महागठबंधन से तौबा?
18-Aug-2018 09:25 AM 1234800
संसद में विपक्षी एकता का एक और शक्ति परीक्षण धराशायी हो गया। अविश्वास प्रस्ताव में हार से हुई किरकिरी के बाद राज्यसभा के उप-सभापति चुनाव में भी हार का मुंह देखना पड़ा। सियासी गलियारों में सुगबुगाहट है कि विपक्ष ने एनडीए को कड़ी टक्कर देने का मौका गंवा दिया। सवाल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की रणनीति और सक्रियता पर उठ रहे हैं लेकिन एक अजीब सा सवाल आम आदमी पार्टी भी उठा रही है। आम आदमी पार्टी ने राज्यसभा में उप-सभापति चुनाव में कांग्रेस का समर्थन नहीं किया। इसकी वजह है झप्पी पॉलिटिक्स। आप की शिकायत है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने फोन कर के समर्थन नहीं मांगा। राहुल के इग्नोरेंसÓ को आम आदमी पार्टी ने दिल पे ले लिया है। पार्टी प्रवक्ता संजय सिंह का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी संसद में पीएम मोदी को गले लगा सकते हैं लेकिन आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल को समर्थन के लिए फोन नहीं लगा सकते। आम आदमी पार्टी का आरोप है कि एनडीए की तरफ से बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने अरविंद केजरीवाल से फोन कर समर्थन मांगा था लेकिन केजरीवाल ने समर्थन देने से इनकार कर दिया। जबकि राहुल ने एक बार भी फोन करना जरूरी नहीं समझा। अगर राहुल वोट के लिए समर्थन मांगते तो अरविंद केजरीवाल समर्थन जरूर देते। राहुल से आम आदमी पार्टी की ये शिकायत शादी-ब्याह के मौके पर रिश्तेदारों के रूठने की याद दिलाती है। अमूमन शादी ब्याह के मौके पर फूफाजी नाराज हो जाते हैं। पूरी शादी में उनकी एक ही शिकायत होती है कि किसी भी बड़े या छोटे काम के लिए उनसे किसी ने कहा ही नहीं। साल 2019 के चुनावी मंडप में भी विपक्षी रिश्तेदारों के बीच हालात कमोबेश वैसे ही हैं। कोई रूठा हुआ है, किसी को मनाया जा रहा है, तो कोई खुद को ही दूल्हा समझ रहा है। फोन करके राहुल ने तवज्जो क्यों नहीं दी? अक्सर होता ये आया है कि फोन करके समर्थन मांगने वाली पार्टी ही खुद तब नाराज हुई है जब उसे समर्थन नहीं मिला लेकिन यहां मामला उलटा है। आम आदमी पार्टी इसलिए नाराज है क्योंकि कांग्रेस की तरफ से कोई कॉल नहीं आया। कॉल नहीं आया तो वोट का इस्तेमाल नहीं हो सका। वोट धरे रह गए और चोट गहरा गई। तभी आम आदमी पार्टी राज्यसभा में चुनाव के वक्त मौका-ए-वोटिंग से गायब हो गई। कांग्रेस चुनाव हार गई। हाथ आया बड़ा मौका हाथ से फिसल गया। वोट के लिए समर्थन न मांगना तक तो ठीक था लेकिन इसके बाद कांग्रेस ने जिस तरह से आम आदमी पार्टी पर संसद का गुस्सा उतारा वो वाकई किसी को भी तिलमिला कर रख दे। कांग्रेस के बड़े नेताओं ने आम आदमी पार्टी पर अवसरवादिता की राजनीति का आरोप लगाया। ये तक याद दिलाया कि अगर साल 2013 में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को समर्थन नहीं दिया होता तो आज आप इतिहास बन गई होती। कांग्रेस का यही रवैया आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल को खल गया। तभी उन्होंने आनन-फानन में संभावित महागठबंधन से अलग होने का एलान करके कांग्रेस से हिसाब बराबर कर डाला। अरविंद केजरीवाल ने ऐलान कर दिया कि वो बीजेपी के खिलाफ बनने वाले संभावित महागठबंधन का हिस्सा नहीं होंगे। केजरीवाल का ये एलान-ए-जंग कांग्रेस को झटका देने के लिए काफी है। भले ही आप के पास सांसदों की संख्या की ताकत न हो लेकिन सौदेबाजी की सियासत के दौर में आप भी अहमियत रखती है। दिल्ली में लोकसभा की 7 और पंजाब में 13 सीटों के दंगल को देखते हुए भविष्य में आप को नजरअंदाज करने की भूल नहीं की जा सकती। महागठबंधन से अलग हो कर आम आदमी पार्टी दूसरे क्षेत्रीय दलों को भी ये संदेश दे रही है कि वो भी महागठबंधन पर पुनर्विचार करें। कांग्रेस की बेरुखी की वजह से ही आम आदमी पार्टी कह रही है कि एनडीए के खिलाफ विपक्षी एकता के लिए खुद राहुल गांधी ही सबसे बड़ा रोड़ा हैं तो बीजेपी के लिए पूंजी भी। कुछ ही दिन पहले जंतर-मंतर पर विपक्षी एकता के प्रतीकात्मक प्रदर्शन के तौर पर इक_े हुए सियासी नेताओं में अरविंद केजरीवाल भी मौजूद थे। वहीं कर्नाटक के सीएम की ताजपोशी के वक्त भी आम आदमी पार्टी ने मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता का झंडा उठाया था। इसके बावजूद कांग्रेस की बेरुखी के चलते आम आदमी पार्टी की हालत सियासत के बाजार में उस दुकानदार जैसी हो गई जहां उसके माल का खरीदार सिर्फ कांग्रेस थी और कांग्रेस की ही वजह से उसका माल बिक न सका। यहां चूक गए कांग्रेस के युवराज वहीं राहुल पर ये भी सवाल उठ रहे हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उप- सभापति पद के उम्मीदवार के लिए बिहार के सीएम नीतीश कुमार की तरह दूसरी पार्टियों से समर्थन के लिए सहयोग नहीं मांगा। आम आदमी पार्टी, पीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस की गैरमौजूदगी से साबित होता है कि राहुल ने इनसे संपर्क साधने की कोशिश नहीं की। वहीं एनडीए के नाराज सहयोगी अकाली दल और शिवसेना को भी कांग्रेस मोदी विरोध के नाम पर साथ नहीं ला सकी। ऐसे में सवाल उठता है कि जब उप-सभापति पद पर विपक्ष में आम राय कायम नहीं हो सकी है तो फिर सीटों के बंटवारे और पीएम पद पर कैसे बात बनेगी? बहरहाल, आम आदमी पार्टी के संभावित महागठबंधन से अलग होना भले ही राजनीति की कोई बड़ी घटना न हो लेकिन ये उतार-चढ़ाव मोदी के खिलाफ लामबंद होने वाले विपक्षी दलों की कलई खोलने का काम जरूर कर रहे हैं। साल 2019 से पहले संभावित महागठबंधन का महाट्रेलर संसद में दो अहम मौकों पर दिख चुका है। अविश्वास प्रस्ताव और राज्यसभा में उप-सभापति के चुनाव में विपक्ष का भटकाव और बिखराव साफ दिखता है। - बिन्दु माथुर
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