18-Aug-2018 09:13 AM
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मप्र सहित देशभर में आदिवासियों के विकास के नाम पर मिलने वाले फंड का किस तरह बंटाढ़ार किया जा रहा है यह एक आरटीआई में सामने आया है। जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार ने आदिवासियों के विकास के लिए बनाए गए ट्राइबल सब प्लान को मिलने वाला फंड कंपनियों द्वारा राज्यों में कोल ब्लॉक की खोज और अन्य कार्यों में खर्च किया जा रहा है। इस कारण 7 साल में 205 करोड़ रूपए स्वाहा हो गए हैं, लेकिन आदिवासी फिर भी बदहाल हैं।
ट्राइबल सब प्लान (यानि टीएसपी को अब शेड्यूल्ड ट्राइब कम्पोनेंट के नाम से जाना जाता है) के तहत आवंटित पैसे का इस्तेमाल आदिवासियों के समग्र विकास के लिए करना है। इस पैसे से ऐसी योजनाएं बनाई जानीं चाहिए, जिनसे आदिवासी समुदाय को सीधे तौर पर फायदा हो। इसके लिए योजना आयोग ने कोयला मंत्रालय के लिए ट्राइबल सब प्लान के तहत बजट का 8.2 फीसदी और खान मंत्रालय के लिए 4 फीसदी राशि तय की थी। जाहिर है, दोनों मंत्रालय ने हर वित्तीय वर्ष में इस प्लान के तहत तय राशि जमा भी कराई। लेकिन इसका इस्तेमाल आदिवासी समुदायों के विकास के लिए नहीं हुआ।
आकड़ों और आरटीआई दस्तावेज के मुताबिक, 2010-11 से 2017-18 के बीच ट्राइबल सब प्लान का पैसा कोयला मंत्रालय ने कोयला कंपनियों (सीसीएल, एससीसीएल, एमसीएल) को आवंटित कर दी। इन कोयला कंपनियों ने आदिवासी कल्याण का काम करने की जगह उस पैसे का इस्तेमाल रीजनल एक्सप्लोरेशन, स्टोइंग, डिटेल्ड ड्रिलिंग और खदानों की सुरक्षा में कर दिया। यहां रीजनल एक्सप्लोरेशन, डिटेल्ड ड्रिलिंग और कंजरवेशन सेफ्टी का सीधा सम्बन्ध खान, खनन का पता लगाने, खान की सुरक्षा आदि से है। जाहिर है, इन कार्यों का मकसद भविष्य में और अधिक खनन संभावनाओं की तलाश करना और माइंस का पता लगाना है।
26 फरवरी 2018 को कोयला मंत्रालय ने आरटीआई के जवाब में बताया कि मंत्रालय ट्राइबल सब प्लान के तहत राज्यों को फंड नहीं देता, बल्कि यह फंड सरकारी कोयला कंपनियों और सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड (सीएमपीडीआईएल) को जारी किया जाता है। 2011-12 से 2017-18 तक कोयला मंत्रालय ने इस मद में 205 करोड़ रुपए जारी किए। इस पैसे को कोयला कंपनियों और सीएमपीडीआईएल ने कोयले के भंडार का पता लगाने, खुदाई और खान संरक्षण और सुरक्षा से सम्बन्धित कामों पर खर्च कर दिया। सीएमपीडीआईएल से मिले जवाब के मुताबिक, 2011-12 से 2017-18 के बीच कोयले के भंडार का पता लगाने के लिए कुल 41 करोड़ 59 लाख रुपए खर्च किए गए। वहीं डिटेल्ड ड्रिलिंग के लिए कंपनी को 82 करोड़ 32 लाख रुपए मिले। सीएमपीडीआईएल ने टीएसपी के तहत आवंटित पैसे का उपयोग मध्यप्रदेश के 4 ब्लॉक, छत्तीसगढ़ के 9 ब्लॉक, ओड़ीशा के 2 ब्लॉक में किया। ध्यान देने की बात यह है कि इन कामों में सीएमपीडीआईएल का वास्तविक खर्च कहीं अधिक था। मसलन, एक्प्लोरेशन के लिए इसने कुल 122.87 करोड़ रुपए खर्च किए। लेकिन इसी में उसने ट्राइबल सब प्लान के तहत आवंटित 41.59 करोड़ भी मिला दिए। यानी आदिवासियों के विकास के फंड को उनके विनाश पर खर्च किया जा रहा है।
योजनाओं का फायदा दूसरों को
राज्य और केंद्र सरकार आदिवासी समाज के पिछड़े तबको के लिए कई योजनाएं बनाती हैं, घोषणाएं और वादे करती हैं, लेकिन जमीन पर असर होता नहीं दिख रहा। योजनाएं आदिवासी के नाम पर बनती हैं, लेकिन उनका फायदा उसे नहीं मिलता। मप्र में रानी दुर्गावती योजना चलाई गई। उसमें बेरोजगार युवाओं को 5 से 10 लाख गाड़ी खरीदने के लिए ऋण का प्रावधान था। लेकिन, आदिवासी के नाम पर दूसरों ने लाभ लिया। आदिवासियों के नाम पर पेट्रोल पंप आवंटित हुए, लेकिन फायदा सामान्य वर्ग के लोग ले गए। 5वीं अनुसूची में जितनी भी खदानें हैं, वे आदिवासियों को ही आवंटित होनी हैं, लेकिन सब सामान्य वर्ग के पास हैं। प्रदेश सरकार ने 2003 से 2018 के बीच अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के विकास के नाम पर 2215.07 अरब रुपए खर्च कर चुकी है, इसके बावजूद उनकी बड़ी आबादी भुखमरी, कुपोषण, गरीबी, बीमारी और जीवन जीने के लिए बुनियादी सुविधाओं से वंचित है।
- टीपी सिंह