर बोझ बढ़ेगा। बिजली कंपनियां अप्रत्यक्ष रूप से इस घाटे की वसूली उनसे ही करेंगी। इसी को देखते हुए इस योजना के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका तक लगाई गई है, हालांकि इसके पहले हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया। हाईकोर्ट का कहना था कि यह सरकार और बिजली कंपनी के बीच का मामला है। यदि बिजली कंपनी को कोई आपत्ति हो तो वो सामने आए। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शन मंच के डॉ. पीजी नाजपाण्डे ने याचिका दायर की थी। - राजेश बोरकर
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